62 प्रतिशत कश्मीरी पंडित चाहते हैं घर वापसी, लेकिन सबसे बड़ा कारण है सुरक्षा को लेकर चिंता

वर्ष 1990 में विस्थापित हुए 62 फीसदी कश्मीरी घर लौटना चाहते हैं। ऐसी चाह रखने वालों में 80 फीसदी लोग 36 साल की आयु वर्ग के हैं। हालांकि सुरक्षा उनके लिए प्रमुख चिंता का विषय है।

कश्मीर से विस्थापित हुए पूरे 35 साल हो गए लेकिन आज भी चाहते हैं कि घर वापसी हो जाए। वर्ष 1990 में विस्थापित हुए 62 फीसदी कश्मीरी घर लौटना चाहते हैं। ऐसी चाह रखने वालों में 80 फीसदी लोग 36 साल की आयु वर्ग के हैं। हालांकि सुरक्षा उनके लिए प्रमुख चिंता का विषय है। सुरक्षित समूह बस्तियां इनकी प्राथमिकता है, जिनमें से 42.8% सरकार द्वारा सुविधायुक्त पुनर्वास का समर्थन करते हैं।

इन चुनौतियों और आकांक्षाओं की गहराई को समझने के लिए श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय के सहयोग से व्हेटस्टोन इंटरनेशनल नेटवर्किंग ने एक पोस्ट-एक्सोडस सांस्कृतिक सर्वेक्षण किया है। डॉ. राज नेहरू और उनकी टीम ने इसमें काम किया है। इसमें विभिन्न आयु वर्ग के लोगों की राय ली गई। आंकड़े बताते हैं कि विस्थापन के बाद 80.3 फीसदी लोग जम्मू-कश्मीर में रहे जबकि 7.9 फीसदी दिल्ली और 0.4 फीसदी विदेशों में गए।

विस्थापितों में से 34.1 फीसदी निजी क्षेत्र और 34.1 फीसदी सरकारी नौकरी करते हैं। 17.1 फीसदी का बड़ा हिस्सा कमाई नहीं कर रहा है। जबकि सबसे बड़ा 24.9 फीसदी 20 से 50 हजार रुपये प्रति महीने तक कमाता है। शिक्षा के पहलुओं पर उत्तरदाताओं में से 59.8 फीसदी के पास स्नातक और उससे ऊपर की शिक्षा है। 23.5 फीसदी के पास 12वीं कक्षा, 7.6 फीसदी के पास तकनीकी शिक्षा और 4.2 फीसदी के पास पीएचडी या उससे ऊपर की योग्यता है। विस्थापन के कारण कश्मीरी पंडितों के बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई।

सम्मान के साथ पुनर्वास महत्वपूर्ण…पुनर्वास का मतलब समुदाय की पहचान और अपनेपन की भावना को बहाल करना है। सुरक्षित बस्तियां मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्थिरता प्रदान करेंगी।

32 फीसदी के पास नहीं कश्मीर में संपत्ति…66.6 फीसदी उत्तरदाताओं के पास कश्मीर में संपत्ति, जमीन या घर हैं। जबकि 32 फीसदी के पास कुछ नहीं है। 74.7 फीसदी ने बताया कि उनकी संपत्ति उपयोग में नहीं है या बेकार हो गई है। 1.2 फीसदी ने इसे किराए पर दिया है। 48.6 फीसदी लोगों ने अपने संपत्ति नहीं बेची है जबकि 44.1 फीसदी ने 1990 में उसे बेच दिया था।

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