2003 से लेकर अब तक एमपी पर शासन कर रही भाजपा ने तीन मुख्यमंत्री देखे, पढ़े पूरी खबर

कर्नाटक विधानसभा चुनाव गंवाने के बाद भारतीय जनता पार्टी की नजरें मध्य प्रदेश बचाने और राजस्थान और छत्तीसगढ़ हथियाने की ओर हैं। हालांकि, ये राह आसान नहीं है। साल 2003 से एमपी पर शासन कर रही भाजपा को केवल एक ही झटका लगा है, लेकिन ‘मामा’ कहलाने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की राह इस बार आसान नजर नहीं आ रही। सत्ता विरोधी लहर, ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट का बढ़ता वर्चस्व, असंतोष जैसे कई मुद्दे सीएम चौहान को परेशान कर सकते हैं।

पहले पार्टी में चुनौती
2003 से लेकर अब तक एमपी पर शासन कर रही भाजपा ने तीन मुख्यमंत्री देखे। इनमें उमा भारती और बाबूलाल गौर का नाम भी शामिल है, लेकिन इनमें शिवराज का राज सबसे लंबा रहा। वह चार बार एमपी की सीएम के तौर पर कमान संभाल चुके हैं। हालांकि, इस दौरान पार्टी में ही उन्हें चुनौती देने वालों की कमी नहीं रही। कहा जाता है कि एमपी के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा, भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे दिग्गज उनके सामने चुनौती पेश करते रहे हैं।

योजना का सहारा
सत्ता विरोधी लहर से घिरे सीएम चौहान लाड़ली बहना योजना (महिलाओं को 1 हजार रुपये प्रति माह दिया जाएगा), दीनदयाल अंत्योदय रसोई (5 रुपये में भोजन), हजारों अवैध कॉलोनियों को वैध करने का ऐलान कर चुके हैं।

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