आसान नहीं अघोर… रहस्यमयी दुनिया, कई सारे सवाल और साधना से सम्मान की आस
शरीर पर भस्म। गले में रुद्राक्ष की माला। सिर पर काले कपड़े की पगड़ी। लंबे-लंबे बाल। लाल-लाल आंखें। सब काले कपड़े पहने। कुछ के कानों में कुंडल। यह दृश्य है महाकुंभ में अघोरी शिविर का। महाकुंभ के सेक्टर 19 में बने शिविर के बाहर बड़ा सा अलख निरंजन का काला झंडा लगा है। दरअसल, अघोरियों की दुनिया हमेशा से रहस्यमयी रही है। कुछ लोगों को ये बड़े डरावने लगते हैं, तो कुछ को अति प्रिय। कैसी होती है इनकी दुनिया, कैसे करते हैं साधना। क्या सच में अघोरी नरबलि देते हैं? क्या इन्हें सिदि्ध के लिए श्मशान में जलने वाले शवों का मांस खाना पड़ता है? ऐसे अनेक सवालों का जवाब जानने के लिए काठमांडू में अघोरी आश्रम के प्रमुख भोलानाथ और भारतीय अघोर अखाड़ा के महासचिव पृथ्वीनाथ से बात की गई। कुछ हिस्से…
अघोर क्या है ?
अघोर एक परंपरा है। अघोर एक तंत्र क्रिया है। अघोर एक साधना और विचार है। अघोर का ज्ञान आपको किताबों में नहीं मिल सकता है। इसका अनुभव करने के लिए आपको अघोरी बनना पड़ेगा। तीन साल तक आश्रम में रहकर सेवा करनी होगी, तब गुरु महाराज तय करेंगे कि दीक्षा मिलेगी या नहीं। इसके बाद अलग-अलग साधनाएं होती हैं।
क्या अघोरी बनने के लिए नरबलि देना होता है?
अघोरियों के बारे में बहुत बातें गलत प्रचारित की जा रही हैं। कुछ लोग यूट्यूब और सोशल मीडिया पर अलग-अलग टिप्पणी करते हैं। कुछ फर्जी अघोरी भी सोशल मीडिया पर अफवाह फैला रहे हैं। यह सही बात है कि अघोर पंथ में बलि प्रथा रही है। तपस्या के दौरान देवता को खून चढ़ाया जाता था। लेकिन वह एक बूंद भी हो सकता है। मेरी जानकारी में तो कभी बलि नहीं दी गई।
श्मशान साधना के बारे में बताएं ?
जो अघोरी बनता है, वह अपने गुरु की देखरेख में श्मशान साधना करता है। यह साधना तीन तरह की होती है। पहली श्मशान साधना, दूसरी शिव साधना और तीसरी शव साधना। शव साधना में मुर्दा भी इच्छाएं पूरी करता है। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पांव है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाया जाता है। ऐसी साधनाएं कुछ ही जगहों पर होती है और वहां पर आम लोगों का प्रवेश वर्जित होता है।
क्या श्मशान साधना के दौरान अघोरियों को जलते शव का मांस खाना पड़ता है?
देखिए, अघोरियों के बारे में अनेक भ्रांतियां हैं। अघोरियों को अपने गुरु के आदेश और उनके बताए मार्ग पर साधना करनी पड़ती है। यह धारणा प्रचलित है कि कुछ अघोरी श्मशान साधना के दौरान जलते हुए शव का मांस खाते हैं। यह तांत्रिक प्रक्रिया हो सकती है, जो उनके दर्शन और साधना पद्धति से जुड़ी है। इसका उद्देश्य सांसारिक मोह, घृणा और भयों को समाप्त करना है। अघोरी मानते हैं कि सब कुछ शिव है और शरीर, चाहे वह जीवित हो या मृत, मात्र पंचतत्वों का मिश्रण है। अघोरी अपनी साधना से यह सिद्ध करना चाहते हैं कि मृत्यु और जीवन में कोई भेद नहीं है।
अघोरी क्या सच में काला जादू करते हैं ?
