कॉमेडी पर कितनी खरी उतरी मेरे हसबैंड की बीवी? रिव्यू पढ़ने से पहले न बुक करें टिकट
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मेरे हसबैंड की बीवी शीर्षक से लगता है कि फिल्म काफी हंसाएगी, क्योंकि यह मुदस्सर अजीज की फिल्म है जिन्होंने हैप्पी भाग जाएगी, पति पत्नी और वो जैसी हिट फिल्में दी हैं। मगर फिल्म देखने के बाद समझ आता है कि यह बेसिर पैर की फिल्म है, कहानी में इतना बिखराव है कि लगेगा लेखक कुछ समझ ही नहीं पाया कि वो कहना क्या चाहता है।
कॉमेडी के नाम पर यूं तो डायलॉग हैं, लेकिन उसमें हंसी शायद ही आए। कलाकारों की ओवर एक्टिंग से तो पूरी फिल्म भरी हुई है। फिल्म देखकर निकलने पर सोचते हैं कि वाकई लोग सिनेमा देखना नहीं आना चाहते या इस तरह के फूहड़ कंटेंट की वजह से दूरी बना रहे हैं।
कहानी में नहीं है दम
मेरे हसबैंड की बीवी मूवी की शुरुआत ऐसे होती है कि दिल्ली में रहने वाला अंकुर चड्ढा (अर्जुन कपूर) अपनी पत्नी प्रभलीन चड्ढा से आतंकित नजर आता है। उसका चित्रण शुरुआत में ऐसे किया गया है जैसे बहुत क्रूर होगी। उसने पति को बहुत प्रताड़ित किया होगा। उसकी जिंदगी को नर्क बना दिया होगा। हालांकि, दोनों अलग हो चुके हैं। अंकुर की हर अच्छे बुरे समय में उसका दोस्त कुरैशी (हर्ष गुजराल) साथ रहता है। अंकुर अपने पारिवारिक बिजनेस के सिलसिले में ऋषिकेश आता है वहां कॉलेज के दिनों में आकर्षण का केंद्र रहीं अंतरा खन्ना (रकुल प्रीत सिंह) से उसकी मुलाकात होती है।
अंतरा को अंकुर अपना अतीत बताता है। पर वहां पर प्रभलीन काफी बोल्ड, बिंदास और तेज तर्रार नजर आती है। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह न्यूज चैनल में काम करने लग जाती है। शादी के बाद यह नौकरी उनके रिश्ते में आड़े आती है। दोनों में अलगाव हो जाता है। अंतरा जब अंकुर से शादी करने का फैसला करती है तो प्रभलीन उनकी जिंदगी में लौट आती है। दरअसल, एक दुर्घटना में उसकी याददाश्त चली गई है। इसमें उसे अपनी शादी याद है लेकिन अलगाव नहीं। अब अंतरा और प्रभलीन में उसे पाने की होड़ मचती है।
जबरदस्ती खींची गई फिल्म
फिल्म इंटरवल से पहले काफी खिंची हुई लगती है। शुरुआत में अंकुर का अपनी दोस्त की बैचलर पार्टी में जाना और वहां पर बाउंसर से मार खाना सब बहुत बचकाना और अनावश्यक लगता है। इसी पार्टी में अंकुर के पिता भी होते हैं जो काफी रसिक नजर आते हैं, लेकिन बाद में उनका वह अंदाज कहीं नजर नहीं आता। फिल्म में प्रभलीन का पात्र सबसे विचित्र बताने की कोशिश है। हालांकि, वह कहानी में कहीं स्थापित नहीं होता।
कहानी में अनसुलझे पहलू
शादी के टूटने के कारण भी ठोस नहीं लगते। उसे शादी से अलगाव के बाद अचानक अंकुर चाहिए होता है जबकि उसके साथ उसका ब्वायफ्रेंड राजवीर (आदित्य सील) है। उसकी वजह स्पष्ट नहीं है। अंत में प्रभलीन अचानक से क्यों अपनी गलती मान लेती है? अंतरा और प्रभलीन की लड़ाई कॉलेज में एक सीन द्वारा बार-बार दोहराई गई है। उसके अलावा लगता नहीं दोनों कॉलेज में कहीं टकराई होंगी। अंतरा दिल्ली से लंदन आती जाती है, लेकिन फिर ऋषिकेश में हैंड ग्लाइडिंग क्यों सिखा रही होती है? उसकी वजह अंत तक स्पष्ट नहीं होगी।
प्रभलीन और अंतरा के बीच अंकुर की होड़ दिलचस्प हो सकती थी, लेकिन यहां पर भी निराशा ही हाथ लगती है। फिल्म में अंकुर एक बार प्रभलीन को शाह रुख खान की मोहब्बतें फिल्म के गाने ‘दुनिया में है कितनी नफरतें’ के जरिए प्रपोज करता है फिर अंतरा को हेंड ग्लाइडिंग से आकर मॉल में। इसमें न रोमांस नजर आता है न प्यार की भावनाएं। सब थोपा हुआ लगता है।
कलाकारों का फीका अंदाज
नई दिल्ली, अमृतसर से होते हुए फिल्म लंदन भी जाती है लेकिन कहीं भी लुभा नहीं पाती है। अर्जुन कपूर रोमांस करते हुए कहीं से भी जंचते नहीं हैं। टूटे दिल से ज्यादा वह प्रताड़ित नजर आते हैं, लेकिन बात दिल टूटने की करते हैं। उसके भाव उनके चेहरे से गायब नजर आते हैं। भूमि पेडनेकर उम्दा अभिनेत्री हैं लेकिन यहां पर उनकी ओवर एक्टिंग की भरमार है। रकुल प्रीत बस सुंदर दिखी हैं, भावनाओं को व्यक्त करने में उनके चेहरे के भाव जीरो हैं। आदित्य सील के पात्र की उपयोगिता कहीं नजर नहीं आती है। फिल्म शुरू से अंत तक बस चलती जा रही है न उसका संगीत आपका दिल जीत पा रहा है न लव ट्रायंगल की कहानी।