गाॅसिप करने के फायदे और नुकसान, सही तरीका जानकर ही करें पीठ पीछे बात

शायद ही कोई होगा, जो यह दावा कर सकता है कि वह गॉसिप नहीं करता। पूरे दिन हर कोई थोड़ा बहुत गॉसिप करता ही है। सवाल है क्यों? क्यों हमारे चेतन मन को गपशप अच्छी लगती है? इस गपशप की आदत में ऐसा क्या है, जिसे वैज्ञानिक सही मानते हैं और इसे एक सोशल स्किल बताते हैं।

मेघना को गुमान था कि वे किसी के भी बॉडी लैंग्वेज, चेहरे के हाव-भाव, उनकी आवाज अथवा बोली को परखकर उनके व्यक्तित्व के बारे में बता सकती है। वे दूसरों के सामने किसी भी व्यक्ति के चरित्र का चित्रण जैसा करती वह व्यक्ति वैसा ही निकलता है। लेकिन एक समय आया जब मेघना को अहसास हुआ कि उसने अमुक व्यक्ति को सही से पहचानने में गलती कर दी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वह किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का चित्रण उसके स्वभाव को देखकर नहीं आस-पास से सूनी बातों के आधार पर लेती थी। इस घटना के बाद मेघना को समझ आ गया कि जरूरी नहीं कि हम पहली बार किसी व्यक्ति के बारे में जो सोचते हैं, वही सच हो।

असल में हम खुद से किसी भी नए अमुक व्यक्ति का व्यक्तित्व गढ़ लेते हैं। फिर उसकी अनुपस्थिति में दूसरों से उसके बारे में चर्चा करने लगते हैं, जिससे समाज में उसकी वैसी ही इमेज बन जाती है। आम बोलचाल में पीठ पीछे की गई इन चर्चाओं या बातों को ही ‘गॉसिप’ कहा जाता है। यानी हमारे दिल एवं दिमाग में किसी व्यक्ति के बारे में जो कुछ चल रहा होता है, हम उसे अन्य लोगों से साझा करने लगते हैं। समय-समय पर हुई रिसर्च बताती हैं कि हर दिन लोग कम से कम एक घंटे गॉसिप करते हैं जिसमें निगेटिव गॉसिप की दर अधिक होती है।

स्वाभाविक है गप्पें मारना

अमेरिका की फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च कहती है कि महिलाओं को गपशप करना काफी भाता है। उनके लिए दूसरों पर टीका-टिप्पणी करना एक सामान्य बात है। अक्सर महिलाएं दूसरी महिलाओं के ड्रेसिंग, स्टाइल, उनके लुक, लोक व्यवहार के तरीके, दूसरों से संबंध, कार्यस्थल की बातें, प्रमोशन के मसले और स्वास्थ्य समस्याओं के इर्द-गिर्द गॉसिप करती हैं। तो कई महिलाओं को आस-पास की घटनाओं पर पैनी नजर रखने की आदत होती है। उन्हें लगता है कि इससे उनके जीवन की नीरसता कम होती है।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान की प्रोफेसर मेगन रॉबिन्स के अनुसार, गप्पें मारना स्वाभाविक है। इस से संबंध मजबूत होते हैं। हां, ये गॉसिप तटस्थ एवं सकारात्मक हों तो ज्यादा अच्छा है, क्योंकि नकारात्मक होने से उसका मन पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा लगातार ऐसी चर्चाओं का हिस्सा बनने से तनाव आपको घेर सकता है।

गॉसिप में महिलाएं आगे

महिलाओं पर अक्सर ये तोहमत लगती है कि उन्हें दूसरों की बातों को नमक-मिर्च लगाकर या चटपटा बनाकर पेश करने में मजा आता है। लेकिन जब हम ‘सोशल, साइकोलॉजिकल एवं पर्सनैलिटी साइंस’ जर्नल में प्रकाशित रिसर्च पर नजर डालते हैं, तो कुछ और ही सच सामने आता है।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए इस शोध में जब 467 व्यस्क पुरुषों एवं महिलाओं की दो से पांच दिनों की बातचीत रिकॉर्ड की गई। जिनमें 75 फीसद गॉसिप तटस्थ पाई गईं और बाकी सकारात्मक वह नकारात्मक का मिश्रण थीं। इससे स्पष्ट है कि गॉसिप हमेशा नकारात्मक, दुर्भावनापूर्ण या मिथ्या नहीं होती है। हां, हर मिथ्या गॉसिप अवश्य होती है। इसके अलावा किसी को भरोसे में लिए बिना जब हम उसकी निजी बातें भी सार्वजनिक करते हैं तो वह गॉसिप घातक मानी जाती है।

