ठाणे में अदालत ने किशोर के यौन उत्पीड़न के आरोपी को किया बरी

ठाणे जिला अदालत ने किशोर के यौन उत्पीड़न के आरोपी को बरी करते हुए अभियोजन पक्ष को फटकार लगाई है। अदालत ने ये भी कहा है कि, मामले में आधे-अधूरे मन से जांच की गई है। अदालत ने कहा, ‘संक्षेप में, अभियोजन पक्ष यह साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है कि आरोपी ने नाबालिग का अपहरण किया था और उसके साथ यौन उत्पीड़न किया गया था।’

महाराष्ट्र के ठाणे जिले में जिला अदालत ने एक किशोर के यौन उत्पीड़न के आरोपी शख्स को बरी कर दिया है। इस कोर्ट ने मामले में टिप्पणी भी की है, जिसमें उसने कहा कि- इस मामले में आधे-अधूरे मन से जांच की गई है। अदालत ने 2018 में 15 वर्षीय लड़के के साथ यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को बरी करते हुए अभियोजन पक्ष को ‘आधे-अधूरे’ जांच के लिए फटकार भी लगाई है। यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत मामलों को देखने वाले विशेष न्यायाधीश पीआर अष्टुरकर की अदालत ने 3 फरवरी को आदेश में कहा कि मारपीट, आपराधिक धमकी और धमकी के आरोप भी विधिवत साबित नहीं हुए। मंगलवार को आदेश की एक प्रति उपलब्ध कराई गई।

मदद के बहाने आरोपी ने किया उत्पीड़न
इस मामले में अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि उल्हासनगर के रहने वाले 33 वर्षीय आरोपी, जो लड़के के एक परिचित का दोस्त था, ने 30 मई, 2018 को पीड़ित का यौन उत्पीड़न किया। पीड़ित ने दावा किया कि आरोपी ने उसे घर वापस लाने के लिए गाड़ी से लिफ्ट की पेशकश की, लेकिन उसे एक सुनसान इलाके में ले गया, शराब पी और उसका यौन उत्पीड़न किया। आरोपी पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम समेत कई कानूनी प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।

अदालत ने जांच करने में विफलता की ओर किया इशारा
हालांकि, न्यायाधीश ने अभियोजन पक्ष के मामले में कई विसंगतियों और खामियों को उजागर किया। अदालत ने कहा, अभियोजन पक्ष की तरफ से पेश किए गए सबूतों में, एक भी गवाह ने यह नहीं बताया कि उन्हें मौके का निरीक्षण के दौरान या अन्यथा खून के धब्बे (पीड़िता के कपड़ों पर) दिखे थे। फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला रिपोर्ट में खून के धब्बों का उल्लेख करते हुए यह स्पष्ट नहीं किया गया कि खून पीड़ित का था या आरोपी का। अदालत ने अभियोजन पक्ष की तरफ से दो महत्वपूर्ण गवाहों की जांच करने में विफलता की ओर भी इशारा किया।

‘अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में रहा विफल’
न्यायाधीश ने कहा कि उनकी अनुपस्थिति ने अभियोजन पक्ष के कथन में एक महत्वपूर्ण अंतर पैदा कर दिया, जिससे पता चलता है कि उन्हें जानबूझकर छोड़ दिया गया हो सकता है। न्यायाधीश ने कहा, ‘आधे-अधूरे मन से जांच की गाथा यहीं खत्म नहीं होती है।’ अदालत ने कहा, ‘पीड़िता की जांच करने वाले डॉक्टर को उसके गुप्तांगों के पास कोई चोट, घर्षण या रंग में कोई बदलाव नहीं मिला। हालांकि, एक सर्जन ने पाया कि पीड़िता के गुदा के अंदरूनी हिस्से में चोट थी। दुर्भाग्य से, अभियोजन पक्ष सर्जन की जांच करने में विफल रहा।’ वहीं मेडिकल गवाह ने स्वीकार किया कि चोट अन्य कारणों से भी लग सकती है, और सर्जन की रिपोर्ट में महत्वपूर्ण विवरण जैसे कि चोट कब लगी। अदालत ने कहा, ‘संक्षेप में, अभियोजन पक्ष यह साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है कि आरोपी ने नाबालिग का अपहरण किया था और उसके साथ यौन उत्पीड़न किया गया था।’

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