शिव की नगरी बनारस के इन जायकों की दिवानी है पूरी दुनिया

 महाशिवरात्रि से पूर्व बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में भक्तों का आगमन लगातार बढ़ रहा है। महाशिवरात्रि के समय श्रद्धालु लंबी-लंबी पंक्तियों में खड़े होकर काशी विश्वनाथ धाम और कालभैरव के दर्शन करते हैं। यही हाल गंगा के घाटों और काशी की गलियों का भी रहता है। यह भी श्रद्धालुओं से भरे रहते हैं। इन्हीं गलियों में मिलता है बनारसी रंग और भाव में डूबा खान-पान।

कुछ अलग है काशी के खाने का स्वाद

जायकों की मायापुरी काशी में दक्षिण भारतीय, गुजराती, राजस्थानी, हिमाचली और भोजपुरिया व्यंजनों की दमदार हाजरी से बनारस की स्वाद गली को लंबा विस्तार मिला है। बनारस के खान-पान की बात होने पर सबसे पहले जिसका ध्यान आता है वह है परंपरागत कुरकुरी कचौड़ी, सब्जी और रस भरी जलेबी। पहले स्वाद के रसिया बनारसियों की नींद तब खुलती थी, जब बनारसी कचौड़ी की जोड़ीदार सरसों तेल की झार में रची-बसी सब्जी की सुगंध नथुने फड़काने लगती थी।

अब इस गंध में इडली-डोसे की सहेली चटनी में प्रयुक्त नारियल व गुजराती ढोकले के तड़के में प्रयोग की गई राई व करी पत्ता की खुशबू भी घुलने लगी है। दोपहर में भट्ठियों की जाली पर सेंकी जा रही सुघड़ पूर्वांचली बाटी की सौंधी सुगंध मुंह में पानी लाती है, तो शाम को हिमाचली मोमो की मसालेदार भाप अपनी खुशबू से दिलों तक उतर जाती है।

कैसे काशी पहुंचा इडली-डोसा
वाराणसी के स्ट्रीट फूड के रूप में अतिथि व्यंजनों में सबसे पहली आमद इडली, डोसा, वड़ा, उत्तपम व उपमा जैसे दक्षिण भारतीय व्यंजनों की है। यह बात है सन 1926 की। केरल व तमिलनाडु के सीमावर्ती क्षेत्र पालघाट (पलक्कड़) के एक कस्बे के रामास्वामी अय्यर तीर्थवास की कामना से सपरिवार काशी आए। जीवनयापन के लिए उन्होंने यहां दक्षिण भारतीय व्यंजनों का व्यवसाय करने की सोची।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले दक्षिण भारतीय छात्रों के लिए अय्यर साहब ने लिंबडी और राजपूताना हास्टल के मेस में इडली का भगोना व डोसे का तवा भट्ठी पर चढ़ाया। देखते ही देखते नारियली स्वाद में रचा-बसा खुशबू का एक खुशगवार झोंका बीएचयू परिसर की दीवारें लांघकर शहर के टोले-मोहल्लों तक पसरता चला गया। आज फिल्टर काफी के भाप में पगे कम से कम 50 कैफे व सैकडों स्टॉल-ठेले काशी में साउथ इंडिया के स्वाद का लोहा मनवा रहे हैं।

लोगों को खूब भा रहा पूर्वांचली बाटी-चोखे
बनारसी खान-पान की अंगनाई में एक ऐसी ही दमदार आमद लगी है पूर्वांचली स्वाद की पर्याय बलियाटिक बाटी-चोखे की। कभी मलदहिया लोहा मंडी और मैदागिन वाहन स्टैंड पर ठेलों पर सेंकी जा रही करारी बाटियों और चोखे की पहचान मेहनतकश मजदूरों के लंच तक ही सीमित थी। आज बनारस में बड़े-बड़े रेस्टोरेंट और बड़ी-बड़ी पार्टियों में पूर्वांचली बाटी-चोखे के स्वाद की तूती बोल रही है। अब तो काशी की गुजराती बस्ती चौखंभा की गलियों से बाहर निकल कर बड़े-बड़े प्रतिष्ठित मिष्टान्न भंडारों के काउंटरों पर सजा गुजराती ढोकला भी बनारसी स्वाद गली को विस्तार दे रहा है। राजस्थानी कचौरियां व कुरकुरेपन के लिए मशहूर खांटी मारवाड़ी परिचय वाली दुबली किंतु रसीली जलेबियों का स्वाद व्रतियों का संकल्प डिगाने लगा है।

