ISRO ने अंतरिक्ष में उगाया पालक, पृथ्वी से 3500 किलोमीटर ऊंचाई पर हुआ कमाल

अंतरिक्ष में लोबिया के बीजों को अंकुरित करने के बाद अब इसरो के लैब में पालक उगाने में सफलता मिली है। इस लैब को पीएसएलवी राकेट का उपयोग कर बनाया गया है। यह लैब 350 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है।

विज्ञानी पीओईएम-4 के तहत रॉकेट के चौथे चरण का उपयोग कर वैज्ञानिक प्रयोग कर रहे हैं। प्रयोग से जुड़े विज्ञानियों ने कहा है कि एमिटी यूनिवर्सिटी-मुंबई द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया पालक का कैलस विकसित हो रहा है। जब कोशिकाएं विभाजित होकर अनेक कोशिकाओं का समूह बनती है उसे कैलस कहते है।

इसरो ने क्यों चुना पालक?

विश्वविद्यालय परिसर में रखे गए एक समान माड्यूल में भी कैलस की समान वृद्धि देखी गई है। बीजों के बजाय कैलस उगाने का निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि पालक का कैलस तेजी से बढ़ता है और बीज अंकुरण प्रक्रिया की तुलना में विकास दर को आसानी से मापा जा सकता है।

पालक का चयन इसलिए किया गया क्योंकि इसका रंग हरा होता है। इसलिए इन-बिल्ट कैमरे के माध्यम से इसकी तस्वीर आसानी से खींचीं जा सकती है और इसमें होने वाले बदलावों को ट्रैक किया जा सकता है। इससे पहले अंतरिक्ष में भेजे गए लोबिया के बीज चार दिन में अंकुरित हो गए थे। अंकुरित बीजों से पत्तियां निकल गई हैं।

इसरो के लिए यह मील का पत्थर 

न के बराबर गुरुत्वाकर्षण वाली स्थितियों में पौधों को उगाना अंतरिक्ष जैविक अनुसंधान के लिए मील का पत्थर है। एमिटी यूनिवर्सिटी मुंबई के कुलपति एडब्ल्यू संतोष कुमार ने कहा, पीएसएलवी आर्बिटल एक्सपेरिमेंटल या पीओईएम-4 से प्राप्त शुरुआती डाटा के अनुसार पालक कैलस में वृद्धि के संकेत हैं।

एमिटी यूनिवर्सिटी ने प्रयोग के लिए पीएसएलवी-60 राकेट के साथ एमिटी प्लांट एक्सपेरिमेंटल माड्यूल इन स्पेस (एपीईएमएस) भेजा था। ‘स्पैडेक्स’ मिशन के तहत पीएसएलवी- सी60 राकेट ने 30 दिसंबर को दो अंतरिक्षयानों को कक्षा में स्थापित किया।इस मिशन के तहत भारत अंतरिक्ष यान को ‘डॉक’ और ‘अनडॉक’ करने की क्षमता को प्रदर्शित करेगा। एक अंतरिक्षयान से दूसरे अंतरिक्षयान के जुड़ने को डॉकिंग और अंतरिक्ष में जुड़े दो यानों के अलग होने को अनडॉकिंग कहते हैं।

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