Bihar : सरकार की असफलता का सूचक है चमकी से मासूमों की मौत
नौनिहालों की कब्रगाह बनते जा रहे मुजफ्फरपुर के अस्पताल
लखनउ। जिस समय अखबार के पहले पन्ने पर यह खबर पढी कि बिहार के मुजफ्फरपुर में 120 बच्चों की मौत हो गयी। मन द्रवित हो उठा। न्यूज चैनल देखने की हिम्मत जुटाई तो करूण क्रन्दन सुनकर अपनी आंखों के आंसुओं को रोक पाना ही मुश्किल हो गया। कुछ भी देखने या पढने का मन नहीं कर रहा था। सिर्फ वही नजारा आंखों के सामने कौंध रहा था। मोदी सरकार ने विकास के न जाने कितने आयाम छू लिए। विदेशों में जाकर मोदी जी ने उनकी उपलब्धियों को अपनाने का भी काम किया। लेकिन कई वर्षों से बिहार में हो रही मासूमों की मौतों का रहस्य खोजने मे क्यों नाकाम रहे। यह एक बडा प्रश्न है। एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी चमकी बुखार का कोई इलाज नहीं है। यह दुर्भाग्य है कि तमाम खोजों और कोशिशों के बाद भी ऐसी कोई दवाई नहीं बनाई जा सकी। जिससे पीड़ित रोगियों का इलाज हो सके। यहां तक कि यह बीमारी किस वायरस से फैलती है इसकी भी पहचान अभी तक नहीं हो सकी है। ऐसे में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के लिए इलाज के लिए वैक्सीन कैसे बन सकती है।
मुजफ्फरपुर और आसपास के इलाकों में बच्चों में ये बीमारी मई से शुरू होकर जुलाई तक चलती है। उसके बाद यह अपने आप खत्म हो जाती हैं। बरसात के बाद यह बीमारी क्यों खत्म हो जाती है, यह भी एक रहस्य है। वैज्ञानिकों ने एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम पर काफी रिसर्च किया। लेकिन जो कुछ भी नतीजे सामने आए हैं, वो बहुत संतोषजनक नहीं हैं। एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के रिसर्च से जुड़े एक चिकित्सक ने बताया कि वैसे इस बीमारी की शुरुआत नब्बे के दशक में हो गई थी। लेकिन यह महामारी के रूप में साल 2011 में सामने आई। उन्होंने कहा कि साल 2011 में एईएस के रिसर्च पर एक टीम ने काम करना शुरू किया था। साल 2014 में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के मामले बड़े पैमाने पर सामने आए। इसके बाद रिसर्च टीम ने फिर इसकी खोज शुरू की, लेकिन कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया। हालांकि, मुजफ्फरपुर के केजरीवाल अस्पताल में उन्होंने कहा कि बच्चों को ग्लूकोज दीजिए। ग्लूकोज देने से बच्चे मरेंगे नहीं, और सचमुच ग्लूकोज देने से बहुत से उन बच्चों की जान बच जाती है जो समय पर अस्पताल पहुंच जाते हैं।
सूत्रों की माने तो यह बीमारी सबसे पहले नॉर्थ वियतनाम में पाई गई। इसके बाद अफ्रीदी देश जमैका में इसके मामले सामने आए। संयोग कि बात यह है कि इन दोनों जगहों पर लीची का उत्पादन होता है। मुजफ्फरपुर भी लीची उत्पादन के लिए जाना जाता है। जांच टीम के भी लीची में टॉक्सिन मिला। जो ब्लड शुगर वकीप्लेसेमिया की वजह बनता है। उससे पता चला कि ये भी मौतों का एक कारण है। एक तीसरी बात जो स्टडी में सामने आई है कि जब यूरिन की जांच करने पर उसमें ओरगोनोफोस्फोर्स पेस्टीसाइड की मात्रा पाई गई जोकि लीची की फसल पर पेस्टीसाइड के रूप में स्प्रे होता है। जांच टीम का कहना है कि जब तक इस वायरस का पता नहीं चल जाता तब तक वैक्सीन नहीं बनाई जा सकती है। चिकित्सकों की टीम इस पर रिसर्च कर रही है।
बताते चलें कि बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में चमकी बुखार से हालात भयावह हैं। चारों तरफ कोहराम मचा हुआ है। बच्चों की मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। अब तक इस बीमारी की चपेट में आकर 108 बच्चों की मौत हो चुकी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) में भर्ती बच्चों का हाल जाना और पीड़ित परिजनों से बातचीत की। इसके अलावा अन्य मन्त्रियों का आना—जाना अनवरत जारी है। लेकिन इससे हासिल क्या हुआ। सिर्फ निरीक्षण करने से और परिजनों से बात करने से क्या इस समस्या का हल हो सकता है। नहीं, कदापि नहीं।
कैसे पहचाने चमकी बुखार को
तेजी से बुखार आने के साथ पूरे शरीर या किसी खास अंग में ऐंठन होना। दांत पर दांत रगडना, शरीर का निष्क्रिय हो जाना, बेहोश हो जाना आदि।
कैसे करें प्राथमिक उपचार
तेज बुखार होने पर पूरे शरीर को ताजे पानी से पोछें एवं पंखा से हवा करें ताकि बुखार कम हो सके। मरीज के शरीर से कपड़ें हटा लें एवं गर्दन सीधा रखें। पारासिटामोल की गोली व अन्य कोई दवा चिकित्सक की सलाह के बाद ही दें। अगर मुंह से लार या झाग निकल रहा है तो उसे साफ कपड़े से पोछें, जिससे सांस लेने में कोई दिक्कत न हो। बच्चों को लगातार चीनी नमक का घोल पिलाते रहें।
क्या बरतें सावधानी
1. अगर आपके बच्चे में इस बुखार के लक्षण दिखें तो सबसे पहले बच्चे को धूप में जाने से बचाएं।
2. बच्चा तेज धूप के संपर्क में न आने पाए।
3. बच्चों को दिन में दो बार स्नान कराएं।
4. गर्मी के दिनों में बच्चों को ओआरएस अथवा नींबू-पानी-चीनी का घोल पिलाएं।
5.रात में बच्चों को भरपेट भोजन कराकर ही सुलाएं।