शामिल हों अच्छी बातें

सवाल है कि विभिन्न संस्कृति, सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि, विभिन्न आयु वर्ग से आने के बावजूद हम गॉसिप क्यों करते हैं? और इन में भी महिलाएं आगे क्यों हैं? जानकारों का कहना है कि बेचैनी, खुद को महत्वपूर्ण साबित करने, बोरियत को दूर करने या असुरक्षित महसूस करने पर महिलाएं गॉसिप करती हैं। दूसरों को जज करने से उन्हें अस्थायी सुकून मिलता है।

संयुक्त परिवारों में पली-बढ़ीं और पेशे से फैशन डिजाइनर निवेदिता अपने अनुभव बताती हैं और कहती हैं, “बचपन से मैंने घर की वयस्क एवं बुजुर्ग महिलाओं को एक-दूसरे के साथ कानाफूसी करते देखा है। जब भी कोई नया सदस्य परिवार में शामिल होता है, उसे जाने बगैर उसके प्रति एक धारणा बना ली जाती है, जिससे घर का पूरा माहौल ही नकारात्मक हो जाता था।”

लाइफ कोच शांभवी की मानें तो, अगर महिलाएं निगेटिव गॉसिप को नजरअंदाज करना सीख लें और देखें कि गॉसिप करने से खुद का व्यक्तित्व कितना प्रभावित होता है। तब वह ऐसी बातचीत से खुद को दूर रख सकेंगी। साथ ही बेचैनी, स्ट्रेस आदि से भी बच सकेंगी। ऐसा करने के लिए वे सकारात्मक चर्चा में भाग लें। गॉसिप के विषयों में मनोरंजन, राजनीति, फैशन या अन्य सामाजिक मुद्दों पर अपने विचार साझा करें।

मजबूत होता सामाजिक दायरा

वैसे, कुछ वैज्ञानिक तथ्य एवं शोध बताते हैं कि गॉसिप करना जरूरी है। गपशप में शामिल होने से ऑक्सीटोसिन नामक हार्मोन में वृद्धि होती है। यह एक ऐसा हार्मोन है, जो अच्छी भावनाओं और सकारात्मक मानवीय अनुभवों जैसे सहानुभूति, मां-शिशु के संबंध और दूसरों के साथ सहयोग से जुड़ा होता है। मेट्रो ट्रेन में यात्रा के दौरान अनुश्री ने जब करीब बैठी एक युवा लड़की को फोन पर किसी को अपने साथ हुए धोखे के बारे में बताते हुए सुना तो उसे अपनी आपबीती याद आ गई। एक पल के लिए परेशान हुईं अनुश्री ने फौरन खुद को संभाला और साथ बैठी उस अनजान लड़की की हिम्मत बढ़ाने लगीं। उसे बीती बातों को भूल आगे बढ़ने की सलाह दी।

अनुश्री बताती हैं, “मैंने महसूस किया है कि बढ़ती उम्र के साथ हम अपने विचारों को सही से अभिव्यक्त करना सीख जाते हैं। असल में कोई भी ज्यादा देर तक निगेटिव बातें सुनना नहीं चाहता है। एक समय के बाद लोग आपसे नजरें चुराने लगते हैं या दूरी बना लेते हैं।”

मेरीलैंड एवं स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने भी अपनी एक रिसर्च में पाया कि अच्छी गपशप से आपका सामाजिक दायरा मजबूत होता है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्र के प्रोफेसर रॉब विल्लर कहते हैं कि ज्यादातर गॉसिप का सकारात्मक एवं सोशल दोनों तरह का प्रभाव देखने को मिलता है।

