अजुबा: छत्तीसगढ़ के आदिवासी किसान रोग प्रतिरोधक क्षमता कारक ब्लैक राइस की जैविक खेती कर रहे
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। यहां के धान और चावल की वेरायटी की मांग देश-विदेश में है। इसके साथ ही सर्वाधिक खेती का रकबा धान का है।
अब न्यायधानी बिलासपुर के कोटा ब्लॉक में आदिवासी किसान ब्लैक राइस की जैविक खेती पर जोर दे रहे हैं। करगीकला गांव वनांचल के बीच स्थित है।
इस गांव के आदिवासी किसान कृषि में आधुनिक बदलाव करते रहते हैं। इन दिनों यहां के आदिवासी किसान ब्लैक राइस की जैविक खेती कर रहे हैं।
जैविक खेती के जरिए ये दो तरह से ब्लैक राइस का उत्पादन कर रहे हैं। कुछ किसान केवल उच्च गुणवत्ता वाले ब्लैक राइस के बीजों के उत्पादन पर जोर दे रहे हैं तो कुछ किसान ब्लैक राइस की जैविक खेती कर रहे हैं।
आमतौर पर यह मणिपुर की सबसे बेहतरीन धान की वेरायटी है। मणिपुर की वेरायटी को यहां के आदिवासी प्राकृतिक वातावरण के बीच उपजा रहे हैं।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार ब्लैक राइस में एंटी ऑक्सीडेंट के गुण पाए जाते हैं। डायबिटिज और कैंसर जैसे रोगियों के लिए यह चावल रामबाण साबित होता है।
ब्लैक राइस में अन्य चावलों की तुलना में सबसे ज्यादा रोग प्रतिरोधक क्षमता है। इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
कोलेस्टरॉल जीरो फीसद है। इसमें फाइबर के अलावा प्रोटीन की प्रचुरता भी है। वर्तमान समय में जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस संक्रमण के दौर से गुजर रहा है तब इस चावल का उत्पादन समय की मांग बनकर उभर रहा है।
यह चावल मोटापा कम करने के लिए बेहद लाभदायक है। दिल को स्वस्थ्य और मजबूत रखने में भी सहायक है। यह हृदय की धमनियों में अर्थो स्वलेरोसिस प्लेक फॉर्मेशन की संभावना कम करता है।
जिससे हॉर्ट अटैक और स्ट्रोक की संभावना भी कम होती है। इस वजह से इसकी खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ा है और जनसामान्य में ब्लैक राइस की डिमांड भी बढ़ रही है