अगर एक ही स्कूल में पढ़ने जाते हैं बच्चे, तो इन बातों का ध्यान जरूर रखें पेरेंट्स

अभी पिछले रविवार की बात है, जब सुमेधा की छोटी बेटी इस बात को लेकर उत्साहित थी कि अब वह भी अपने बड़े भाई के साथ स्कूल जाएगी। पांचवी कक्षा में पढ़ रहे शाश्वत को इस बात की खुशी तो थी, मगर अब वह कुछ दबाव में आ गया है। उसे कक्षा के बीच में, लंच के दौरान और यहां तक कि स्कूल बस में बैठने के बाद भी अपनी बहन अदिति की चिंता सताती रहती है। उसे नए सेशन में एडजस्ट करने में भी मुश्किल आ रही है।
पूछने पर उसने सबसे पहले यही कहा- ‘अब मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान दूं या इसको देखूं!’ भाई-बहन एक ही स्कूल में साथ पढ़ें, रिश्ते की मजबूती और अनुभव साझा करने के लिहाज से यह विचार अच्छा तो होता है, मगर कहीं न कहीं यह बड़ी संतान के जीवन में एक परिवर्तन भी ले आता है, जिससे उनके स्कूली जीवन में जिम्मेदारी की एक परत और जुड़ जाती है। माता-पिता के लिए महत्वपूर्ण यह है कि वे उन्हें इस नई भूमिका के लिए तैयार करें। लापरवाही बरतने या ओवर प्रोटेक्टिव बनने के बजाय दोनों को आपसी सामंजस्यपूर्ण बंधन बनाने के लिए प्रेरित करें।
खुद बनाने दें अपनी पहचान
अपनी पहचान बनाए रखने के लिए बच्चों को किसी भी चीज के लिए एक-दूसरे पर निर्भर न होने दें। सुनिश्चित करें कि उनके अपने–अपने दोस्त हों। यदि बड़े भाई के दोस्त घर आते हैं या वे एक साथ खेलते हैं तो ऐसी कोई बाध्यता नहीं कि उन्हें छोटे भाई को भी साथ में शामिल करना ही पड़ेगा। यह बड़े भाई की जिम्मेदारी नहीं है कि वह छोटे भाई या बहन के दोस्त बनवाए। स्कूल सिर्फ पढ़ाई के लिए ही नहीं होते बल्कि ये सामाजिक होने की भी शिक्षा देते हैं। दोस्त बनाना, अपनी बात रखना, अपने हक के लिए आवाज उठाना, जीवन को व्यवस्थित करना आदि स्कूली जीवन का हिस्सा होते हैं। ऐसे में बेहतर होगा कि बच्चों को अपनी पहचान स्वयं बनाने के लिए प्रेरित करें।
अभिभावक नहीं साथी बनाएं
सबसे अच्छा तरीका है कि आप बड़े बच्चे को यह न कहें कि अब से उनको स्कूल में अपने भाई या बहन की देखभाल करनी है। उन्हें सिर्फ यह कहें कि वे इस बात का ध्यान रखें कि स्कूल में छोटे भाई-बहन को कोई परेशानी न हो। चीजों को समझने में मुश्किल आए तो बड़े भाई-बहन का अनुभव छोटे के काम आ जाए। आपको दोनों बच्चों को यह समझाना है कि वे अपना स्कूली जीवन अपने हिसाब से तय करेंगे। छोटे को भी बताएं कि उनके स्कूली विकास के लिए वे स्वयं जिम्मेदार होंगे, बड़े भाई या बहन सिर्फ उनका मार्गदर्शन करेंगे, न कि एक-दूसरे के स्कूली जीवन में हस्तक्षेप करेंगे। बड़ी संतान को अपने छोटे भाई या बहन का अभिभावक नही, साथी बनाने को लेकर प्रेरित करें।
अभिभावक के रूप में आपकी जिम्मेदारी है कि आप बच्चों को उनकी रुचि के क्षेत्र में प्रोत्साहित करें। ऐसा नहीं कि अगर बड़े को गणित में रुचि है तो छोटे को भी गणित में ही काबिल बनाएं। उन्हें अपने व्यक्तित्व को तलाशने दें। जब आपकी एक संतान दूसरी संतान के प्रति जिम्मेदार हो जाए तो यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप उस बच्चे के साथ खुलकर बात करें, ताकि यदि इस जिम्मेदारी को निभाते हुए उसे कोई भी परेशानी आए तो वह आपके साथ खुलकर बात कर सके। कई बार साथ स्कूल जाने वाले भाई-बहन के बीच तनाव का एक कारण यह भी बन जाता है, जो आगे जाकर लड़ाई-झगड़ा या आपसी रोष की वजह बन जाता है।
जब हो जाए झगड़ा
स्थितियों को कितना भी सकारात्मक रखें, मगर भाई-बहनों में झगड़े होते ही हैं। कई बार झगड़े आपके संज्ञान तक भी नहीं आ पाते और कोल्डवार के रूप में पनपते रहते हैं। कभी ये झगड़े घर में, पार्क में साथ खेलते हुए या स्कूल में भी हो सकते हैं। ऐसे में यदि स्कूल में भाई-बहनों के बीच झगड़े होते हैं, तो किसी भी स्थिति पर प्रतिक्रिया करने से पहले अपने दिमाग में पूरे परिदृश्य की एक बार फिर से समीक्षा करे।
इसमें किसी एक का पक्ष सिर्फ इस वजह से न लें कि उसकी उम्र बड़ी या छोटी है। गलत व्यवहार को सही तरीके से हैंडल करें। साथ ही बच्चों को बताएं कि वे किसी भी स्थिति पर प्रतिक्रिया करने से पहले माता-पिता के पास जाएं। स्कूल में कोई झगड़ा हो तो शिक्षक को सूचित करें ताकि बात बढ़ने से पहले सही से संभाली जा सके।