लड़कियों को पीरियड्स पर शर्म नहीं गर्व करना सिखा गए अक्षय कुमार

लड़कियों और महिलाओं को इस गंदगी की वजह और उन दिनों की दुश्वारियों में किन-किन परेशानियों से गुजरना पड़ता है कुछ ऐसी कहानी कहने की कोशिश कर रही है “पैडमैन”। फिल्म के कई सीन और कई डायलॉग झकझोरते हैं। फिल्म में समाज की कुरीतियों को, शर्म को, संवेदना को भर भर कर दिखाया गया है। पीरियड्स को गंदी चीज कहने वालों की सोच शायद फिल्म को देख कर बदले। महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाली सरकार शायद महिला की पहली सबसे बड़ी जरूरत सैनिटरी पैड पर जीएसटी हटाए। उसे सस्ता करने के लिए कुछ कदम उठाए कि हर गरीब महिला उन दिनों में साफ-सफाई का ध्यान रखे और खुद को भी कई तरह की होने वाली बीमारियों से बचा सके।
समाज को खासकर महिलाओं को यह समझना होगा कि हर महीने आने वाला मेंस्ट्रूअल साइकिल महिला वाली बात या कोई शर्म की बात नहीं है। सैनिटरी पैड खरीदने जाने के दौरान शर्माने, घबराने या फिर काली पन्नी में रखने की जरूरत नहीं है। माहवारी (मेंस्ट्रूअल साइकिल) एक सच्चाई है जिसे हर किसी को जानना ही चाहिए। माहवारी और महिला को ध्यान में रखकर आर बाल्की ने एक बेहतरीन फिल्म बनाई है। सब्जेक्ट नया और समाज को जागरूक करने वाला है। अक्षय कुमार और राधिका आप्टे की एक्टिंग रियल लगती है।
कई महिलाएं तो बांझ तक हो जाती हैं। फिर वह खुद सैनिटरी पैड बनाने की कवायद में जुट जाता है। इस सिलसिले में उसे पहले अपनी पत्नी, बहन, मां के साथ साथ समाज से भी दुत्कारा जाता है। गांववाले और समाज उसे एक तरह से बहिष्कृत कर देते हैं, मगर जितना वह जलील होता जाता है उतनी ही उसकी सैनिटरी पैड बनाने की जिद पक्की होती जाती है। परिवार उसे छोड़ देता है, मगर वह अपनी धुन नहीं छोड़ता और आगे इस सफर में उसकी जिद को सच में बदलने के लिए दिल्ली की एमबीए स्टूडेंट परी (सोनम कपूर) उसका साथ देती है।