यूपी में ओबीसी आरक्षण के भीतर आरक्षण देने की मांग ने जोर पकड़ा

सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी-एसटी) कोटे के भीतर कोटा वैधानिक ठहराने के बाद यूपी में ओबीसी आरक्षण के भीतर आरक्षण देने की मांग गरमा गई है। एनडीए में शामिल सुभासपा के महासचिव अरुण राजभर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि ओबीसी में भी आरक्षण के भीतर आरक्षण लागू किया जाना चाहिए। भाजपा एमएलसी व डॉ. अंबेडकर महासभा ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल ने संपन्न दलितों से आरक्षण का लाभ न लेने का आह्वान किया है। अलबत्ता, बसपा आरक्षण के बंटवारे के पक्ष में नहीं है। सपा भी ओबीसी आरक्षण में बंटवारे और क्रीमीलेयर की व्यवस्था के पहले से ही खिलाफ है।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को एससी-एसटी के लिए नौकरियों व शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए तय आरक्षण के भीतर आरक्षण लागू करने की अनुमति दे दी है। ओबीसी वर्ग के लिए इसी तरह की मांग लंबे समय से की जा रही है। भाजपा सरकार में सहयोगी दल के रूप में शामिल सुभासपा और निषाद पार्टी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण के भीतर आरक्षण की लगातार मांग कर रहे हैं।

आरक्षण के भीतर आरक्षण के समर्थकों का कहना है कि ओबीसी आरक्षण का यादव और कुर्मियों ने अधिक फायदा लिया है। इसलिए अब अति पिछड़ों पर अलग से ध्यान दिया जाना चाहिए। इसी तरह से दलितों में वाल्मीकि, धानुक और डोम सरीखी जातियों को कम लाभ मिलने की बात समय-समय पर उठती रही है।

ओबीसी आरक्षण को तीन श्रेणियों में बांटने की हो चुकी है सिफारिश
यूपी में वर्ष 2017 में भाजपा सरकार बनने पर सामाजिक न्याय समिति का गठन किया गया। इस समिति ने वर्ष 2018 में राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपी लेकिन इसे आधिकारिक रूप से सार्वजनिक नहीं किया गया। सूत्रों के अनुसार, रिपोर्ट में ओबीसी आरक्षण का तीन श्रेणियों में वर्गीकरण किया गया था। पहली श्रेणी के लिए 27 फीसदी में से 7 फीसदी आरक्षण देने की संस्तुति की गई। इसमें अहीर, यादव, सोनार, सुनार, स्वर्णकार, कुर्मी, जाट, हलवाई, चौरसिया, सैथवार, पटेल आदि जातियों को शामिल करने की सिफारिश की गई। दूसरी श्रेणी में गुर्जर, गिरी, लोध, मौर्य, लोधी राजपूत, काछी, कुशवाहा, शाक्य, तेली आदि जातियों को रखा गया। इन्हें 11 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की गई। तीसरी श्रेणी में अत्यंत पिछड़ी मानी जाने वाली जातियां राजभर, निषाद, मल्लाह, घोसी, धीवर, कश्यप, केवट, नट आदि जातियों को रखा गया, जिन्हें 9 फीसदी आरक्षण देने की संस्तुति की गई।

आरक्षण के बंटवारे पर मायावती ने उठाया सवाल

बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक्स के माध्यम से कहा कि सामाजिक उत्पीड़न की तुलना में राजनीतिक उत्पीड़न कुछ भी नहीं है। क्या देश के खासकर करोड़ों दलित व आदिवासियों का जीवन द्वेष व भेदभाव से मुक्त आत्म सम्मान व स्वाभिमान का हो पाया है। अगर नहीं तो फिर जाति के आधार पर तोड़े व पछाड़े गए इन वर्गों के बीच आरक्षण का बंटवारा कितना उचित?

उन्होंने कहा कि देश के एससी, एसटी व ओबीसी बहुजनों के प्रति कांग्रेस व भाजपा और उनकी सरकारों का रवैया उदारवादी रहा है, सुधारवादी नहीं। वे इनके सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्ति के पक्षधर नहीं, वर्ना इन लोगों के आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालकर इसकी सुरक्षा जरूर की गई होती।

आरक्षण के भीतर आरक्षण की पक्षधर नहीं सपा
सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि एससी-एसटी के आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन कर रहे हैं। ऐसे में कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि सपा ओबीसी आरक्षण में किसी भी तरह के बंटवारे की पक्षधर नहीं है। हम क्रीमीलेयर की व्यवस्था को भी जायज नहीं मानते हैं।

हाशिये की दलित जातियों को लाभ लेने दें संपन्न दलित
भाजपा के एमएलसी व डॉ. अंबेडकर महासभा ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल ने कहा है कि आरक्षण में वर्गीकरण से हाशिये की दलित जातियां विशेषकर वाल्मीकि, बासफोर, धरकार, धानुक, डोम, बसोर आदि सरकारी सेवाओं में आरक्षण का लाभ पा सकेंगे। अभी तक इन जातियों की उपस्थिति नगण्य है। वहीं, संपन्न दलित जो आईएएस, विधायक, मंत्री, डॉक्टर व प्रोफेसर बन चुके हैं या बड़े व्यवसाय में हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ स्वेच्छा से छोड़ देना चाहिए। इससे इस आरक्षण का लाभ समाज के कमजोर व गरीब दलित को मिल सकेगा। जो संपन्न दलित अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा सकते हैं, उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेज सकते हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं लेना चाहिए।

ओबीसी आबादी में किसकी कितनी आबादी

अहीर, यादव, यदुवंशी, ग्वाला19.40%
कुर्मी, चनऊ, पटेल पटनवार, कुर्मी-मल्ल, कुर्मी-सैंथवार7.46%
लोध, लोधा, लोधी, लोट, लोधी-राजपूत4.90%
गड़रिया, पाल और बघेल4.43%
केवट या मल्लाह और निषाद 4.33%
मोमिन और अंसार4.15%
तेली, सामानी, साहू, रौनियार व गंधी अर्राक4.03%
जाट3.60%
कुम्हार व प्रजापति3.42%
कहार व कश्यप3.31%
काछी, काछी-कुशवाहा शाक्य3.25%
हज्जाम, सलमानी, सविता, श्रीवास3.01%
भर व राजभर2.44%
बढ़ई, बढ़ई-शैफी, विश्वकर्मा, पांचाल, रमगढ़िया, जांगिड़ व धीमन 2.37%
लोनिया, नौनिया, गोले-ठाकुर व लोनिया-चौहान2.33%
मुराव या मुराई व मौर्य2.00%
फकीर1.93%
लोहार व लोहार-सैफी1.81%
गूजर1.71%
कोइरी1.66%
नद्दाफ (धुनिया), मंसूरी, कंडेरे, करण (कर्ण)1.61%
माली, सैनी 1.44%
भुर्जी, भूंज, कांदू, कसौधन1.43%
दर्जी, इदरीसी व काकुस्थ1.01%
अन्य 12.97%
अन्य12.97%

अनूसूचित जातियों में किसकी कितनी भागीदारी

जाटव 55.70%
पासी, तरमाली15.91%
धोबी6.51%
कोरी5.39%
वाल्मीकि2.96%
खटिक1.83%
धानुक1.57%
गोंड1.25%
कोल1.11%
अन्य7.78% (ओबीसी और एससी जातियों के आंकड़े 2001 की सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के अनुसार)
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