अखिलेश को लगा बड़ा झटका: निकाय चुनाव में सपा से छिटके मुसलमान, बसपा पहली पसंद


पिछले विधानसभा चुनाव में मुस्लिम इलाकों में सपा को भरपूर समर्थन मिला था। यह अलग बात है कि प्लस वोट नहीं होने के कारण सपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई। इस बार मुस्लिमों का रुझान किसी दल के प्रति एकपक्षीय नहीं रहा। अधिकतर स्थानों पर उनकी पहली पसंद भाजपा को टक्कर देने वाले उम्मीदवार रहे।
सपा में इस बात को लेकर मंथन चल रहा है कि मुस्लिमों के रुझान में यह बदलाव क्यों आया? अभी तक सपा ही भाजपा से मुकाबले के चलते मुस्लिम वोटों पर सबसे मजबूती से दावा करती थी। निकाय चुनाव के दौरान अपने जन्मदिन पर आयोजित समारोह में मुलायम सिंह यादव ने दावा किया था कि आजादी के बाद मुसलमानों ने जितना समर्थन सपा का किया है, उतना किसी अन्य दल का नहीं किया।
मेरठ शहर के मुस्लिम बहुल इलाकों में हाथी मस्त चाल से चला। अलीगढ़ में सपा के पूर्व विधायक जफर आलम 98 हजार से ज्यादा वोट लेकर विधानसभा चुनाव हार गए थे लेकिन मेयर के चुनाव में मुस्लिम इलाकों में लोग साइकिल के बजाय हाथी की सवारी करते नजर आए। कमोबेश यही आलम सहारनपुर का रहा। आठ महीने पहले 1.27 लाख वोट लेकर सहारनपुर नगर से सपा के संजय गर्ग विधायक चुने गए लेकिन उन्हें समर्थन देने वाले मुसलमान निकाय चुनाव में बसपा के साथ खड़े हो गए। यहां मेयर पद पर भाजपा और बसपा में आखिर तक कांटे की टक्कर रही।
उन्हें विधानसभा चुनाव में हार की हमदर्दी का लाभ भी नहीं मिला। इस सीट पर कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे। बरेली में मुस्लिमों का रुझान सपा के प्रति दिखाई दिया। सपा का गढ़ समझे जाने वाले फिरोजाबाद में मुसलमान साइकिल छोड़ ओवैसी की एआईएमआईएम के साथ चले गए। यहां भाजपा के साथ मुख्य मुकाबले में एआईएमआईएम उम्मीदवार रहा। मथुरा व झांसी नगर निगम में मुसलमानों का झुकाव कांग्रेस की तरफ दिखा।