स्कूल कैब्स की हड़ताल का नहीं निकाला हल, पैरेंट्स हो रहे परेशान

नई दिल्ली. दिल्ली में शुक्रवार को भी स्कूल कैब्स की हड़ताल के कारण अभिभावकों को परेशानी उठानी पड़ी। अभिभावक बच्चों को तैयार कर सड़कों पर कैब्स का इंतजार करते रहे, लेकिन कैब्स नहीं आई। इसके बाद स्कूल पहुंचने की जल्दी में ऑटो, टैक्सी वालों ने मनचाहे दाम वसूले। कुछ अभिभावकों ने ओला-उबर एप का सहारा लेकर बच्चों को स्कूल पहुंचाया, लेकिन अधिकांश अभिभावकों का कहना था कि सरकार और स्कूल इस दिशा में कुछ कर क्यों नहीं रहे? इस तरह तो यह स्कूल कैब्स वाले जब चाहे मनमर्जी करने लगेंगे।

पांडव नगर निवासी पूनम बताती हैं कि बच्ची का दाखिला मयूर विहार फेज वन के स्कूल में कराया हुआ है। कैब चालक रजिस्टर्ड है या नहीं, यह तो नहीं पता लेकिन स्कूल को कैब्स का नंबर, ड्राइवर का नाम और मोबाइल नंबर लिखकर दिया है, क्योंकि स्कूल बस में एक तो समय बहुत लगता है। वह काफी घूमकर आती है और महंगी भी बहुत है। आज तो ऑटो से स्कूल जाने में ही 100 रुपए लग गए। मीटर से चलने को कोई राजी नहीं होता।
ये भी पढ़े: बड़ी ख़बर: …तो ये हैं असली वजह जिससे बंद होंगे 2000 रुपए के नए नोट…
कैब चालकों को हमारी परेशानी भी समझनी चाहिए। जहां तक कैब्स में सेफ्टी की बात है तो इसमें सरकार को कुछ करना चाहिए। सरकार अगर सख्ती करेगी तो अपने आप कैब चालक सुरक्षा के मानक अपनाएंगे। अभी तो सब रामभरोसे चल रहा है।
कैब्स के बारे में रखी जाती है जानकारी
विद्या बाल भवन पब्लिक स्कूल, मयूर विहार फेज-3 के एडमिनिस्ट्रेटर निशांत शर्मा ने कहा कि स्कूल में छात्रों को छोड़ने के लिए जितनी भी कैब्स आती हैं, सबका रजिस्टर स्कूल में मेंटेन होता है। बाकायदा उनसे सेफ्टी नामर्स पर पूरे कागजात की कॉपी ली जाती हैं। कैब्स पर पीली पट्टी के साथ स्कूल वैन लिखा है या नहीं यह भी देखा जाता है। कुछ अभिभावक जिन्होंने अपने रिस्क पर कैब्स हायर की हुई हैं उन्हें निर्देश दिया हुआ है कि वह पेपर पर लिखकर लगाई गई कैब्स की जानकारी दें। साथ ही अपने रिस्क पर अंडरटेकिंग भी दें, क्योंकि बच्चों की सेफ्टी जरूरी है।
कम दरों पर स्कूलों को मिलनी चाहिए बस : आरसी जैन
दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष आरसी जैन ने कहा कि दिल्ली के स्कूल तो दूर की बात है सरकार दिल्ली वालों को डीटीसी की नई बसें दिलाने में ही नाकाम रही है। स्कूल अगर डीटीसी की बसों की डिमांड करते हैं, ताे उन्हें किमी स्कीम की दरों पर बसें प्रोवाइड करा दी जाती हैं। जबकि स्कूलों को कम दरों पर स्कूल बसें मिलनी चाहिए। जिससे अभिभावकों को सस्ती परिवहन सेवा स्कूलों से मिल सके और उन्हें बच्चों की जान का जोखिम लेकर। ऐसे वाहन या कैब्स हायर न करने पड़े तो सुरक्षा के मानकों पर खरे नहीं है।
सबसे बड़ी जरूरत स्कूल कैब्स को लेकर सरकार को एक नीति बनानी चाहिए। खास तरह का रजिस्ट्रेशन इन कैब्स के लिए होना चाहिए। बाकायदा इन कैब्स के लिए सेंट्रलाइज्ड एप सिस्टम भी डवलप हो। जिससे अभिभावकों के बीच इन कैब्स को लेकर संदेह कम हो और यह कब सुरक्षा के सही मानक अपनाएं। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा। इसके पीछे की वजह यह है कि परिवहन विभाग में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। वहां कैब्स को परमिट नहीं दिए जा रहे। ऐसे में लोग पुरानी और सस्ती कैब्स खरीदकर उन्हें ही सड़कों पर दौड़ा रहे हैं।