आईटी शेयरों में ₹88000 करोड़ डूबने से मंदी की आहट; यह क्या बला, क्यों आती है? जानें सबकुछ

दुनियाभर का बाजार उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। अमेरिकी मंदी की आशंकाओं, रेटिंग में गिरावट और लक्षित मूल्य कटौती (टार्गेट प्राइस कट्स) ने निवेशकों की चिंता बढ़ा दी है। इसका नतीजा यह हुआ कि भारत की टॉप 10 आईटी कंपनियों के शेयर अपने शिखर से 33% तक गिर चुके हैं। इनका कुल बाजार मूल्य 88,000 करोड़ रुपये तक घट गया है। निफ्टी आईटी इंडेक्स अब गिरावट के क्षेत्र (Bear Territory) में प्रवेश कर गया है।

भारत की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर सेवा प्रदाता कंपनी, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), अपने उच्चतम स्तर से 23% तक लुढ़क गई है, जिससे निवेशकों को 3.7 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। टॉप 10 आईटी कंपनियों में से आठ मंदी की गिरफ्त में हैं, जिनमें इंफोसिस, एचसीएल टेक और टेक महिंद्रा भी शामिल हैं। एलटीआई माइंडट्री को सबसे अधिक 33% की गिरावट का झटका लगा है, जबकि विप्रो इस सूची में सबसे कम प्रभावित हुआ है, लेकिन यह भी 16% नीचे है। बाजार में जारी हलचल के बीच मंदी को लेकर सुगबुगाहट तेज है।

क्या मंदी आ रही है? मंदी किस बला का नाम है? इसका आम आदमी की जेब पर क्या असर पड़ सकता है? इससे कैसे बचा जा सकता है? आइए सबकुछ बिल्कुल आसान भाषा में समझते हैं।

मंदी आ रही है क्या?
अक्सर जब शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव आता है, महंगाई बढ़ती है या कंपनियां छंटनी करने लगती हैं, तो यह सवाल जोर पकड़ने लगता है- ‘मंदी आ रही है क्या?’ वैश्विक बाजार में पिछले कुछ दिनों में मंदी की सुगबुगाहट बढ़ी है। अमेरिका में ऊंची महंगाई और फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती में देरी से बाजार में अनिश्चितता बढ़ रही है। इससे आईटी कंपनियों की ग्रोथ पर असर पड़ रहा है और भारतीय कंपनियां भी इससे अछूती नहीं हैं। जेपी मॉर्गन के प्रमुख अर्थशास्त्री ने 2025 में अमेरिकी मंदी की संभावना 40% तक आंकी है। गोल्डमैन सैक्स और मॉर्गन स्टेनली के अर्थशास्त्रियों ने भी अमेरिकी जीडीपी ग्रोथ अनुमान को घटाकर क्रमशः 1.7% और 1.5% कर दिया है। आईटी कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट और निवेशकों का डूबता पैसा मंदी की आहट के संकेत दे रहा है। ऐसे में यह जानना बहुत जरूरी है कि मंदी है क्या, आती कैसे है और इसका आम आदमी की जेब पर क्या असर पड़ सकता है?

मंदी किस बला का नाम है?
मंदी एक आर्थिक गिरावट की स्थिति है, जो कुछ महीनों से लेकर सालों तक बनी रह सकती है। यह तब आती है जब किसी देश की अर्थव्यवस्था दो तिमाहियों (लगातार छह महीनों) तक सिकुड़ती रहती है। इस गिरावट को आमतौर पर जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में कमी के आधार पर मापा जाता है। हालांकि, सिर्फ जीडीपी में गिरावट ही मंदी का संकेत नहीं देती। मंदी में बेरोजगारी बढ़ने, उपभोक्ता और बिजनेस खर्च में कमी, उद्योगों के ठप होने और वित्तीय बाजारों में अस्थिरता का भी हाथ होता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था के अलग-अलग चरणों में मंदी भी एक महत्वपूर्ण चरण है।

एक देश की अर्थव्यवस्था चार मुख्य चरणों से गुजरती है, ये हैं-
विस्तार (Expansion): जब आर्थिक गतिविधि बढ़ती है, नौकरियां बढ़ती हैं और लोग अधिक खर्च करते हैं।
परिपक्वता (Maturity): जब अर्थव्यवस्था चरम पर होती है, मुनाफे बढ़ते हैं, बाजार स्थिर रहते हैं।
वृद्धावस्था (Aging): जब आर्थिक विकास धीमा पड़ने लगता है, महंगाई बढ़ती है और वित्तीय बाजार अस्थिर हो जाते हैं।
मंदी (Recession): जब व्यापार और निवेश घटने लगते हैं, बेरोजगारी बढ़ती है और बाजार गिरावट की ओर बढ़ते हैं।

मंदी और आर्थिक महामंदी (Depression) में क्या अंतर है
मंदी और महामंदी के बीच सबसे बड़ा अंतर अवधि और उसकी गंभीरता का होता है। मंदी कुछ महीनों या सालभर तक रह सकती है। ऐसी स्थिति जहां मंदी कई वर्षों तक चलती है और अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित करती है, तो उसे महामंदी कहते हैं। 1929 की “ग्रेट डिप्रेशन” (महामंदी) इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था तबाह हो गई थी।

मंदी क्यों आती है?
मंदी के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

असेट बबल (Asset Bubble)
जब किसी विशेष उद्योग में अनियंत्रित तेजी आती है, तो निवेशक उसमें पैसा लगाते चले जाते हैं। लेकिन जब यह वृद्धि टिकाऊ नहीं रहती और बबल फूटता है, तो पूरी अर्थव्यवस्था पर इसका असर पड़ता है। इसके उदाहरण हैं- 1990 के दशक का डॉट-कॉम बबल और 2008 की हाउसिंग क्राइसिस।

