बच्चों की फिजिकल और मेंटल हेल्थ के लिए जरूरी है ब्रेक

भागदौड़ भरी जिंदगी में, पढ़ाई, स्कूल का काम, ट्यूशन, खेल और अन्य एक्स्ट्रा-करिकुलर एक्टिविटीज के बीच, बच्चों के पास खुद के लिए समय नहीं बचता। ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम उन्हें सिखाएं कि ब्रेक लेना कितना जरूरी है। पैरेंटिंग काउंसलर रितु सिंगल मानती हैं कि ब्रेक सिर्फ आराम करने का जरिया नहीं, बल्कि बच्चों की शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए भी बेहद अहम है।
हर हफ्ते हमें दिल दहला देने वाले समाचार मिलते हैं: 17 साल के बच्चे की हार्ट अटैक से मौत या एक टॉपर का अपना जीवन खुद खत्म कर लेना। बीते माह ग्रेटर नोएडा के छात्र ने आत्महत्या कर ली और लिखा कि ‘मैं किसी काम का नहीं। तनाव और दबाव अब और सहन नहीं कर पा रहा।’ तो वहीं हाल ही में नीट क्वालिफाई करने वाले छात्र ने मरने से पहले लिखा- ‘मैं डॉक्टर नहीं बनना चाहता।’ ये शब्द उस घुटन को दर्शाते हैं, जिसे कई युवा चुपचाप भीतर लिए घूम रहे हैं।
एक अभिभावक ने चौथी कक्षा में पढ़ रहे अपने बेटे के बारे में बताया, जो पहले ही चार ट्यूशन, फुटबाल अभ्यास और रोबोटिक्स क्लास में जाता था। जब वह घर आता, तो होमवर्क करते समय रोने लगता। एक दिन, उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया और बाहर आने से मना कर दिया। यह आलस्य नहीं था, यह थकान थी।
एक अन्य किशोरी, जो 95% अंक लाकर भी अच्छा महसूस नहीं कर रही थी क्योंकि वह स्वयं की तुलना 97% लाने वाली चचेरी बड़ी बहन से करती थी। दबाव बाहर से नहीं था, उसके अंदर भी था। बच्चे उम्मीदों को स्पंज की तरह सोख लेते हैं।
कहीं समाचार में पढ़ा था कि एक 16 साल की लड़की स्कूल असेंबली के दौरान बेहोश हो गई क्योंकि वह ओलंपियाड की तैयारी के लिए सुबह तीन बजे तक जगी थी। होश में आने के बाद उसके शब्द स्तब्ध कर देने वाले थे- ‘मुझे याद नहीं कि मैंने आखिरी बार कब सिर्फ खेला था।’
रितु सिंगल कहती हैं कि बतौर लाइफ कोच मैं जिन भी माता-पिता से मिलती हूं, वे यही चिंता साझा करते हैं कि ‘अगर मेरा बच्चा हर क्षेत्र में कुशल नहीं होगा, तो वह पीछे रह जाएगा।’ लेकिन क्या होगा अगर इसी भाग-दौड़ में वे अपना स्वास्थ्य, अपनी चमक और जीवन के प्रति उत्साह ही खो दें! एक अच्छी कहानी में कुछ अल्पविराम और विराम अवश्य होते हैं अन्यथा उसे लगातार पढ़ते-पढ़ते आपकी सांस उखड़ जाएगी। ऐसा ही कुछ प्रभाव होता है जब जीवनरूपी अनुच्छेद पढ़ रहे बच्चे याद ही नहीं रख पाते कि उन्हें अल्पविराम की जरूरत है और उनकी सांसें उखड़ने लगती हैं।
विकल्प नहीं, जरूरत है अल्पविराम
बच्चों का तनाव अलग तरह से दिखता है: एक बच्चा जो कभी हंसमुख था, वह चिड़चिड़ा हो जाता है। जिसकी भूख अच्छी थी, वह मनपसंद खाने या खेल में भी रुचि खो देता है। ये अति-व्यस्त जीवन की फुसफुसाहटें हैं। फुर्सत न होने का खतरा वास्तविक है। अति-व्यस्त बच्चे ऐसे वयस्क बनते हैं, जिन्हें ‘स्विच ऑफ’ करना नहीं आता। हम पहले से ही देख रहे हैं कि आज तमाम युवा पेशेवर जीवन में आगे बढ़ने की दौड़ में हार्ट अटैक या स्ट्रोक के शिकार हो रहे हैं या ऊंचे वेतन के बावजूद खालीपन महसूस कर रहे हैं।
आराम है जरूरी
हमें परिवार का माहौल ऐसा रखना चाहिए कि हमेशा भागने-दौड़ने के बजाय कुछ समय आराम करने और बीतते पल का आनंद लेने में भी व्यतीत हो। आराम करने का मतलब नाचना, कामिक्स पढ़ना, पेंटिंग करना या बस चुपचाप बैठना, कुछ भी हो सकता है। आज बच्चे फुर्सत के साथ दोस्ती करना सीख ही नहीं पाते। विराम लेना समय बर्बाद करना नहीं है।
यह जीवन का कौशल है। बच्चों को हर क्षेत्र में सबसे आगे आने के लिए तैयार करने से बेहतर है उन्हें बेहतर जीवन के लिए तैयार करें। संतुलन के बिना सफलता क्षणिक होती है। जब आप बच्चों को आराम करने या ब्रेक लेने की कला सिखाते हैं, तो आप उन्हें धीमा नहीं कर रहे होते, बल्कि उन्हें और दूर तक और मजबूती से और खुशी के साथ दौड़ने के लिए तैयार कर देते हैं।
संकेत कि आपका बच्चा हो सकता है तनावग्रस्त
चिड़चिड़ापन या बार-बार रोना, जो ‘असामान्य’ लगे।
सिरदर्द, पेट दर्द, या लगातार थकान की शिकायत।
भूख में बदलाव, नींद न आना, बेचैनी, या जागने पर भी थका हुआ महसूस करना।
दोस्तों या उन गतिविधियों में रुचि खो देना, जिनका वह पहले आनंद लेता था।
बहुत कोशिश करने के बावजूद पढ़ाई या खेल में खराब प्रदर्शन करना।
अगर आप इनमें से दो या अधिक लक्षणों को एक साथ देखते हैं, तो रुकें और सोचें। यह शायद ‘बस आज-कल की बात है’ नहीं हो सकता—यह तनाव है, जो आपके ध्यान की मांग कर रहा है।
खुद से पूछें माता-पिता
कई माता-पिता कहते हैं कि वे बच्चों पर कोई दबाव नहीं डालते मगर कभी-कभी उन पर यह दबाव परोक्ष रूप से पड़ जाता है, इसलिए आत्ममंथन करना जरूरी है कि:
क्या बच्चा दिन के अंत में आपसे ज्यादा थका है।
क्या बच्चे के पास बिना अपराधबोध के ‘कुछ न करने’ के लिए समय है।
पिछली बार एक परिवार के रूप में कब हंसे या सुख के पल बिताए?
क्या बच्चे के लिए केवल व्यस्तता का माडल प्रस्तुत कर रहे हैं या संतुलन भी सिखा रहे हैं।
क्या उन्हें सिर्फ ट्राफी जुटाने वाले या बर्नआउट बना रहे रहे हैं।