आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के पहले समाधि स्मृति दिवस पर 1008 दीपों से की गई महाआरती

दमोह: आर्यिका विसंयोजनाश्री ने कहा कि संसार को मोक्षमार्ग दिखाने और जैन धर्म की संस्कृति को उच्च शिखर तक पहुंचाने के लिए दो सूर्य उदित हुए और चले गए।

दमोह शहर के कीर्ति स्तंभ पर गुरुवार रात आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के प्रथम समाधि स्मृति दिवस के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें समाज के लोगों ने 1008 दीप जलाकर आचार्य भगवान श्री विद्यासागर महाराज की आरती उतारी। जैसे ही दीप जलाकर आरती की गई, पूरा परिसर दीपों की जगमगाती रोशनी से आसमान के तारों की तरह नजर आने लगा। कार्यक्रम में जैन समाज के अलावा अन्य समाजों के हजारों लोग मौजूद रहे।

भजन और जयकारों से गूंजा परिसर
इस दौरान “गंगा मैया में जब तक पानी रहे, मेरे गुरुवर तेरी जिंदगानी रहे” और “सागर जितना दिया गुरुवर अपने” जैसे भजनों पर उपस्थित लोग आचार्य भगवान गुरुवर के जयकारे लगाते नजर आए। इस अवसर पर समाज के वरिष्ठजनों ने सभी से आचार्यश्री भगवान के आदर्शों पर चलने की बात कही। बाद में आचार्य भगवान के जीवन परिचय को लेकर एक डॉक्यूमेंट्री भी प्रस्तुत की गई।

विरागोदय तीर्थ में हुआ आयोजन
आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी गुणानुवाद प्रथम समाधि महोत्सव के तहत विरागोदय तीर्थ में पंच कल्याणक की द्वितीय वर्षगांठ के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। कमल मंदिर में मूल नायक श्री धर्मनाथ जी, आदिनाथ जी और महावीर स्वामी जी का अभिषेक एवं पूजन किया गया। इसके बाद मुनि विरंजन सागर जी ससंघ के सानिध्य में छत्तीसी विधान का आयोजन किया गया, जिसमें नगर समेत बाहर से आए श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

दो सूर्य उदित हुए और चले गए
आर्यिका विसंयोजनाश्री ने कहा कि संसार को मोक्षमार्ग दिखाने और जैन धर्म की संस्कृति को उच्च शिखर तक पहुंचाने के लिए दो सूर्य उदित हुए और चले गए। श्रमण संस्कृति के उन्नयन और धर्म, समाज, संस्कृति, जीव दया, हथकरघा, राष्ट्र और राष्ट्रभाषा के साथ स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में जो अवदान दिया गया, वह वर्णनातीत और स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाने योग्य है। आचार्य विद्यासागर जी और आचार्य विराग सागर जी अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका साहित्य और उनके कार्य युगों-युगों तक आचार्यश्री को हमारी स्मृति में सदैव जीवंत बनाए रखेंगे।

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