राम नाम की स्याही से दिया 10 वर्ष का रोडमैप, संघर्ष से सृजन तक की सुनाई गाथा

ध्वजारोहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर की पूर्णता के शंखनाद से राष्ट्रीय एकता के नए अध्याय की शुरुआत की। इसी दौरान राम नाम की स्याही से वह देश को आगामी 10 साल का रोडमैप दे गए। इसी रोडमैप के सहारे वर्ष 2047 तक देश को विकसित भारत बनाने का संकल्प भी दोहराया।
500 साल के संघर्षों का प्रतीक रहे राम मंदिर के शिखर पर प्रधानमंत्री ने मंगलवार को धर्मध्वज फहराया तो भारतीय संस्कृति के अभ्युदय का एक नया अध्याय लिखा गया। इस दौरान उन्होंने राम मंदिर और भगवान राम के आदर्शों का हवाला देते हुए अपनी विरासत पर गर्व करने की बात कही। कहा कि देश को आगे बढ़ाना है तो अपनी विरासत पर गर्व पर करना होगा। गुलामी की मानसिकता से पूरी तरह मुक्ति लेनी होगी।
1835 में मैकाले नाम के अंग्रेज ने भारत को अपनी जड़ों से उखाड़ने के बीज बोए थे। उसने भारत में मानसिक गुलामी की नींव रखी थी। मैकाले ने जो सोचा था, उसका प्रभाव कहीं व्यापक हुआ। हमें आजादी तो मिली, लेकिन हीन भावना से मुक्ति नहीं मिली।
वर्ष 2035 में उस अपवित्र घटना के 200 वर्ष पूरे हो रहे हैं। अगले 10 वर्ष में भारत को गुलामी की मानसिकता से मुक्त करके रहेंगे। इसी के बदौलत वर्ष 2047 तक विकसित भारत अपना स्वरूप लेगा।
इस दौरान पीएम ने राम मंदिर के संघर्ष से लेकर सृजन तक की गाथा सुनाई। मंदिर निर्माण के सभी सहयोगियों को नमन किया। सभी दानदाताओं का आभार प्रकट किया। निर्माण से जुड़े श्रमवीर, कारीगर, योजनाकार, वास्तुकार का अभिनंदन करके रामराज्य की परिकल्पना साकार की। साथ ही भविष्य की अयोध्या की अलौकिक झलक की कल्पना भी की।
कहा कि अयोध्या विकसित भारत का मेरुदंड बनकर उभर रही है। भविष्य की अयोध्या में पौराणिकता और नूतनता का संगम होगा। सरयू की अमृत धारा और विकास की धारा एक साथ बहेगी। आध्यात्म और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का तालमेल दिखेगा। भगवान राम के विचार हमारी प्रेरणा बनेंगे और शीघ्र ही भारत विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
उन्होंने रामराज्य की भांति देश के उत्थान और तरक्की के लिए सामाजिक एकजुटता का आह्वान किया। इसके लिए उन्होंने त्रेता युग में भगवान राम के प्रति महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषादराज, मां शबरी, हनुमान के योगदान का उदाहरण दिया।
अजेय अयोध्या से पूरे विश्व को संदेश दे गए मोदी
अयोध्या का अर्थ है जिसके साथ युद्ध करना संभव न हो या अजेय…यानी जिसे जीता न सके वह नगर मंगलवार को उस ऐतिहासिक सत्य का पुनः प्रमाण बना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां पहुंचे और अपने आचरण, संदेश और आध्यात्मिक यात्रा के माध्यम से दुनिया को यह बताया कि अयोध्या केवल एक शहर नहीं, बल्कि अजेय संस्कृति, अमिट आस्था और सनातन आत्मबल का प्रतीक है।
लंका विजय के बाद लक्ष्मण से बात करते हुए श्रीराम कहते हैं कि अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी….अर्थात हे लक्ष्मण! यह लंका सोने से बनी है, फिर भी मुझे अच्छी नहीं लगती, क्योंकि माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
श्रीराम को अयोध्या सबसे अधिक प्रिय थी इसलिए लंका विजय कर जब अयोध्या लौटे थे तो सबसे पहले अयोध्या वासियों से मिले। पीएम मोदी की अयोध्या यात्रा ने उसी भाव को जीवंत किया।
पीएम वैसे तो इससे पहले पांच बार अयोध्या आ चुके हैं, लेकिन यह यात्रा कुछ अलग थी। पीएम मोदी ने अपनी यात्रा की शुरुआत किसी औपचारिक मंच से नहीं, बल्कि अयोध्या वासियों के दर्शन से की। एक किलोमीटर के रोड शो के जरिये उन्होंने अयोध्या वासियों का अभिवादन किया। अयोध्या वासियों ने भी पुष्पवर्षा कर उनका अभिनंदन किया।
इसके बाद प्रधानमंत्री राम मंदिर पहुंचे, जहां उन्होंने सबसे पहले सप्त मंडपम में दर्शन-पूजन किया। यह मात्र दर्शन नहीं था बल्कि एक गहरा प्रतीकात्मक संदेश था। सप्त मंडपम के सातों पात्र (गुरु वशिष्ठ, वाल्मीकि, विश्वामित्र, अगस्त्य, निषादराज, अहिल्या, शबरी) वे सात ध्रुव-तत्व हैं जिन पर भारतीय संस्कृति खड़ी है… गुरु, ज्ञान ,तप ,करुणा ,समरसता , स्त्री-शक्ति और निष्कपट भक्ति। पीएम मोदी ने इन सभी स्थलों पर पूजा कर यही संदेश दिया कि राम मंदिर केवल पत्थरों से बना स्मारक नहीं, यह उन मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा है, जिनसे भारत अजेय बनता है।
अभिजीत मुहूर्त में ध्वजारोहण के मायने
ज्योतिषाचार्य पंडित प्रवीण शर्मा बताते हैं कि अभिजीत मुहूर्त में ध्वजारोहण केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह ब्रह्मांडीय शक्ति के आह्वान का विधान है। इस समय ध्वजा फहराना सनातन धर्म की शाश्वत विजय और लोक कल्याण का संकेत है।
मंदिर के शिखर पर धर्मध्वजा फहराना सूर्य की ऊर्जा से जुड़ा है और अभिजीत मुहूर्त सूर्य के प्रभाव का सर्वाधिक उजास लिए होता है, जिससे धर्म और राष्ट्र बलवान होते हैं, यह मान्यता है। ज्योतिष की दृष्टि से इसे धर्म, शासन और संस्कृति के उत्कर्ष का योग भी माना गया है। राजा-महाराजा अपने विजय अभियान या देवालय के महत्वपूर्ण संस्कारों के लिए चुनते थे। पीएम मोदी भी देश के राजा ही हैं, इसलिए मंगलवार का दिन भारत की आध्यात्मिक शक्ति के पुनरुत्थान का संकेत बन गया है।





