कानपुर-उन्नाव को जोड़ने वाले 149 साल पुराने पुल का एक हिस्सा गिरा!
कानपुर और उन्नाव के बीच शुक्लागंज में गंगा नदी पर ब्रिटिश काल में बने पुल का 30 मीटर लंबा स्पैन (दो पिलर के बीच का हिस्सा) अचानक भरभरा कर गिर गया। यह पुल 149 साल पहले वर्ष 1875 में अंग्रेजों ने बनवाया था। हालांकि पांच पिलर में दरारें आने पर पीडब्ल्यूडी ने इसे तीन साल पहले पूरी तरह बंद कर दिया था। यह पुल दो तल का था। ऊपर के तल पर वाहन और नीचे के तल पर पैदल राहगीर आवागमन करते थे।
शुक्लागंज (गंगाघाट) स्थित पुराने पुल के पिलर संख्या नौ और 10 के बीच का हिस्सा मंगलवार सुबह करीब चार बजे टूट गया। कानपुर की तरफ से पिलर नंबर दो, सात, नौ, 10 और 22 में बड़ी दरारें आ गई थीं। वाहनों के आवागमन के दौरान पिलर की कंक्रीट टूटकर गिरने लगी थी। इस पर पीडब्ल्यूडी की रिपोर्ट पर पांच अप्रैल 2021 को आवागमन बंद कर दिया गया था। कानपुर और उन्नाव जिला प्रशासन ने प्रवेश रोकने के लिए दोनों तरफ पक्की दीवार बना दी थी।
शुक्लागंज में नए गंगापुल पर रोजाना जाम की समस्या होने से स्थानीय लोग पुराने पुल को हल्के वाहनों के लिए खोलने की लगातार मांग कर रहे थे। कानपुर पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर ने एक साल पहले दिल्ली के इंजीनियरों से उच्चस्तरीय तकनीकी जांच भी कराई थी। तकनीकी टीम ने पुल को दो पहिया वाहनों, रिक्शा व इसी तरह के अन्य हल्के वाहनों के चलने लायक बनाने के लिए मरम्मत की बात कही थी और 29.50 करोड़ रुपये का खर्च बताया था। हालांकि खतरे को देखते हुए विभाग ने पहल नहीं की और मामला ठंडे बस्ते में चला गया था।
कानपुर पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर रवि दत्ता ने पुल के टूटे हिस्से का निरीक्षण किया। उन्होंने बताया कि पुल यातायात के लिए पहले से बंद था। कोई जनहानि नहीं हुई है। नदी में गिरे हिस्से को हटाने के लिए एक टीम लगाई गई है। पुल के अन्य जो भी हिस्से ज्यादा क्षतिग्रस्त हैं, उनका भी सर्वे कराया जाएगा।
पुल को पिकनिक स्पॉट बनाने की तैयारी थी
कानपुर की ओर पुल को खोलकर पिकनिक स्पॉट के रूप में विकसित करने की कवायद चल रही थी, लेकिन इसका काम शुरू होता इससे पहले ही पुल गिर गया।
पुल का कुछ और हिस्सा गिरने की कगार पर
गंगा नदी के पुल का जो हिस्सा टूट कर गिरा है उसके दोनों तरफ पिलर नंबर आठ और 11 का हिस्सा भी काफी जर्जर हो चुका है। नाविकों में सुंदरलाल, सोनू, मधुसूदन आदि ने बताया कि पुल के जंग लगे एंगल और पिलर के टुकड़े अक्सर टूट कर गिरते थे। पुल कई और स्थानों पर काफी जर्जर और टूटने के कगार पर है।
पुल का इतिहास
ब्रिटिशकाल में कानपुर से लखनऊ के बीच अंग्रेजों ने जीटी रोड का निर्माण कराया था। गजेटियर के अनुसार, कानपुर और शुक्लागंज (गंगाघाट) के बीच गंगा नदी पर पुल का निर्माण 1875 में उस समय की अवध एंड रुहेलखंड कंपनी ने कराया था। इंजीनियर एसबी न्यूटन और असिस्टेंट इंजीनियर ई वेडगार्ड की देखरेख में यह 800 मीटर लंबा पुल बना था। पुल की उम्र 100 वर्ष बताई गई थी हालांकि यह 149 साल तक मजबूती से खड़ा रहा। इस पुल के गिरने से एक ऐतिहासिक धरोहर को नुकसान हुआ है।
पुल की खासियत
ब्रिटिश इंजीनियरों ने इस पुल को पिलर के ऊपर लोहे के मोटे एंगल से बनाया था। यह पुल दो तल का था। तब निचले तल पर अंग्रेजों ने पैदल आवागमन के लिए बनाया और ऊपरी तल से बग्घी, बैलगाड़ी और अंग्रेज अधिकारियों के वाहनों का आवागमन होता था। बाद में निचले हिस्से से पैदल और साइकिल सवारों को रास्ता दिया गया और ऊपर से वाहनों का आवागमन होने लगा।
1979 में हुआ था जीर्णोद्धार
1875 में बने इस पुल का 1979 में जीर्णोद्धार कराया गया था। तत्कालीन सार्वजनिक निर्माण विभाग के मंत्री त्रिलोक चंद्र ने 20 मई 1979 को पुर्ननिर्माण के बाद इसका लोकार्पण किया था।
कई और पिलर दरके, नावों से आवागमन में खतरा
इस पुल के एक से 12 तक के पिलर कानपुर जिले में और 13 से 24 नंबर तक के पिलर उन्नाव जिले की सीमा में आते हैं। पुल के उन्नाव की तरफ से पिलर नंबर 17, 18 और 20 में भी दरारें हैं। इससे अब नावों से आवागमन और स्नान घाट का भी खतरा बढ़ गया है। हालांकि पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों का कहना है कि यह पुल कानपुर जिले में आता है। पीडब्ल्यूडी के एसई एनके वर्मा ने बताया कि यह पूरा पुल कानपुर सर्किल में है। नदी में नावों से परिवहन और स्नानघाट को फिलहाल कोई खतरा नहीं है।