हंसते हुए… अघोरी का मतलब सरल, सहज और सभी भेदभावों से मुक्त होने का प्रतीक है। हमारी साधना का उद्देश्य किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं, बल्कि अपनी आत्मा को शुद्ध करना और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना है। हम मानते हैं कि सब कुछ शिव का ही रूप है, चाहे वह शुभ हो या अशुभ। अखोरी किसी जाति या धर्म में नहीं बंधे होते हैं। कई मुसलमान भी अघोरी बन गए हैं। संन्यास लेने के बाद हमारी पहचान केवल अघोरी की ही होती है।
अघोरी काले कपड़े ही क्यों पहनते हैं ?
अघोरी भस्म (राख) को अपने शरीर पर मलते हैं। यह शुद्धता और मृत्यु को स्वीकार करने का प्रतीक है। हमारी जीवनशैली समाज की सामान्य धारणाओं और प्रथाओं से बहुत अलग होती है। हमारा उद्देश्य किसी को डराना नहीं, बल्कि सांसारिक बंधनों और मृत्यु के भय से दूर जाना है। अगर हमारी साधना को समझा जाए तो और ज्यादा सम्मान पैदा होगा।
अघोरियों के पास मानव खोपड़ी कहां से आती है?
सभी अघोरियों के पास खप्पर नहीं होती है। कुछ के पास होती है। वैसे भी खप्पर कभी नष्ट नहीं होती है और यह दूसरे के पास भी चली जाती है। सब खप्पर काम की भी नहीं होती हैं। कई खप्पर मिलने के बाद उनमें से एक-दो ही काम की होती हैं। कई पुरानी खप्पर हैं। यह श्मशान से ही आती हैं।
अघोरियों की मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार कैसे होता है ?
हमारे पंथ में भी अंतिम संस्कार होता है। जो बड़े गुरु होते हैं, उन्हें समाधि दी जाती है और हमेशा उनकी पूजा की जाती है। अन्य लोगों का अंतिम संस्कार ही किया जाता है।
पहलू
उपासना
जीवनशैली
साधना स्थल
प्रमुख प्रतीक
समाज के साथ संबंध
उद्देश्य
अघोरी साधु
भगवान शिव के अघोर रूप की उपासना
श्मशान साधना, वर्जित चीजों का उपयोग
श्मशान घाट, निर्जन स्थान
चिता भस्म, मानव खोपड़ी, काले वस्त्र
समाज से दूर, अकेले साधना
मृत्यु और जीवन के द्वैत को समाप्त करना
नागा साधु
भगवान शिव और वैराग्य के प्रतीक
वैराग्य, नग्नता, कठोर तपस्या
पर्वतीय क्षेत्र, अखाड़े, कुंभ मेला
भस्म, जटा, त्रिशूल, नग्नता
संगठित समूहों में रहना
तपस्या और वैराग्य के माध्यम से मोक्षअघोरी बनने के लिए क्या योग्यता चाहिए ?
किसी भी व्यक्ति को अघोरी बनने के लिए गुरु की तलाश करनी होती है और उसके प्रति समर्पित होना पड़ता है। गुरु की बताई हर बात पत्थर की लकीर होती है। इसके बाद गुरु शिष्य को बीज मंत्र देता है, जिसकी साधना शिष्य के लिए आवश्यक होती है। इस प्रक्रिया को हिरित दीक्षा कहा जाता है। हिरित दीक्षा के बाद गुरु शिष्य को शिरित दीक्षा देते हैं। इस दीक्षा में गुरु शिष्य के हाथ, गले और कमर पर एक काला धागा बांधते हैं और शिष्य को जल का आचमन दिलाकर कुछ जरूरी नियमों का वचन लेते हैं। इनमें सफल होने पर ही आगे की प्रक्रिया होती है। आखिरी में रंभत दीक्षा गुरु महाराज देते हैं। इस दीक्षा के शुरू होने से पहले शिष्य को अपने जीवन और मृत्यु का पूरा अधिकार गुरु को देना पड़ता है। अगर रंभत दीक्षा देते समय गुरु शिष्य से प्राण भी मांग ले तो शिष्य को देने होते हैं।