एक बेघर डायरेक्टर ने बचाया था Amitabh Bachchan का करियर, कभी सड़क पर बेचता था कार्पेट

हिंदी सिनेमा की कहानी दिग्गज अभिनेताओं, आईकॉनिक गानों और कुछ यादगार डायलॉग्स से भरी पड़ी है। लेकिन इस चमकदार पर्दे के पीछे कुछ नाम ऐसे भी हैं जिनका योगदान अक्सर अनदेखा रह जाता है। ऐसा ही एक नाम है गोपालदास परमानंद सिप्पी, जिन्हें जीपी सिप्पी के नाम से जाना जाता है। जीपी सिप्पी ने शोले का निर्माण किया। वह फिल्म जिसने फिल्म निर्माण की नई परिभाषा गढ़ी और अमिताभ बच्चन के लड़खड़ाते करियर को नई जिंदगी दी।

सिर्फ एक ब्लॉकबस्टर निर्माता से कहीं ज्यादा,सिप्पी का सफर लचीलेपन, नए आविष्कार और सिनेमाई प्रतिभा की एक झलक की कहानी कहता है जिसने रामगढ़ नाम के एक धूल भरे, डकैतों से भरे गांव की कहानी सबके सामने पेश की।

कहां से आए थे जीपी सिप्पी?
सिप्पी का जन्म विभाजन-पूर्व कराची में एक धनी व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती जीवन लक्जरी में बिताया। उनके परिवार के पास एक आलीशान बंगला और बिजनेस के लिए कई संपत्तियां थीं। लेकिन 1947 के विभाजन ने रातोंरात यह सब छीन लिया। सब कुछ पीछे छोड़ने के लिए मजबूर होकर, सिप्पी मुंबई भाग आए। मुंबई आकर उन्होंने एक शरणार्थी के रूप में जीवन बिताया ना कि किसी रईस के तौर पर क्योंकि उनका सबकुछ पीछे छूट चुका था।

कई बिजनेस किए लेकिन नहीं चले
अब जीवित रहना ही एकमात्र लक्ष्य था, इसलिए सिप्पी ने कई व्यवसायों में हाथ आजमाया। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कालीन बेचे और मुंबई में एक छोटा सा रेस्टोरेंट भी खोला। कुछ भी टिक नहीं पाया। इसके बाद कोलाबा में एक अधूरी इमारत मिलने के बाद ही उनकी किस्मत बदली। उन्होंने उसे खरीदा, मुनाफे पर बेचा और रियल एस्टेट में एक नया करियर शुरू किया।

पहली फिल्म असफल रही
प्रॉपर्टी से कुछ पैसा कमाने के बाद, जीपी सिप्पी ने सिनेमा की ओर रुख किया। एक ऐसी दुनिया जिसने नए आजाद देश में कई लोगों को आकर्षित किया। 1953 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘सजा’ बनाई। इस फिल्म ने उन्हें प्रसिद्धि तो नहीं दिलाई, लेकिन इसने एक लंबी और लगातार फिल्मोग्राफी की शुरुआत की। सालों तक, सिप्पी को एक बी-ग्रेड निर्माता के रूप में जाना जाता था, जो कभी-कभार निर्देशन और अभिनय में भी हाथ आजमाते थे, लेकिन उन्हें कभी स्थायी सफलता नहीं मिली।

कौन-कौन से कलाकार आए थे नजर
यह तब बदलना शुरू हुआ जब उन्होंने अपने बेटे रमेश सिप्पी को लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से भारत वापस बुला लिया। अपने पिता के बैनर तले रमेश ने अंदाज और सीता और गीता जैसी फिल्में बनाईं। दोनों ही सफल हुईं। फिर आया साल 1975। धर्मेंद्र, संजीव कुमार, अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी, जया बच्चन जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ शोले का निर्माण हुआ। अमजद खान को गब्बर के तौर पर देखकर लोग चौंक गए। 3 करोड़ रुपये के बजट के साथ, यह उस समय की अब तक की सबसे महंगी हिंदी फिल्म थी।

रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित और प्रसिद्ध जोड़ी सलीम-जावेद द्वारा लिखित, शोले ने रिकॉर्ड तोड़ दिए। यह लगातार पांच वर्षों तक सिनेमाघरों में चली और कई रिकॉर्ड तोड़ दिए।

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