अर्थव्यवस्था में बहुत अधिक तेजी (Overheated Economy)
अगर किसी देश की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से बढ़ती है, तो संसाधन और कुशल श्रम की कमी होने लगती है। इससे कंपनियों का मुनाफा गिरने लगता है और वे छंटनी शुरू कर देती हैं, जिससे मंदी का खतरा बढ़ जाता है।

वैश्विक झटके (External Shocks)
आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था अन्य देशों और घटनाओं पर निर्भर करती है। युद्ध, महामारी और वैश्विक आर्थिक संकट मंदी का कारण बन सकते हैं। 2020 की कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को आर्थिक मंदी में धकेल दिया था।

मंदी का क्या है इतिहास?
अमेरिका के राष्ट्रीय आर्थिक अनुसंधान ब्यूरो (NBER) के अनुसार, वहां अब तक कई बार मंदी आ चुकी है। इसके उदाहरण हैं-
महामंदी (1929-1941): यह 12 साल चली। यह अब तक की सबसे भयंकर आर्थिक गिरावट थी, जिसने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया था।
2008 वित्तीय संकट: हाउसिंग सेक्टर में बबल फटने के कारण आई मंदी। इसके बाद पूरी दुनिया के बाजार में गिरावट दिखी थी।
2020 की कोरोना मंदी: यह सिर्फ दो महीने तक चली, क्योंकि सरकारों ने महामारी के बीच राहत पैकेज के एलान किए। हालांकि, भारत समेत पूरी दुनिया इससे प्रभावित हुई।

कैसे पहचाने कि मंदी आने वाली है?
मंदी के संकेत पहले से ही देखे जा सकते हैं। मंदी के लक्षण हैं-
जीडीपी में गिरावट: अगर दो तिमाहियों तक जीडीपी सिकुड़ रही है, तो यह मंदी का संकेत हो सकता है।
बेरोजगारी दर में वृद्धि: कंपनियां छंटनी करने लगती हैं और लोगों की आय कम हो जाती है।
इन्वर्टेड यील्ड कर्व: जब अल्पकालिक बॉन्ड पर ब्याज दरें दीर्घकालिक बॉन्ड से अधिक हो जाती हैं, तो मंदी की आशंका बढ़ जाती है।
औद्योगिक उत्पादन में गिरावट: कंपनियां उत्पादन कम कर देती हैं, जिससे नौकरियां और निवेश प्रभावित होते हैं।
सुस्त निवेशक भावना: जब शेयर बाजार में लगातार गिरावट आती है और निवेशक घबराने लगते हैं, तो यह मंदी का संकेत हो सकता है।

मंदी का आम आदमी पर क्या असर पड़ता है?
मंदी का असर हर किसी पर पड़ता है, लेकिन अलग-अलग लोगों पर इसका प्रभाव अलग होता है। मंदी के दौरान क्या-क्या झेलना पड़ सकता है आइए जानें-

नौकरी संकट: कंपनियां लागत कम करने के लिए छंटनी करती हैं।
आर्थिक कठिनाइयां: अगर आय घटती है तो लोगों को कर्ज लेने की जरूरत पड़ सकती है।
क्रेडिट की कठिनाई: बैंकों के लिए उधारी देना महंगा हो जाता है, जिससे लोन लेना मुश्किल हो सकता है।
निवेश में गिरावट: शेयर बाजार में मंदी से पोर्टफोलियो का मूल्य गिर सकता है।

क्या मंदी में चीजें सस्ती हो जाती हैं?
कई मामलों में इसका जवाब हां में हो सकता है। मंदी के दौरान अनावश्यक चीजों की कीमतें गिर सकती हैं (जैसे लक्जरी कारें, हवाई टिकट, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद आदि)। लेकिन जरूरी चीजें (जैसे खाने-पीने की वस्तुएं, दवा, बिजली) आमतौर पर मंदी के दौरान महंगी ही रहती हैं।

मंदी में खुद को सुरक्षित रखने के लिए आम आदमी क्या करे?
अगर मंदी आती है, तो खुद को सुरक्षित रखने के लिए एहतियातन कदम उठाएं जा सकते हैं। इससे बचाव के लिए आपातकालीन फंड बनाकर रखना चाहिए। कम से कम छह महीने का खर्च बचत के रूप में रखना चाहिए। हाई-इंटरेस्ट लोन (क्रेडिट कार्ड) को जल्द से जल्द चुकाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके साथ ही खर्च पर नियंत्रण रखना जरूरी है। गैर जरूरी खर्चों में कटौती की जानी चाहिए। आमदनी के नए स्रोतों की तलाश भी मंदी से कुछ हद तक राहत दिला सकती है। फ्रीलांसिंग, साइड जॉब्स या निवेश पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। मंदी के समय में निवेशकों को अपना नजरिया लंबी अवधि का रखना चाहिए।अगर शेयर बाजार गिरता है, तो घबराकर निवेशों को सौदों से बाहर नहीं निकलना चाहिए। कुल मिलाकर मंदी मंदी किसी भी अर्थव्यवस्था का स्वाभाविक हिस्सा है, लेकिन इसके प्रभाव को कम करने के लिए सही कदम उठाना जरूरी है। इससे बचने के लिए समझदारी से खर्च करें, बचत बढ़ाएं और भविष्य की चुनौतियों के लिए खुद को तैयार रखें।

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