देवाधिदेव शिव से अपनाएं त्याग व समर्पण की भावना

लेख में श्रीधरानंद ब्रह्मचारी (महंत श्री मनकामेश्वर महादेव मंदिर प्रयागराज) शिव के महत्व पर प्रकाश डालते हैं। शिव स्वयंभू शाश्वत और विश्व चेतना के आधार हैं। सत्य त्याग और समर्पण से शिव की कृपा प्राप्त होती है। जड़ और आत्म तत्व के समन्वय से जीवन सत्यम् शिवम् सुंदरम् बनता है। श्रावण मास में शिव की उपासना और उनके गुणों को अपनाने का संकल्प लेना चाहिए।
शिव जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता है, विश्व चेतना हैं और ब्रह्मांडीय अस्तित्व के आधार हैं। शिव जहां रहते हैं उस स्थान को सिद्ध और व्यक्ति को प्रसिद्ध कर देते हैं। भक्त में अगर त्याग, समर्पण, सच्चाई व सदाचार है तो वह शिव की कृपा का स्वतः पात्र बन जाता है। हर व्यक्ति के दो तत्व होते हैं एक जड़ तत्व और दूसरा आत्मतत्व। जड़ तत्व तन, मन, विवेक व स्वभाव है, जबकि आत्मतत्व सत्य से जुड़ा है। जहां सत्य है शिव वहीं होते हैं। जहां शिव होते हैं, वहां अनंत इच्छाओं की स्वतः पूर्ति होती है।
शिव संस्कारी, त्यागी, अहंकारविहीन व कष्ट हरने वाले हैं। हम काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ के वशीभूत कभी न बनें। इनके वशीभूत होते हैं तो पतन निश्चित है। अगर जीवन को सत्यम् शिवम् सुंदरम् बनाना चाहते हैं तो जगद्गुरु भगवान शिव के सानिध्य में बैठें।
गुणों को आत्मसात करें
उनकी उपासना करें, उनके स्वरूप को जानें और गुणों को आत्मसात करें। श्रावण मास (Sawan 2025) में हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि कि हम शिव जैसा ही बनेंगे। श्रावण मास को शिवजी की पूजा के लिए शुभ माना जाता है। सोमवार के स्वामी भगवान शंकर हैं, इसलिए श्रावण के महीने में सोमवार के दिन उनकी पूजा करने से वे अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
माना जाता है कि सावन का महीना शिवजी का प्रिय होने की वजह यह है कि इसमें सबसे ज्यादा वर्षा होती है। अधिक वर्षा विष से गर्म शिवजी के शरीर को ठंडक प्रदान करती है।
भगवान शिव एक प्रतीक हैं
शिव ने मस्तक पर चंद्र देव को धारण किया है। चंद्रमा से शांति और शीतलता प्राप्त होती है। इससे यह सीख मिलती है कि जीवन में किसी भी परिस्थिति में शांति बनाए रखना बेहद जरूरी होता है और मन को काबू में रखना चाहिए। भगवान शिव एक प्रतीक हैं कि जीवन में चाहे कितनी भी विसंगतियां हों, हमेशा सामान्य व्यवहार में मनुष्य को रहना चाहिए।