उत्तराखंड: फल-फूलों की खेती से महक रहा प्रदेश

उत्तराखंड की मिट्टी व जलवायु सिर्फ मोटे अनाज की खेती व सेब उत्पादन तक सीमित नहीं रह गई। अब कीवी, ड्रैगन फ्रूट्स, सगंध फसलों व फूलों से उत्तराखंड की खेती महक रही है। वहीं, मशरूम व शहद उत्पादन भी आमदनी का बढ़ा जरिया बना है।

उत्तराखंड में 2.97 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बागवानी फसलों के अधीन हैं। इसमें पांच लाख से अधिक किसान बागवानी फसलों की खेती कर रहे हैं। राज्य गठन से पहले उत्तराखंड के पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों में मोटे अनाजों की खेतकों बदलाव के साथ नकदी फसलों को किसानों ने अपनाया है।

राज्य बनने से पहले मंडुवा व झंगोरे को कोई पूछता था और इसे गरीबों का भोजन का जाता था। आज इन्हीं मोटे अनाजों को मिलेट के रूप में पहचान मिलने के साथ मांग बढ़ी है। जंगली जानवरों के फसलों को नुकसान पहुंचाने से किसानों ने सगंध फसलों को अपनाया है।

प्रदेश सरकार ने कीवी व ड्रैगन फ्रूटस उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कीवी व ड्रैगन फ्रूटस नीति लागू की है। बागेश्वर जिले के कपकोट व कांडा क्षेत्र के किसानों को कीवी का उत्पादन कर रहे हैं। प्रदेश सरकार कीवी खेती पर 80 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है। वर्तमान में 682 हेक्टेयर में 381 मीट्रिक टन कीवी का उत्पादन हो रहा है।

25 साल में 11 प्रतिशत बढ़ा फूलों की खेती रकबा

फूलों का बाजार खूब लगातार बढ़ रहा है। राज्य गठन के समय उत्तराखंड में 150 हेक्टेयर पर फूलों की खेती होती थी। जो वर्तमान में 1650 हेक्टेयर तक पहुंच गई है। किसान जरबेरा, कारनेशन, ग्लेडियोलाई, गुलाब, लिलियम, रजनीगंधा समेत अन्य फूलों का उत्पादन कर रहे हैं।

बिना जमीन के मशरूम उत्पादन बना आमदनी का जरिया

उत्तराखंड में मशरूम प्राकृतिक रूप से उगता है। लेकिन अब मशरूम उत्पादन स्वरोजगार के रूप में आमदनी का बढ़ा जरिया बना है। वर्तमान में प्रदेश में मशरूम उत्पादन की 380 यूनिट स्थापित है। इन इकाइयों में दो हजार मीट्रिक टन मशरूम का उत्पादन किया जा रहा है।

बुरांश व माल्टा जूस की बढ़ी मांग

बुरांश उत्तराखंड का राज्य पुष्प भी है। बुरांश प्राकृतिक रूप से मध्य हिमालयी क्षेत्रों में उगता है। पहले लोग बुरांश फूल का चटनी के रूप में इस्तेमाल करते थे। आज बुरांश का जूस तैयार हो रहा है। कई स्वयं सहायता समूह बुरांश जूस का कारोबार कर रहे हैं। पहाड़ का माल्टा स्वाद व रस के लिए जाना जाता है। माल्टा का जूस की मांग बढ़ी है।

हाउस ऑफ हिमालयाज ब्रांड से मिल रहा बाजार

स्थानीय उत्पादों की मार्केटिंग व पैकेजिंग के लिए सरकार ने हाउस ऑफ हिमालयाज ब्रांड बनाया है। इस ब्रांड के माध्यम से 35 स्थानीय उत्पादों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के साथ बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है।

उत्तराखंड के सेब बना रहा पहचान

राज्य गठन से पहले चाखुटिया में विदेश से आयात की गई सेब की प्रजाति की नर्सरी तैयार की गई। यहां से हिमाचल के लिए सेब पौधे ले जाए गए। लेकिन उत्तराखंड सेब उत्पादन में पहचान नहीं बनाया था। हिमालय व जम्मू कश्मीर का सेब देश दुनिया में प्रसिद्ध था। उत्तराखंड में सेब उत्पादन में आगे बढ़ रहा है। अब यहां के सेब को पहचान मिल रही है।

100 करोड़ तक पहुंचा एरोमा का कारोबार

उत्तराखंड प्राकृतिक संपदा का खजाना है। राज्य गठन के समय एरोमा फसलों की व्यावसायिक खेती नहीं होती थी। प्राकृतिक रूप से उगने वाली सगंध फसलों को औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। 25 वर्षों में प्रदेश के 22 हजार किसानों ने डेमस्क गुलाब, मिंट, तेजपात, लैमनग्रास, जिरेनियम, कालाजीरा, रोजमेरी समेत अन्य सगंध फसलों की खेती अपनाई है। उत्तराखंड सगंध फसलों से 100 करोड़ का कारोबार कर रहा है।

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