अरावली पर्वतमाला की परिभाषा पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान

सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला की परिभाषा से जुड़े विवाद पर स्वतः संज्ञान लिया है। पर्यावरणविदों और विपक्षी दलों की ओर से उठी गंभीर चिंताओं के बीच कोर्ट ने इस मामले को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) सूर्यकांत की अगुवाई वाली तीन जजों की अवकाशकालीन बेंच सोमवार, 29 दिसंबर को इसकी सुनवाई करेगी। इस बेंच में सीजेआई सूर्य कांत के अलावा जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस ए.जी. मसीह शामिल हैं।
ये है विवाद की जड़
नवंबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच (तत्कालीन सीजेआई बीआर गवई की अगुवाई में) ने पर्यावरण मंत्रालय की समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया था। इसके तहत अरावली पहाड़ियों को परिभाषित करने का मानदंड तय किया गया। स्थानीय राहत (लोकल रिलीफ) से 100 मीटर या इससे अधिक ऊंचाई वाली भूमि रूपों को ही अरावली हिल्स माना जाएगा। अरावली रेंज को दो या अधिक ऐसी पहाड़ियों के रूप में परिभाषित किया गया जो एक-दूसरे से 500 मीटर की दूरी के भीतर हों।
पर्यावरणविदों का कहना है कि यह नई परिभाषा वैज्ञानिक नहीं है और इससे अरावली का बड़ा हिस्सा (करीब 90 प्रतिशत) संरक्षण से बाहर हो सकता है, जिससे हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में बड़े पैमाने पर खनन और निर्माण गतिविधियां बढ़ सकती हैं। इससे जल संरक्षण, जैव विविधता और मरुस्थलीकरण रोकने में अरावली की भूमिका प्रभावित हो सकती है।
केंद्र सरकार का पक्ष
केंद्र ने सभी राज्यों को अरावली क्षेत्र में नए खनन पट्टे देने पर पूर्ण रोक लगा दी है। पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि अरावली पूरी तरह सुरक्षित है और नई परिभाषा से संरक्षण मजबूत होगा। साथ ही, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) को अतिरिक्त संरक्षित क्षेत्रों की पहचान करने का निर्देश दिया गया है।यह सुनवाई अरावली के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है। कोर्ट क्या फैसला लेता है, इस पर पूरे देश की नजरें टिकी हैं।





