जम्मू कश्मीर: लालटेन के सहारे दच्छन, खच्चर पर ढोते हैं सामान
किश्तवाड़ के दच्छन, मड़वा और वाड़वन जैसे दूरदराज इलाकों में सड़क संपर्क, बिजली, स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा का गंभीर अभाव है, जिससे लोग पुराने तरीके से जीवन यापन करने को मजबूर हैं।
आधुनिक युग में भी दच्छन, मड़वा और वाड़वन के लोग लालटेन के सहारे रातें काट रहे हैं। सड़क संपर्क नहीं होने से खच्चरों पर सामान ढोना पड़ता है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के बाद ये इलाके छह माह तक देश से कट जाते हैं। इन गांवों में करीब 50 हजार की आबादी है, यहां सरकार के विकास के दावे खाखले साबित हो रहे हैं। जम्मू संभाग के किश्तवाड़ जिले में आते वाड़वन और मड़वा दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले से सटे हैं। पीर पंजाल की पहाड़ियों में यह घाटी प्राकृतिक सुंदरता से लवरेज है। मुरसूदन नदी इसको और खूबसूरत बनाती है, लेकिन विकास कोसों दूर है।
इन इलाकों के 80 प्रतिशत से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। एक तिहाई से अधिक आबादी आजीविका की तलाश में कश्मीर के विभिन्न इलाकों का रुख करती है। आधुनिक युग में भी ये इलाके दूरसंचार, बिजली, स्वास्थ्य, जलापूर्ति और शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण जरूरतों से वंचित हैं। बिजली और दूरसंचार प्रणाली की कमी से इन क्षेत्रों में निरक्षरता दर बढ़ी है।
हालांकि सरकार ने विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत क्षेत्र के लोगों को सौर प्रणाली प्रदान की है, लेकिन सर्दियों में यह सुविधा भी साथ छोड़ देती है। इससे लोग रोशनी के लिए पारंपरिक लालटेन और लकड़ी का सहारा लेते रहे हैं।बेहतर चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में कई मरीज अस्पताल ले जाते समय रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं।
सरकार की ओर से नपोची से किश्तवाड़ तक तीन महीने के लिए हेलीकॉप्टर सेवा प्रदान की जाती है। हालांकि मड़वा-वाडवन को घाटी व जम्मू तक पहुंचाने के लिए संपर्क मार्गों का विस्तार किया जा रहा है, लेकिन कई पहाड़ी इलाके ऐसे हैं, जो सड़क से महरूम हैं। इन इलाकों में सवारी व सामान ढोने के लिए खच्चरों का इस्तेमाल किया जाता है। सर्दी शुरू होने से पहले ही लोग अपने घरों में खाने-पीने की चीजें और जरूरी सामान जमा कर लेते हैं, क्योंकि भारी बर्फबारी के दौरान वे घरों में कैद हो जाते हैं।
ग्रामीणों का आरोप – नेता दिखाते हैं
सब्जबाग, पूरे कोई नहीं करतास्थानीय लोगों का आरोप है कि चुनाव के दौरान नेता आते हैं और बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाकर चले जाते हैं, लेकिन राजनीतिक स्वार्थ पूरा करने के बाद उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि 2002 के चुनावों के दौरान दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद ने उनके इलाके का दौरा किया था। स्थानीय लोगों ने मशाल जलाकर उनका स्वागत किया था, जिसके बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद ने हर घर में सोलर लाइट सिस्टम लगवाए थे।
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए छात्रों को अपने क्षेत्र से बाहर जाना पड़ता है। पैसे के अभाव में कुछ छात्र बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। युवाओं ने सरकार से मांग की है कि हमारे लिए भी टनल का निर्माण शुरू किया जाए, क्योंकि हम भी दुनिया के साथ पूरा साल जुड़ना चाहते हैं।