जैन धर्म में इस तरह मनाते हैं रोट तीज, बहुत ही खास संदेश देता है यह पर्व

जैन धर्म में हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल में आने वाली तृतीया तिथि पर त्रिलोक तीज या रोट तीज का पर्व मनाया जाता है। वहीं हिंदू धर्म में इस दिन को हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में रोट तीज व्रत आज यानी 26 अगस्त के दिन किया जा रहा है। जैन धर्म में इस दिन पर 24 तीर्थंकरों की आराधना की जाती है।
त्रिलोक तीज या रोट तीज जैन धर्म का एक विशेष पर्व है। इस व्रत में केवल एक ही अनाज से बने भोजन का सेवन किया जाता है। यह व्रत केवल पूजा का ही प्रतीक नहीं हैं, बल्कि यह आत्मा की मुक्ति के मार्ग को याद करने का अवसर भी प्रदान करता है।
इसके साथ ही इस पर्व से यह भी संदेश मिलता है कि भौतिक सुख-सुविधाएं जीवन का आधार नहीं हैं, बल्कि संयम ही सच्चा सुख देता है। चलिए जानते हैं इस पर्व से जुड़ी खास बातें।
किए जाते हैं ये काम
रोट तीज व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके साथ-सुथरे कपड़े पहनने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। इस दिन स्त्रियां और पुरुष दोनों व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिर जाकर 24 तीर्थंकरों की पूजा की जाती है, जिसे चौबीसी विधान कहते हैं।
पुरुषों द्वारा भगवान की मूर्ति का अभिषेक किया जाता है। विधि विधान से पूजा-अर्चना करने के बाद व्रत कथा का पाठ किया जाता है। इस व्रत में रोटी, खीर और तुरई की सब्जी बनाई जाती है और पूजन के बाद यह भोग गाय को खिलाया जाता है। पूजा के दौरान इन मंत्रों का जप भी किया जाता है –
ॐ ह्रीं श्री क्लीं चौबीसी व्रताय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा’
ॐ ह्रीं वृषाभादि-महावीर-पर्यंत-चतुर्विशति-तीर्थंकर असि आ उसा नम: स्वाहा’
क्या हैं नियम
रोट तीज का व्रत 3, 12 या फिर 24 वर्षों तक रखा जा सकता है। इस दिन एकासन किया जाता है, जिसमें दिन में केवल एक बार, एक अन्न का रोट खाया जाता है। इस दिन पर दान देने का भी बहुत अधिक महत्व माना गया है।
इस दिन व्रत करने वाले साधक केलव धर्म ध्यान में लीन रहते हैं और नकारात्मक विचारों व आचरण का त्याग करने का संकल्प भी लेते हैं। रोट तीज या त्रिलोक तीज का मुख्य उद्देश्य मानसिक शांति प्राप्त करना और मोक्ष की ओर बढ़ना है।