बांके बिहारी मंदिर में परिक्रमा हुई बंद, प्रशासन की ओर से भीड़ को काबू करने की हो रही कोशिश

हाल ही में मथुरा के वृंदावन में स्थित मशहूर बांके बिहारी मंदिर में भीड़ के कारण कई लोगों की मौत की खबरें आई हैं। भीड़ में दम घुटने से हुई लोगों की मौत ने मंदिर में दर्शन की व्यवस्था के साथ प्रशासन पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इसी के बाद प्रशासन, यूपी पुलिस और मंदिर प्रशासन ने सुधार की ओर कड़े कदम उठाए हैं। इनमें मंदिर की परिक्रमा को बंद करने का फैसला भी शामिल है। दरअसल, मंदिर के गेट पर ही भीड़ जमा हो जाती है। मंदिर में रोज हजारों श्रद्धालु बिहारी जी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। ऐसे में प्रशासन की ओर से भीड़ को काबू करने की कोशिश की जा रही है। इसके चलते अब मंदिर के चारों ओर होने वाली परिक्रमा को बंद कर दिया गया है।

बता दें कि बांके बिहारी वृंदावन की तंग गलियों में स्थित है। मंदिर के आसपास दुकानों ने जगह घेरी हुई है। केवल मंदिर परिसर में ही लोगों के लिए जगह दिखती है। वहीं मंदिर परिसर में लोगों के जमा होने पर भीड़ काबू करने के लिए बैरिकेडिंग भी की जाती है। हालांकि ये बैरिकेडिंग त्योहारों पर जैसे होली और जन्माष्टमि पर देखने को मिलती है। आम दिनों में गार्ड और पुलिस की मदद से सुरक्षा व्यवस्था संभाली जाती है। वहीं मंदिर के चारों ओर परिक्रमा मार्ग बेहत सकरा है। छोटा रास्ता होने के कारण वहां भीड़ के साथ गार्ड या पुलिस कर्मी के खड़े होने में समस्या हो जाती है। ऐसे में उस जगह सुरक्षा ढीली पड़ सकती है। इसी के चलते परिक्रमा मार्ग को बंद करते हुए वहां दो पहिया वाहन की पार्किंग करवाई जा रही है। परिक्रमा बंद होने से श्रद्धालुओं ने नाराजगी दिखाई है।

क्यों करते हैं परिक्रमा
हिंदू धर्म में परिक्रमा करने का अपना महत्व है। परिक्रमा भगवान या मंदिर के चारों ओर घूमने को कहते हैं। इसमें एक जगह से शुरू होकर एक चक्र पूरा करके उसी जगह पर वापस लौटा जाता है। मंदिरों के गर्भगृह जहां देवता विराजमान हैं, उनके सामने से शुरू होकर इसे बायं हाथ की तरफ से घूमकर गर्भगृह के पीछे से होते हुए दायं हाथ पर आकर खत्म किया जाता है। हिंदू धर्म में प्रत्येक देवता के लिए, की जाने वाली परिक्रमा की न्यूनतम संख्या तय है। हालांकि ये भी मान्यता है कि किसी भी देवता की 21 बार परिक्रमा करना पवित्र होता है।

ऐसे होते हैं दर्शन पूरे
माना जाता है कि परिक्रमा मंदिर में भगवान के दर्शन करने के बाद की जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान के दर्शन करने के बाद उनके चारों ओर घूमकर उनसे खुद को जोड़ा जाता है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है। 

ये है मान्यता
परिक्रमा को भगवान गणेश से जोड़ा जाता है। माना जाता है कि एक समय देवता अपनी मुश्किल लेकर शिव-पार्वती के पास पहुंचे तो उस समय भगवान गणेश और कार्तिकेय भी माता-पिता के साथ थे। शिव जी ने कहा कि दोनों भाईयों में जो सबसे पहले पृथ्वी का चक्कर लगाएगा वो देवताओं की मुश्किल हल करेगा। ऐसे में प्रतियोगिता का ऐलान होते ही कार्तिकेय अपनी सवारी मोर पर बैठ कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चले गए। गणेण जी वहीं सोच में खड़े रहे कि अपने छोटे से मूषक पर कैसे पृथ्वी के चक्कर लगाएं? उन्होंने इसका हल निकाला और अपने पिता शिवजी और माता पार्वती के 7 चक्कर लगाकर उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। जब कार्तिकेय अपनी यात्रा से लौटे तो खुद को विजेता बताया और गणेश जी से सवाल किया कि तुम पृथ्वी के चक्कर लगाने नहीं गए? इस पर गणेश जी का उत्तर रहा- मेरे माता-पिता में मेरा संसार है। अपने माता-पिता की परिक्रमा करूं या पृथ्वी की, एक ही बात है। इससे खुश होकर शिवजी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कृष्ण पक्ष की चतुर्थी में तुम्हारी पूजा और व्रत करने वाले के सभी दुःख दूर होंगे और भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। बस तभी से परिक्रमा करके भगवान का आशीर्वाद लेने का प्रचलन है।

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