लगातार घटती कपास की खेती को केंद्रीय बजट से मिल सकती है संजीवनी, पांच साल का मिशन तय; किसान बोले…

केंद्रीय बजट में सरकार ने कपास की पैदावार बढ़ाने के लिए पांच साल का मिशन तय किया है। कपास को बढ़ावा देने का मकसद कॉटन उद्योग को दोबारा से जीवन प्रदान करना है। कॉटन उत्पादन में हरियाणा में सिरसा का नाम सबसे ऊपर आता है। राजस्थान के साथ लगते ऐलनाबाद, चोपटा, डबवाली में बड़े स्तर पर कपास की खेती की जाती है। इसके बाद फतेहाबाद और हिसार का नंबर आता है।

पिछले तीन-चार वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें तो किसानों का कपास की खेती से मोह भंग हुआ है। वर्ष 2024 में एक लाख एकड़ भूमि पर किसानों ने कपास की जगह दूसरी फसलों को प्राथमिकता दी। इस इतने बड़े स्तर पर किसानों के कपास से फसल से दूरी बनाने के कारण कृषि अधिकारियों की भी चिंताएं बढ़ गई थीं। अब बजट घोषणा से किसानों के दोबारा इस कॉमर्शियल फसल की तरफ लौटने की उम्मीद जगी है।

गत वर्षों में कई तरह की योजनाएं लाने के साथ देसी कपास पर सब्सिडी तक देकर उत्पादन बढ़ाने का प्रयास किया गया, लेकिन गुलाबी सुंडी, मौसम परिवर्तन और सफेद मक्खी के कारण किसान नुकसान झेलने की स्थिति में नहीं थे। बेहतर भाव और फसल नहीं होने से किसानों के लिए कपास की खेती घाटे का सौदा बनती जा रही थी।

इस प्रकार रहा है कपास का रकबा
1990 163000 हैक्टेयर
2000 200000 हैक्टेयर
2010 189000 हैक्टेयर
2020 209200 हेक्टेयर
2021 187500 हेक्टेयर
2022 191550 हेक्टेयर
2023 185100 हेक्टेयर
2024 137000 हेक्टेयर

उच्चगुणवत्ता के बीच और सिंचाई की बेहतर व्यवस्था की जाए
शक्कर मंदोरी के किसान बलराम सहारण का कहना है कि कपास, नरमा उत्पादक किसान लगातार घाटा झेल रहे हैं। इस नुकसान से उभरने का बजट में कोई प्रावधान नहीं है। बीटी कॉटन की नई जनरेशन का बीज नहीं मिल रहा है। सरकार को नकली बीज, खाद, दवाइयों पर रोक लगानी चाहिए और सही समय पर खाद, बीज, सिंचाई का पानी मुहैया करवाना चाहिए। ऐसा नहीं हुआ तो इस कार्ययोजना का हश्र भी पिछली योजना की तरह ही हो जाएगा। – बलराम सहारण शक्कर मंदोरी।

कपास उत्पादक किसान पिछले 5-6 साल से घाटा सह रहे हैं। देसी कपास का बीज पिछले 2 साल से नहीं मिला है। ऐसे में कपास का उत्पादन बढ़ाने की कार्ययोजना का कोई औचित्य नहीं है। – किसान रोहतास पूनिया शाहपुरिया।

कपास के रकबे को बढ़ावा देने की दिशा में सरकार का कदम सराहनीय कदम है। किसानों को नई तकनीक मिलेगी और उच्च गुणवत्ता के बीज उपलब्ध होंगे। कपास के रकबे में वर्ष 2024 में 30 प्रतिशत की कमी आई है। बेहतर तकनीकी मिलने से किसान पुन: कपास की खेती को प्राथमिकता देंगे। -डॉ सुखदेव कंबोज, उप निदेशक, कृषि विभाग।

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