कहानी दमदार, सस्पेंस शानदार… मगर एक चूक पड़ी भारी, 93 मिनट की ‘क्रेजी’ देखने लायक है या नहीं?
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साल 2017 में आई फिल्म ट्रैप्ड हिंदी फिल्मों की लीक से हटकर बनी फिल्म थी। उसमें राजकुमार राव का पात्र शौर्य परिस्थितिवश मुंबई की ऊंची इमारत के एक फ्लैट में फंस जाता है। लगभग 100 मिनट की इस फिल्म में 90 मिनट राजकुमार राव पर्दे पर अकेले नजर आते हैं और उतने ही मिनट फ्लैट से निकलने की उनकी जद्दोजहद है।
अब गिरीश कोहली निर्देशित फिल्म क्रेजी (Crazxy) उसी परिपाटी पर बनी फिल्म है। 93 मिनट की फिल्म में सोहम शाह (Sohum Shah) का पात्र अधिकतम समय रोड पर अपनी गाड़ी चलाते और मोबाइल फोन पर परिस्थितियों से जूझता नजर आता है।
क्या है क्रेजी की कहानी?
कहानी का आरंभ नामी-गिरामी डॉक्टर अभिमन्यु सूद (सोहम शाह) के आलीशान फ्लैट से बैग में पांच करोड़ रुपये अपनी गाड़ी में ले जाने से होता है। मोबाइल फोन पर उसे समय पर पहुंचने को कहा जाता है। लगता है कि वह एक अहम मीटिंग के लिए जा रहा है। रास्ते में मोबाइल पर आ रही कॉल से पता चलता है कि उसका मोबाइल फोन कुछ समय पहले चोरी हुआ होता है। फिर उसकी गर्लफ्रेंड का कॉल आता है जो डर्टी टॉक करती है।
इसी दौरान उसे अज्ञात नंबर से काल आता है कि उसकी बेटी वेदिका (उन्नति सुराणा) का अपहरण कर लिया गया है। फिरौती में पांच करोड़ रुपये की मांग होती है। शुरुआत में उसे यह मजाक लगता है। धीरे-धीरे अभिमन्यु के जीवन की परतें खुलती हैं। उसका अपनी पत्नी से अलगाव हो चुका है। उसकी बेटी डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है। उसकी शादी टूटने की वजह बेटी का मानसिक रूप से कमजोर होना है।
चौंकाने वाला है सस्पेंस
सर्जरी के दौरान उसके मरीज की मौत हो जाती है। मरीज के परिवार ने उस पर लापरवाही का आरोप लगाकर अदालत में घसीटा है। वह पीड़ित परिवार को पांच करोड़ रुपये देकर मामले को बंद करवाना चाहता है। अपहरणकर्ता वीडियो कॉल में वेदिका को दिखाता है जिसके बाद अभिमन्यु अपहरणकर्ता को फिरौती देना तय करता है लेकिन साजिश के पीछे कौन और क्यों हैं वह पहलू चौंकाता है।
गिरीश कोहली का कैसा है निर्देशन?
बतौर निर्देशक गिरीश कोहली की यह पहली फिल्म है। उन्होंने ही फिल्म की कहानी लिखी है। फिल्म विशुद्ध रूप से सोहम के पात्र और रेंज रोवर से चलने के सफर पर है। इस दौरान अपहरणकर्ता द्वारा दी गई समय सीमा में पहुंचने को लेकर रास्ते में ट्रैफिक जाम, टायर का पंचर होना,ईंधन का खत्म होने जैसे व्यवधान से तनाव को गढ़ने का प्रयास हुआ है। यहां पर अन्य पात्रों को फोटो या उनकी आवाज के ही जरिए ही जान पाते हैं। फोन में नंबरों को सेव करने का तरीका वैसे ही है जैसे लोग उसकी जिंदगी में हैं। जैसे पूर्व पत्नी एक्स, नई गर्लफ्रेंड जान, असिस्टेंट को जूनियर के तौर लिखा है। यह दिलचस्प लगता है।
कहां फिसली क्रेजी?
अभिमन्यु कई बार पश्चाताप में होने की बात करता है लेकिन कहानी उस मुद्दे पर गहराई से बात नहीं करती। इसी तरह पुलिस का पक्ष बेहद कमजोर है। हालांकि बेटी तक पहुंचने की कोशिश में जब चोटिल अभिमन्यु अपने मुंह में कॉलर को रखकर अपना घुटना सीधा करता है वह दृश्य रोंगटे खड़े कर जाता है। अच्छी बात यह है कि गिरीश ने फिल्म की अवधि को 93 मिनट तक ही सीमित रखा। उसे बेवजह खींचा नहीं है। अंत में जब रहस्योद्घाटन होता है तो उन पलों को मार्मिक बनाने में वह कामयाब रहते हैं। फिल्म अंत में अहम संदेश भी दे जाती है।
बारीकी से दिखाया एक-एक सीन
तकनीकी पक्ष की बात करें तो फिल्म के माहौल को सिनेमैटोग्राफर सुनील रामकृष्ण बोरकर और कुलदीप ममानिया ने बेहतरीन तरीके से कैद किया है। चाहे वह चींटों से भरे गड्ढे में हाथ डालना हो, पवन चक्कियों से भरा हुआ जीर्ण-शीर्ण बंजर इलाका हो, या सुनसान हाईवे हो। स्क्रीन पर सिर्फ अभिमन्यु के ड्राइव सीट पर होने के बावजूद कसा हुआ स्क्रीनप्ले आपका ध्यान आसानी से खींच लेता है। कुछ दृश्य अच्छे हैं जैसे गाड़ी का टायर बदलने के साथ जूनियर डाक्टर को सर्जरी के लिए दिशा निर्देश देना, उसे परेशान न होने के लिए कहना साथ ही अपहरणकर्ता के फोन को बीच-बीच रिसीव करना।
इंटरवल के बाद खुलते हैं पन्ने
अप्रैल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया (फिल्म अप्रैल फूल), अभिमन्यु चक्रव्यूह में फंस गया है (फिल्म इंकलाब), गोली मार भेजे में (सत्या) जैसे पुराने गानों को बैकग्राउंड में डालकर परिस्थितियां को बयां करने की कोशिश अच्छी है। इंटरवल के बाद कहानी में तनाव गहराता है।
कैसी है सोहम शाह की परफॉर्मेंस?
फिल्म तुंबाड की रिलीज के करीब सात साल बाद सोहम शाह ने बड़े पर्दे पर वापसी की है। वह फिल्म के निर्माता भी हैं। सोहम ने अभिमन्यु की उलझन,मुश्किल और हिम्मत को पूरी शिद्दत से पर्दे पर जीवंत किया है। हम अभिमन्यु की सोच में आ रहे रूपातंरण से परिचित होते हैं। फिल्म में ऐसे अनेक प्रसंग हैं,जहां सिर्फ हाव-भाव और बॉडी लैंग्वेज से सोहम शाह सब कुछ अभिव्यक्त करते हैं।
उनके बॉस के रूप में पीयूष मिश्रा, उनकी प्रेमिका के रूप में शिल्पा शुक्ला, उनकी पूर्व पत्नी के रूप में निमिषा सजायन और अपहरणकर्ता के रूप में टीनू आनंद अपनी आवाजों से दमदार मौजूदगी दर्ज कराते हैं। उनकी फोन पर सिर्फ छवि नजर आती है। वेदिका के रूप में उन्नति सुराणा चंद दृश्यों में हैं। वह उसमें अपनी छाप छोड़ती हैं।