अब मेरी दोनों बेटियां बड़ी हो चुकी हैं और अब मैं अपना समय राजनीती में दे सकती हु: दीपिका चिखलिया
कोरोना संकट के समय चर्चित धारावाहिक रामायण के पहले दूरदर्शन और अब एक सैटेलाइन चैनल पर प्रसारण के चलते इसके कलाकार फिर सुर्खियों में हैं।
धारावाहिक में सीता के चरित्र का अभिनय करने वाली दीपिका चिखलिया मानती हैं कि ऐसा होने से एक बार फिर उन्हें जनसेवा के क्षेत्र में लौटने का बुलावा मिल रहा है।
सिर्फ 26 साल में गुजरात की बड़ौदा लोकसभा सीट से चुनाव जीतने वाली दीपिका अब भी भारतीय जनता पार्टी की सदस्य हैं और एक बार फिर पार्टी के लिए संगठनात्मक भागीदारी निभाना चाहती हैं।
अब जबकि बड़ौदा का नाम बदलकर वडोदरा हो चुका है और इसी सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं, दीपिका को अब भी वे दिन याद हैं जब वह सांसद के तौर पर वडोदरा आया करती थीं।
एक एक्सक्लूसिव बातचीत में वह बताती हैं कि दिल्ली से वडोदरा पहुंचने पर न मुझे समझ आता था कि क्या करना है और न ही भाजपा के स्थानीय नेताओं को। मेरी तो उम्र भी बहुत कम थी। बाद में बीजेपी की सरकार बनी भी वहां तो जल्द ही अगले लोकसभा चुनाव हो गए।
दीपिका ने अपना पहला लोकसभा चुनाव रामायण धारावाहिक से मिली लोकप्रिया के बूते जीता था, तब देश में टेलीविजन सेट्स भी इतने नहीं थे।
इस बार तो रामायण के प्रसार और इसकी दर्शक संख्या ने देश और पूरे विश्व में लोकप्रियता का नया आंकड़ा छुआ है तो क्या अब वह चुनाव लड़ना नहीं चाहेंगी?
दीपिका कहती हैं, “मुझे लगता कि अपनी कंपनी चलाने का जो मुझे अनुभव हुआ है उसका प्रयोग मैं अब संगठन को बनाने और उसे मजबूत करने में कर सकती हूं।
राजनीति के हिसाब से अब भी मैं युवा ही हूं और मुझे लगता है कि जनसेवा के लिए बजाय सरकार में शामिल होने के, संगठन के दैनिक कार्यों में शामिल होना अधिक महत्वपूर्ण है।
मां बनने की वजह से तब मुझे राजनीति से दूरी बनानी पड़ी थी, अब मेरी दोनों बेटियां बड़ी हो चुकी हैं और मैं अपना समय घर से बाहर के कामों में दे सकती हूं।
दीपिका को राजनीति में तब भाजपा के पूर्व अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी लेकर आए थे, अब सत्ता व पार्टी की कमान उनकी अगली पीढ़ी के नेताओं के पास है।
इस पर दीपिका ने कहा कि देश को त्वरित गति से निर्णय लेने वाले नेता की जरूरत महसूस हो रही थी। 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी की जीत इसीलिए हुई कि वह लालफीताशाही से अलग जाकर सीधे जनता से संवाद स्थापित करने में सफल रहे।
गुजरात के लोगों ने उनके काम करने का तरीका देख रखा था और पूरे देश में इसके बारे में लोगों ने सुन भी रखा था। वह हर काम इस तरह से करते हैं कि सीधे आखिरी आदमी तक उनकी भेजी मदद पहुंचे। आडवाणी जी बुजुर्ग हैं। वह पार्टी के सम्मानित नेता है। लेकिन, प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी का नाम आगे कर पार्टी ने अच्छा, सूझबूझ वाला और दूरगामी फैसला किया।