खुद में अलबेले शहर बनारस को नए जायकों से भरपूर मेहमान व्यंजनों को अपनाने से कभी कोई गुरेज नहीं रहा। यह बात दीगर है कि डोसे के मसाले में आलू, प्याज, राई के अलावा पनीर व काजू-किशमिश का तड़का देकर बनारस वाले ‘तर माल’ पर मोहर लगाने का सर्वाधिकार अपने पास सुरक्षित रखे हुए हैं। नारियल की चटनी के साथ आम व पुदीने की चटनी की कटोरी जैसे प्रयोगों को आजमाने में बनारसी पाकशास्त्री कतई नहीं हिचकते। राजस्थानी जलेबी के ऊपर रबड़ी के लच्छों की सजावट हो या ढोकले के साथ मीठी चटनी की मधुराहट, बनारसी रसना को मेहमान व्यंजनों को भी अपने अनुरूप ढालना बखूबी आता है!

चूड़ा मटर और मगदल
बनारस जिन चीजों के लिए जाना जाता है, उनमें चूड़ा-मटर और मगदल की जुगलबंदी भी एक है। इसकी एक खासियत है कि इसका कोई समय नहीं है, लेकिन सब समय इसका है। 1887 में जब महारानी विक्टोरिया काशी आई थीं तब उनके सामने चूड़ा-मटर भी पेश किया गया था। प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार काशी आने पर नरेन्द्र मोदी के नाश्ते की सूची में भी चूड़ा-मटर इठला रहा था।

स्वादिष्ट-मुलायम मलाई पूड़ी
बनारस की मिठाइयों में एक मलाई पूड़ी भी है। इसका अपना अलग ही स्वाद है। यह हल्की मीठी, स्वादिष्ट और बेहद मुलायम होती है। मलाई पूड़ी की एक खासियत यह भी है कि इसे बनाने के बाद बहुत देर तक रखा नहीं जा सकता।

बंगाल का मीठा जादू
कहते हैं कि बंगाल के बाद वाराणसी में बंगाली मिठाइयों की सबसे ज्यादा मांग रहती है। दशाश्वमेध, बंगाली टोला व केदार घाट की गलियों में खजूर गुड़ की कई प्रकार की मिठाइयां मिलती हैं। इस इलाके में कई दुकानें 75 साल से भी ज्यादा पुरानी है। यहां बनने वाली मिठाइयों में खजूर गुड़ का रसगुल्ला, पेड़ा, संदेश, काचा गोल्ला, काजू कतली, कलाकंद मुख्य हैं।

छुई-मुई सी मलइयो
देखने में ठोस, द्रव, गैस तीनों का भरम जगाए और कंठ से नीचे उतरते ही करेजा तर कर जाए, उस छुई-मुई जादुई मिठाई को मलइयो कहते हैं। कुल्हड़ के कुल्हड़ हलक से उतर जाने के बाद भी आप तय नहीं कर पाएंगे कि आपने मलइयो खाया है या पीया है। केसर मिश्रित खालिस दूध की फेंटाई-मथाई और ओस की तरावट का है यह सारा कमाल। अब तो इसके विक्रेता शहर में हर जगह दिखने लगे हैं मगर एक समय था जब इस पर नगर के पक्के महाल का एकाधिकार हुआ करता था।

Back to top button