कैसे शुरू हुई शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा? समुद्र मंथन से है इसका कनेक्शन

सनातन धर्म में भगवान शिव को उच्च स्थान प्राप्त है। महादेव के भक्त उन्हें कई तरह से प्रसन्न करते हैं। सोमवार के दिन महादेव (ritual origins) की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही लोग शिवलिंग पर विशेष चीजों को अर्पित करते हैं जैसे कि दूध, दही, गंगाजल और बेलपत्र समेत आदि।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, शिवलिंग (Shiva worship) पर दूध अर्पित करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और मानसिक तनाव की समस्या दूर होती है। साथ ही करियर में सफलता मिलती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग पर दूध (Shivling milk offering) अर्पित करने की परंपरा कैसे शुरू हुई। अगर नहीं पता, तो चलिए इस आर्टिकल में जानते हैं कि इससे जुड़ी कथा के बारे में।

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा बलि के अत्याचार से देवी-देवता से परेशान थे। ऐसे में इंद्र सहित सभी देवी-देवताओं और ऋषि मुनियों ने विष्णु जी से रक्षा के लिए कहा। ऐसे में भगवान विष्णु ने कहा कि समुद्र मंथन से अमृत की प्राप्ति होगी, जिसको पीने से आप देवता अमर हो जाएंगे। वासुकी नाग और मंदार पर्वत की मदद से समुद्र मंथन किया गया। इस दौरान 14 रत्न, विष और अमृत प्राप्त हुए ।

समुद्र मंथन से विष निकला, तो देवताओं और राक्षसों के बीच सवाल उठा कि कौन विष पिएगा। ऐसे में तीनों लोकों की रक्षा के लिए महादेव ने विष पान रहे थे। तो माता पार्वती शिवजी का गला दबाकर रखी थी। इस वजह से विष गले से नीचे नहीं आ सका। किंतु विष पान के चलते भगवान शिवजी के गले में जलन होने लगा। उस समय देवताओं ने उन्हें दूध पीने के लिए दिया। जब भगवान शिवजी ने दूध का पान किया, तो उन्हें आराम मिला। तभी से भगवान शिवजी को दूध चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।

शिवलिंग अभिषेक मंत्र
ॐ अघोराय नम: ।
ॐ शर्वाय नम: ।
ॐ विरूपाक्षाय नम: ।
ॐ विश्वरूपिणे नम: ।
ॐ त्र्यम्बकाय नम:।
ॐ कपर्दिने नम: ।
ॐ भैरवाय नम: ।
ॐ शूलपाणये नम:।
ॐ ईशानाय नम: ।
ॐ महेश्वराय नम:।
ॐ ऊर्ध्व भू फट् ।
ॐ नमः शिवाय ।
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय ।

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