पंजाब में नगर निगम चुनावों को लेकर बड़ी अपडेट

पंजाब में पंचायती चुनावों का बिगुल बज चुका है और सभी सियासी पार्टियां पंचायती चुनावों में कूद पड़ी हैं। लोकसभा चुनाव के बाद सभी राजनीतिक दलों की पंचायती चुनावों ती चुनावों में परीक्षा होगी।

मुख्यमंत्री भगवंत मान ऐलान कर चुके हैं कि पंचायती चुनावों में सर्वसम्मति से फैसले किए जाएं। इसके पीछे एक मकसद यह है कि पंचायती चुनावों में धड़ेबाजी उभरने का ज्यादा अंदेशा रहता है और अंततः इसका खमियाजा राजनीतिक दलों को झेलना पड़ता है। पंचायती चुनावों में सरपंचों तथा पंचों के चुनाव को लेकर सभी पार्टियों में धड़ेबाजी रहती है। सत्ताधारी दल को लेकर पंचायती चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवारों में ज्यादा उत्सुकता देखी जाती है इसलिए पंचायती चुनावों में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी कोशिश कर रही है कि सर्वसम्मति से पंचायतों में सरपंचों और पंचों का चुनाव करवा लिया जाए। इससे सरपंचों तथा पंचों के चुनाव को लेकर धड़ेबाजी पर विराम लग सकेगा। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अपने साथी मंत्रियों, विधायकों को संदेश भेजा है कि वे गांवों में सहमति से पंचायतों का चयन करवाने   का प्रयास करें। उन्हें यह बात अच्छी तरह से मालूम है कि अगर पंचायती चुनावों को लेकर धड़ेबाजी उभरी तो बाद में इसका नुकसान पार्टियों को उठाना पड़ता है।

मुख्यमंत्री ने कल अपने पैतृक गांव सतौज में यही संदेश देने का प्रयास किया था। कुछ विधानसभा हलकों में मंत्रियों ने भी सर्वसम्मति बनाने का प्रयास किया है। पंचायती चुनावों के बाद खाली हुई विधानसभा सीटों के उप-चुनाव होंगे। इन विधानसभा सीटों में गिद्दड़बाहा, डेरा बाबा नानक, चब्बेवाल आदि सीटें शामिल हैं। गिद्दड़बाहा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक राजा अमरेंद्र सिंह वडिंग लुधियाना से सांसद निर्वाचित हुए थे। इसी तरह से डेरा बाबा नानक से विधायक सुखजिंद्र सिंह रंधावा गुरदासपुर लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए। चब्बेवाल विधानसभा सीट के विधायक डा. राज कुमार होशियारपुर लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए।  इसी तरह से बरनाला विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक गुरमीत सिंह मीत हेयर संगरूर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे। पंचायती चुनावों के बाद सभी राजनीतिक दलों को विधानसभा सीटों के उप-चुनाव की तैयारियां करनी होंगी। यह उप-चुनाव होने के बाद पंजाब में अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, पटियाला व अन्य कार्पोरेशनों के चुनाव सरकार को करवाने होंगे ताकि निम्न स्तर पर ताकत आबंटित की जा सकें। पिछले डेढ़ वर्षों से कार्पोरेशन के चुनाव नहीं हुए हैं इसलिए ऐसी उम्मीद की जा रही है कि अगले वर्ष जनवरी या फरवरी महीने में कार्पोरेशन चुनाव करवाए जा सकते हैं। अभी कुछ शहरों में वार्डबंदी को लेकर भी काम अधूरा पड़ा हुआ है। इस प्रकार अगले 6 महीनों में सभी राजनीतिक दलों को चुनावों का प्रत्यक्ष तौर पर सामना करना पड़ेगा।

Back to top button