आटा न डाटा, पड़ोस में सिर्फ सन्नाटा
पाकिस्तान में आटा तो पहले ही मयस्सर नहीं था, अब डाटा भी नदारद हो गया है। बत्ती भी गुल है, सो मोबाइल ही चार्ज नहीं हो पा रहे, इंटरनेट तो बाद की बात है। अब खाली पेट खुराफाती दिमाग क्या करे? अब वहां सिर्फ सन्नाटा है। बेलगाम महंगाई से आटा-दाल-तेल के दाम तो पाकिस्तान को पहले ही पता चल गए थे, अब बत्ती गुल होने से उस अंधकार का अहसास भी हो गया है, जो वह अपने पड़ोसियों के घरों में फैलाने की हमेशा साजिश रचता रहता है, लेकिन इस सब पर हैरानी कैसी? मजहब के नाम पर भारत में नफरत की दीवार खड़ी कर अलग मुल्क बने पाकिस्तान के हुक्मरानों ने जब बोया ही बबूल है तो उस पर आम कहां से लगेंगे?
वैसे चोरी-चकारी-तस्करी करने वाले तो अंधेरे में ही अपने काम को अंजाम देने में माहिर होते हैं। पाकिस्तान है तो भारत समेत कुछ देशों का पड़ोसी, परंतु पड़ोसी कहलाने के लायक नहीं। जिस शख्स ने भारत की सरजमीं पर मजहबी नफरत के आधार पर पाकिस्तान की दीवार खींची, उसे कायदे आजम करार दे दिया गया। जिस भारत ने पाकिस्तान को घर चलाने की लिए भारी-भरकम राशि मदद के रूप में दी, उसी से कश्मीर छीनने के नापाक मंसूबों के साथ कबायली और उनके वेश में सेना भेज दी।
माना जाता है कि बच्चा बढ़ती उम्र के साथ समझदार होता है, लेकिन यदि उसका नाम पाकिस्तान तो वह और शातिर ही बनता है। जन्म लेते ही कश्मीर में कबायली साजिश में मिली मात के बावजूद वह नहीं सुधरा। एक के बाद एक तीन जंग में मुंह की खाई, पर अक्ल फिर भी ठिकाने नहीं आई। हां, अपनी दुर्बुद्धि का इस्तेमाल भारत के विरुद्ध छद्म युद्ध में करने लगा। सीमा पार से अवैध हथियार और नशीले पदार्थों के साथ ही भारत में अशांति फैलाने के लिए बाकायदा आतंकवादी भी भेजने लगा। शायद भारत के नीति-नियंताओं ने संत कबीर को कुछ ज्यादा ही पढ़-गुन लिया है। सो, पाकिस्तान द्वारा हमारे आंगन में कांटे बोये जाने पर भी उसे फूल भेंट करते रहे। वैसे कबीर वाणी सही भी साबित हुई। भारत की बगिया में खिले फूलों की महक विश्व आर्थिकी से ले कर राजनय तक हर क्षेत्र में फैल रही है, पर पाकिस्तान के लिए कांटे त्रिशूल बनते नजर आ रहे हैं।
घास खा कर भी कश्मीर छीनने के लिए भारत से लड़ने के उन्मादी नारे देते हुए पाकिस्तान के नापाक हुक्मरान वतन लूट कर अपनी तिजोरियां भरते रहे तो भारत विरोधी आतंकवाद के लिए बनाई गई नर्सरी के कैक्टस अब खुद उनको चुभने लगे हैं। एक और पड़ोसी अफगानिस्तान में दखल देने के लिए उसने तालिबान को खड़ा किया था। अब तालिबान पाकिस्तान को ही हलकान कर रहा है। पाकिस्तान पहले भी दूसरे देशों की मदद पर पल-चल रहा था, लेकिन पोल खुल जाने के बाद अब उन दोस्तों ने भी उससे किनारा कर लिया है। भेद खुल जाने पर आस्तीन के सांपों के साथ अक्सर ऐसा ही होता है। चोरी की तकनीक और तस्करी के सामान से परमाणु शक्ति बने पाकिस्तान का आलम यह है कि आवाम अर्से से आटा से लेकर पेट्रोल-डीजल तक के लिए लाइनों में लगी है तो गहराता बिजली संकट अब बत्ती गुल में तब्दील हो चुका है। दफ्तरी कामकाज तो छोड़िए, संसद का सत्र तक रोकना पड़ रहा है।
जानकार बता रहे हैं कि तंगहाली का यही हाल रहा तो पाकिस्तान इस साल चुनाव कराने की हालत में भी नहीं है। भारत से मदद की गुहार लगा कर पलट जाने वाले छोटे शरीफ हैं तो प्रधानमंत्री, पर फिलहाल कटोरा लिए दुनिया भर में घूम रहे हैं। कर्ज तो दूर, ब्याज चुकाने के लिए पैसे नहीं हैं। फिर कोई कब तक खैरात देता रहेगा? अक्सर पढ़ते-सुनते आए हैं कि पाकिस्तान को तीन ताकतें चलाती हैं- अल्लाह, आर्मी और अमेरिका। अमानत में खयानत के लिए बदनाम अपने चहेते पाकिस्तान से आजिज अमेरिका ने पल्ला झाड़ लिया है तो कंगाल मुल्क की सत्ता में आर्मी की भी ज्यादा दिलचस्पी नहीं रह गई लगती है। ऐसे में अल्लाह ही मालिक है, पर सुनते हैं कि अल्लाह भी तो नेक बंदों का ही हाफिज है!