बोल-सुन नहीं सकतीं रिदम… मां के तप से अंतरराष्ट्रीय फलक पर छाईं पैरा एथलीट बेटी

बरेली की रिदम शर्मा बचपन से ही सुनने और बोलने में असमर्थ थीं। महज तीन साल की उम्र से ही खेलों में रुचि रखने वाली रिदम ने पीटी उषा और हिमा दास को देखकर दौड़ने की प्रेरणा ली। लेकिन जब पांच वर्ष की उम्र में वह बोल नहीं पाईं और किसी भी चीज पर प्रतिक्रिया नहीं दे पाईं, तब अभिभावकों ने डॉक्टर को दिखाया।
डॉक्टर ने बताया कि रिदम मूकबधिर हैं। इस रिपोर्ट ने माता-पिता को झकझोर कर रख दिया। मां पूनम के लिए यह स्वीकारना कठिन था, लेकिन उन्होंने इसे अपनी बेटी की कमजोरी नहीं बनने दिया। पूनम बताती हैं कि बेटी के लिए समाज की सोच और लोगों के ताने सबसे बड़ी चुनौती थे।
जब उन्होंने रिदम को खेलों में आगे बढ़ाने की ठानी, तो कई लोगों ने उन्हें रोका, लेकिन पूनम ने इन बातों को नजरअंदाज किया और बेटी के सपनों को पूरा करने में जुट गईं। रिदम के लिए उचित प्रशिक्षण जरूरी था, लेकिन एक मूकबधिर बच्ची के लिए अच्छे कोच का मिलना भी चुनौतीपूर्ण था।
रिदम को प्रशिक्षण स्थल तक छोड़ने जाती थीं पूनम
पूनम ने कोच अजय कश्यप से संपर्क किया, उन्होंने रिदम का मार्गदर्शन किया। शुरुआती चार महीनों तक पूनम खुद बेटी को प्रशिक्षण स्थल तक लेकर जातीं और वापस लातीं। यह सफर उनके लिए आसान नहीं था, क्योंकि रोजमर्रा के घरेलू काम, परिवार की जिम्मेदारियां और बेटी के भविष्य को संवारने का प्रयास, इन सबके बीच खुद को मजबूत बनाए रखना उनके लिए किसी जंग से कम नहीं था।
हर प्रतियोगिता में पूनम और उनके पति अब भी बेटी के साथ जाते हैं और रिदम का मनोबल बढ़ाते हैं। पूनम कहती हैं कि अगर माता-पिता अपने बच्चों पर भरोसा रखें और समाज की परवाह किए बिना उन्हें सही दिशा दें, तो कोई भी कमी उनके सपनों के आड़े नहीं आ सकती।
एथलेटिक्स में अब तक का सफर
मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में आयोजित 10वीं एशियन पैसिफिक डेफ एथलेटिक्स चैंपियनशिप में दो स्वर्ण व एक रजत पदक जीता।
इंदौर में हुई 35वीं राष्ट्रीय एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 200 मीटर दौड़, 100 व 400 मीटर बाधा दौड़ में तीन पदक हासिल किए।
शाहजहांपुर में आयोजित 10वीं उत्तर प्रदेश मूकबधिर 200 मीटर दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया।