वास्तु के अनुसार घर में गणेश जी की मूर्ति कैसे स्थापित करें?

घर में मूर्तियों पेंटिंग्स और सजावट के रूप में गणेश जी की उपस्थिति आम है। वहीं वास्तु के अनुसार देवस्थान में एक भगवान की एक ही मूर्ति होनी चाहिए। ऐसे में जब गणेश चतुर्थी पर आप ले आएंगे एक और गणपति (Ganesh Murti ) तो कैसे रहेगा वास्तु में संतुलन बता रही हैं वास्तु विशेषज्ञ डा. जय मदान।

बस गिनती के बचे हैं दिन, जब घर आएंगे गणपति। गणेश जी का स्थान घर के पूजास्थल में तो होता ही है, अक्सर दीवार घड़ी से लेकर मूर्ति और पेंटिंग तक, किसी भी तरह की सजावट हो, गणपति घर आ जाते हैं। देखने बैठें तो घर के कोने-कोने से लेकर गाड़ी के डैशबोर्ड तक गणेश जी मौजूद होते हैं। सवाल है कि इतने सारे गणपति हों तो घर में वास्तु का संतुलन कैसे बने?

एक मूर्ति का रहस्य
वास्तु शास्त्र के अनुसार, पूजा घर में किसी भी देवी-देवता की केवल एक ही मूर्ति रखनी चाहिए। यह ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित और केंद्रित रखता है। यदि आपके पास गणेश जी की कई मूर्तियां हैं, जो उपहार, सजावट या संग्रह के रूप में आई हैं, तो उन्हें पूजाघर के बजाय घर के अन्य हिस्सों में सम्मानजनक ढंग से स्थापित किया जा सकता है।

दिशा और मुद्रा भी है खास
गणेश जी की मूर्ति को सही दिशा में स्थापित करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसमें उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) दिशा सबसे शुभ मानी जाती है। यहां मूर्ति स्थापित करने से आध्यात्मिक विकास और शांति मिलती है। वहीं उत्तर दिशा बुद्धि और धन का क्षेत्र मानी जाती है, जहां गणेश जी को स्थापित करने से ज्ञान और समृद्धि आती है। एक बात और, जब आप गणपति की मूर्ति लेने जाते होंगे तो संशय में पड़ जाते होंगे कि उनकी सूंड की दिशा क्या हो? यह आपकी आवश्यकता पर निर्भर करता है। वाममुखी (बाईं ओर) सूंड चंद्रमा की शीतल ऊर्जा से जुड़ी होती है, जो घर में शांति, समृद्धि और सामंजस्य लाती है।

यह गृहस्थ जीवन के लिए सबसे उपयुक्त है। वहीं दक्षिणमुखी (दाईं ओर) सूंड सूर्य की तीव्र ऊर्जा से जुड़ी है। यह अनुशासन, तपस्या तथा शक्ति का प्रतीक है और मंदिरों, साधना स्थलों के लिए उपयुक्त है। सीधी सूंड पूर्ण संतुलन और तटस्थता का प्रतीक है, जिसे कार्यस्थलों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।

जाकी रही भावना जैसी
गणपति ऐसे भगवान है, जिनको भक्त जिस मुद्रा में चाहे, परिवर्तित कर लेते हैं। बैठी हुई मुद्रा वाले गणपति स्थिरता, एकाग्रता और शांत मन का प्रतीक हैं। यह मूर्ति पूजा घर, पुस्तकालय या ध्यान के लिए उपयुक्त है। खड़ी हुई मुद्रा वाले गणपति ऊर्जा, गति और समृद्धि का प्रतीक हैं। ऐसी मूर्ति को मुख्य द्वार के पास स्थापित करना शुभ होता है। नृत्य मुद्रा में आए गणपति रचनात्मकता और आनंद का प्रतीक हैं। इन्हें कला कक्ष या रचनात्मक कार्यों वाले स्थान पर रखना चाहिए।

वर्जित हैं ये स्थान
कुछ स्थान ऐसे हैं जहां गणेश जी की मूर्ति को बिल्कुल भी नहीं रखना चाहिए। शयनकक्ष, स्नानघर या शौचालय के पास, सीढ़ियों के नीचे, कचरापेटी के पास या अंधेरे कोने में और विशेषकर दक्षिणमुखी दीवार के पास गणेश जी की तस्वीर या मूर्ति शुभ नहीं मानी जाती है। एक बात और, गणपति जिस भी रूप या तरीके से आपके पास आएं, उनकी हर मूर्ति-स्वरूप का सम्मान करें।

उन्हें नियमित रूप से साफ करें। गणेश जी की धातु, पत्थर या सजावटी सामग्रियों से बनी मूर्तियों का उद्देश्य पूजा करना नहीं है। उन्हें प्रतीकात्मक कला मानें। स्थिरता व शक्ति को संतुलित करने के लिए उन्हें घर के पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम कोने में रखें।

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