खुल कर कही बातों का असर

हर्षिता को एक निजी कंपनी में नौकरी करते हुए पांच वर्ष हो गए थे। प्रभावशाली एवं गुणवत्ता वाला काम करने के बावजूद उनकी प्रोन्नति नहीं हो रही थी। जब भी उम्मीद बंधती, कोई दूसरा बाजी मार जाता। हर गुजरते समय के साथ उनके अंदर टीम लीडर एवं प्रबंधन के खिलाफ नाराजगी बढ़ती गई। उसने सहयोगियों के साथ अपने मन की भड़ास निकालनी शुरू की। वे कहती हैं, “पहले मैं अपनी बात किसी से शेयर नहीं करती थी। लेकिन जैसे-जैसे मैंने अपने सहयोगियों के साथ बातें शुरू की, मुझे लगने लगा कि मैं शायद ज्यादा प्रतिक्रियावादी हो रही हूं। मुझे अच्छा लगा कि उन्होंने भी मुझे शांत मन से, परिणाम की इच्छा किए बगैर काम करते रहने की सलाह दी। मुझे अब किसी से कोई शिकवा नहीं है। मैं अपने काम का आनंद ले रही हूं।”

हम कह सकते हैं कि गॉसिप करना भी एक कला है, लेकिन जब हमें पता होता है कि किससे क्या शेयर करना है। अच्छा होगा कि गॉसिप करने की बजाय खुलकर अपने आइडियाज, सपने, शौक और लक्ष्यों के बारे में बताएं। अपने दोस्तों, परिवार की चिंता करना गलत नहीं है। लेकिन उसे झूठ या नकारात्मकता की आड़ में न परोसें।

खूबियों पर बातें हों

प्रसिद्ध मोटिवेशनल स्पीकर बी.के. शिवानी कहती हैं, आपके साथ बहुत से लोग अपनी नकारात्मक बातें, भावनाएं साझा करना चाहते हैं और करते भी हैं। जिससे आपका कोई लेना-देना नहीं होता है। वे सुनाते हैं और आप सुनती हैं। सुनने के बाद वे बातें आपके मन-मस्तिष्क में दर्ज हो जाती हैं। आप उनकी नकारात्मक ऊर्जा ग्रहण करती हैं। इससे दोनों में से किसी को फायदा नहीं है। निगेटिव गॉसिप को न करना सीखें। अपनी बातचीत का विषय बदल दें। अच्छी, सकारात्मक बातें करें।

सकारात्मक बातें करने से आपकी खुद की ऊर्जा बढ़ती है। मन की बात साझा करने में हर्ज नहीं है। लेकिन दूसरों की गलतियां व कमियां देखने व ढूंढने की बजाय उनकी खूबियों को देखें। किसी का दुख और निराशा भरी बातों से अपनी भावनाओं को आहत न होने दें। अपने मन को शक्तिशाली बनाएं।

दिल के लिए दिलासे की तरह

वरिष्ठ मनोचिकित्सक गगनदीप कौर बताती हैं, हर किसी की दिलचस्पी दूसरों की जिंदगी में होती है। महिलाएं जब गॉसिप करती हैं तो सभी अपनी-अपनी लाइफ की निगेटिव बातों को शेयर करती हैं। लेकिन इससे न उनकी परिस्थिति और न ही अमुक व्यक्ति के व्यवहार में कोई बदलाव आता हैं। हां, गॉसिप करने वाले को क्षणिक राहत जरूर महसूस होती है। उन्हें लगता है कि वे कहीं तो अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाईं। किसी ने तो उन्हें सुना। वे अपने दिल को ये दिलासा देती हैं कि सिर्फ उनकी जिंदगी में नकारात्मक एवं निराशाजनक चीजें नहीं हो रही है, बल्कि दूसरों की कहानी भी उन जैसी ही है।

गॉसिप करना एक टेम्पररी, शॉर्ट टर्म इस्केप मैकेनिज्म है यानी अप्रिय तथ्यों या जिम्मेदारियों से बचने के लिए अपनाई जाने वाली एक व्यवहार पद्धति है। जिसमें आप अपनी समस्याओं, व्यक्ति या परिस्थिति का सामना करने की बजाय उससे भागने लगती हैं। यह आपको फौरन समस्याओं से छुटकारा दिलाता है। मगर, इसका कोई दूरगामी प्रभाव नहीं होता।

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