हरियाणा में एक ऐसा मंदिर, जहां नहीं पड़ता सूर्यग्रहण का प्रभाव

हरियाणा के यमुनानगर के व्यासपुर में कपालमोचन स्थित सूरजकुंड सरोवर की विश्वभर में अलग पहचान है। दंत कथाओं के मुताबिक यह कुंड द्वापर युग से भी पुराना है। देशभर से लोग पारिवारिक सुख-समृद्धि व पुत्र प्राप्ति की मनोकामना लेकर यहां पहुंचते हैं और मनोकामना पूरी होने पर दोबारा यहां स्नान करने आते हैं।

मान्यता है कि यह सरोवर युगों पुराना है। किसी से भी कपालमोचन के स्नान की शुरुआत के बारे पूछा जाता है तो सिर्फ यही जवाब आता है कि सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ही यहां इसी तरह श्रद्धालु आते रहे हैं। क्योंकि इस स्थान पर 33 कोटि देवी-देवता से लेकर सिखों के गुरु भी आते रहे हैं। यहां कई जगह भगवान के साक्षात आने के साक्ष्य मिलते रहे हैं। इस तीर्थ पर श्रद्धा भाव से आने वाले हर व्यक्ति की इच्छा पूरी होती है। ज्यादातर श्रद्धालु पंजाब से आते हैं।

सूरजकुंड के बारे में श्रद्धालुओं ने बताया कि जिस तरह वह ग्रंथ पढ़ते हैं उनसे ज्ञात होता है कि जब कुंती 14 वर्ष की थी तब उसने सूर्य की उपासना की जिससे प्रसन्न होकर सूर्य भगवान से उन्हे फल के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई। एक श्रद्धालु ने बताया कि कुंती तब तक अविवाहित थी इसलिए सूर्य भगवान ने पुत्र को लकड़ी के बॉक्स में डालकर कुंड में छोड़ने को कहा। इसके बाद एक भील ने उस बॉक्स को बाहर निकाला और उस बच्चे को पाला जिसका नाम कर्ण रखा गया। कर्ण इतना बलशाली था कि युद्ध में जिस तरफ वह होता था जीत उसी की होती थी। उन्होंने बताया कि ऐसी मान्यता है कि अब जो भी यहां पुत्र प्राप्ति के लिए मान्यता मांगने आता है उसकी मनोकामना पूरी होती है।

आसपास के लोग कहते है कि जन्म के साथ ही वह तीर्थ के बारे में जन्म के साथ ही दंत कथाएं सुनते रहे हैं। भगवान शिव, ब्रह्मा, विष्णु, पांडव, श्रीकृष्ण, सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह इस स्थान पर आए।

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