क्यों करना पड़ा था अधिक मास का निर्माण, हिरण्यकश्यप से जुड़ी है कथा

आप सभी ने हिरण्यकश्यप और उसके पुत्र प्रहलाद से संबंधित कथा के बारे में जरूर सुना होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अधिक मास जिसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है का संबंध भी इसी कथा से जुड़ा हुआ है। चलिए जानते हैं इस पौराणिक कथा के बारे में।

अधिक मास को पुरुषोत्तम मास या मलमास के रूप में भी जाना जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर तीन साल बाद एक अतिरिक्त माह आता है, जिसे हम अधिक मास के रूप में जानते हैं। अधिक मास के निर्माण के पीछे एक पौराणिक कथा मिलती है, जिसका वर्णन विष्णु पुराण में किया गया है।

मांगा यह वरदान
कथा के अनुसार, आदि पुरुष कश्यप और अदिति के दो पुत्र थे हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष। हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और यह वरदान मांगा कि, ‘ मेरी मृत्यु न किसी मनुष्य के हाथों हो और न ही किस पशु से। न कोई देवता मुझे मार सके और न ही कोई दैत्य। मैं न तो दिन में मरू न ही रात में, न घर के अंदर मरो न ही घर के बाहर, न पृथ्वी पर न आकाश में। न किसी अस्त्र-शस्त्र से मेरी मृत्यु हो, न आपके बनाए गए 12 माह में।

अपने पुत्र को दी कई यातनाएं
तब ब्रह्माजी जी उसे तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए। इस वरदान के कारण हिरण्यकश्यप में अहंकार उत्पन्न हो गया और उसके अत्याचार बढ़ गए। उसने युद्ध कर देवराज इंद्र से स्वर्ग छीन लिया। लेकिन उसका प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनंत भक्त था और यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल पसंद नहीं थी। उसने अपने पुत्र को कई यातनाएं दीं जैसे ऊंची चोटी से फिंकवाना, हाथी से कुचलवाया और अपनी बहन होलिका के जरिए उसका अग्निदाह करवाना। लेकिन प्रह्लाद पर इनका कोई प्रभाव नहीं हुआ और उसने अपनी भक्ति नहीं छोड़ी।

इस तरह निकला वरदान का तोड़

अंत में जब हिरण्यकश्यप के पापों का घड़ा भर गया, तब भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए। उन्होंने हिरण्यकशिपु से कहा कि, तुम्हारे वरदान के अनुसार, मैं न में मनुष्य हूं और न ही पशु। यह शाम का समय है, यानी न ही इस समय दिन है और न रात। तुम इस समय दहलीज (देहरी) पर हो, यानी न तो तुम घर के अंदर हो और न ही घर के बाहर।

हिरण्यकशिपु तुझे में किसी अस्त्र या शस्त्र से नहीं, बल्कि अपने नाखूनों से मारूंगा। और यह अधिक मास है, यानी वर्ष का 13 माह, जो कि तुम्हारे इस वरदान के तोड़ के रूप में बनाया गया है। इस प्रकार भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।

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