बाल दिवस विशेष: देखते ही देखते ये छोटे कलाकार अब बन गयें है फेमस एक्टर
कई बाल कलाकार देखते ही देखते स्थापित फिल्म कलाकार बन गए हैं. इन्हें बड़े होते देखना रोमांचपूर्ण है. बाल दिवस के मौके पर जानते हैं कुछ ऐसे ही चेहरों को. कुणाल खेमू: चाइल्ड एक्टर के तौर पर कुणाल खेमू का करियर बेहद शानदार रहा है. कुणाल ने 1987 में टीवी सीरियल ‘गुल गुलशन गुलफाम से करियर की शुरुआत की. 1993 में फिल्म ‘सर’ से चाइल्ड एक्टर के तौर पर फिल्मी करियर का आगाज करने वाले कुणाल ने 1998 में फिल्म ‘दुश्मन’ तक बाल कलाकार के तौर पर काम किया. इस दौरान उन्होंने ‘हम हैं राही प्यार के’, ‘राजा हिन्दुस्तानी’, ‘भाई’, ‘जुड़वां’ और ‘जख्म’ जैसी सुपरहिट फिल्मों में काम किया.
जुगल हंसराज जब बड़े हुए तो उनकी पहली फिल्म उर्मिला मातोड़कर के साथ ‘आ गले लग जा’ थी. ‘पापा कहते हैं’, ‘मोहब्बतें’ और ‘सलाम नमस्ते’ जैसी फिल्मों में काम कर चुके हैं. एक्टिंग में सफलता नहीं मिली तो उन्होंने निर्देशन में हाथ आजमाया और फिल्म ‘रोड साइड रोमियो’ बनाई, लेकिन यहां भी सफलता हाथ नहीं लगी.
हंसिका मोटवानी ने चाइल्ड एक्टर के तौर पर 2003 में फिल्म ‘हवा’ से लेकर ‘कोई मिल गया’, ‘आबरा का डाबरा’ और ‘जागो’ जैसी फिल्मों में काम किया और टीवी सीरियल ‘शाका लाका बूम बूम’ और ‘देश में निकला होगा चांद’ में अपनी एक्टिंग का लोह मनवाया. एक एडल्ट एक्टर के तौर पर हंसिका ने हिन्दी सिनेमा में हिमेश रेशमिया के साथ फिल्म ‘आपका सुरूर’ से शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने ‘मनी है तो हनी है’ में काम किया, लेकिन अपना जादू नहीं दिखा पाई. ये जरूर है कि उन्होंने तमिल और तेलुगू फिल्मों में खूब काम किया है.
आफताब शिवदासानी ने चाइल्ड एक्टर के तौर पर फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’, ‘शहंशाह’, ‘चालबाज’, ‘अव्वल नंबर’, ‘सीआईडी’ और ‘इंसानियत’ फिल्मों में काम किया. चाइल्ड एक्टर के तौर पर वे खासे सफल रहे, जिसके बाद उन्होंने बड़े होने पर एक्टिंग के कॅरियर को आगे बढ़ाया. फिल्म ‘मस्त’ से आफताब को फिल्मों में मुख्य भूमिकाएं निभाने का मौका मिला. लेकिन ‘कसूर’, ‘हंगामा’, ‘मस्ती’, ‘ग्रैंड मस्ती’ जैसी कुछ ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर टिक पाईं. बड़े होने के बाद आफताब उतने सफल साबित नहीं हुए, जितने वह चाइल्ड एक्टर के तौर पर थे.
परजान दस्तूर को बाल कलाकार के रूप में कुछ कुछ होता है में नोटिस किया गया था. उनका डायलॉग तूसी ना जाओ काफी पॉपुलर हुआ. इसके बाद वे एडल्ट कलाकार के रूप में सिकंदर और ब्रेक के बाद में नजर आए. फिलहाल वे फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम कर रहे हैं.
मास्टर राजू ने 1969 में फिल्म ‘शर्त’ से लेकर 1983 में ‘वो सात दिन’ तक एक से बढ़कर एक फिल्मों में काम किया. इस दौरान उनका करियर बुलंदियों पर रहा. ‘बावर्ची’, ‘परिचय’, ‘अमर प्रेम’, ‘अभिमान’, ‘चितचोर’, ‘किताब’, ‘अंखियों के झरोखे से’, ‘नालायक’, ‘खट्टामीठा’ जैसी फिल्मों से मास्टर राजू की पहचान बनी. 1976 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. सिर्फ 2 साल की उम्र से फिल्मों में काम कर रहे मास्टर राजू जब बड़े होकर राजू श्रेष्ठ बने तो उन्हें कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी. उन्होंने 200 से ज्यादा फिल्मों और टीवी सीरियल में भी काम किया. लेकिन बचपन की सफलता कभी दोहरा नहीं पाए.
श्वेता बसु प्रसाद को 2002 में फिल्म मकड़ी के लिए बेस्ट चाइल्ड एक्टर का नेशनल अवॉर्ड मिल चुका है. इसके बाद वे नागेश कुरनूर की फिल्म इकबाल में नजर आईं. अब टीवी का श्वेता जाना पहचाना चेहरा हैं. वे कहानी घर घर की और करिश्मा का करिश्मा में नजर आ चुकी हैं. श्वेता कई शॉर्ट फिल्मों में भी दिखी हैं.