जरूरत से ज्यादा मौन रिश्तों में दूरी लाता है, जानें साइलेंट ट्रीटमेंट का सही तरीका

रिश्तों में कभी-कभी ऐसी स्थिति आती है, जब शब्दों से कही गई बातें उलझनों को सुलझाने के बजाय जटिलता को बढ़ा देती हैं। ऐसे समय में साइलेंट ट्रीटमेंट, जिसे ‘मौन उपचार’ भी कहा जाता है, आपके रिश्तों को सुधार सकता है। यह एक ऐसा तरीका है, जिसमें एक अपनी भावनाओं के तीव्र क्षणों में प्रतिक्रिया देने से बचते हुए चुप्पी साध लेता है। लेकिन इसे सही तरीके से अपनाना और समझना बेहद जरूरी है, क्योंकि जरूरत से ज्यादा मौन रिश्तों में दूरी भी पैदा कर सकता है।

उद्देश्य को समझें

साइलेंट ट्रीटमेंट का मकसद किसी को नजरअंदाज करना या उसे चोट पहुंचाना नहीं होना चाहिए। इसका असली उद्देश्य तनावपूर्ण स्थितियों को शांत करना और बातचीत के लिए एक सही समय तथा स्थिति का निर्माण करना है। जब भावनाएं तीव्र होती हैं तो कही गई बातें कभी-कभी गलतफहमियों को जन्म दे सकती हैं। ऐसे में कुछ समय के लिए मौन होना बेहतर होता है। साइलेंट ट्रीटमेंट के दौरान दोनों पक्षों को यह समझने का समय मिल जाता है कि गलती कहां हुई, समस्या की जड़ क्या है और समाधान कैसे निकाला जाए।

लाभ तो अनेक हैं

मौन अपनाने से झगड़े की तीव्रता कम होती है और स्थिति बिगड़ने से बचती है, साथ ही दोनों पक्षों को सोचने और अपनी गलतियों को समझने का समय मिल जाता है। वहीं सही समय पर साइलेंट ट्रीटमेंट अपनाने से रिश्तों में संतुलन और परिपक्वता आती है।

क्या है सही तरीका

किसी भी चीज की अति बुरी है। इसी तरह साइलेंट ट्रीटमेंट की अति भी अच्छी नहीं है, इसलिए इसका इस्तेमाल सोच-समझकर और सीमित समय के लिए करना चाहिए। इस दौरान सुनिश्चित करें कि आप अपने मौन से दूसरे व्यक्ति को दंडित नहीं कर रही हैं, बल्कि खुद को और उसे सोचने का समय दे रही हैं। साथ ही अगर आपके साथी ने चुपी साधी है तो आप उनका सम्मान करें, उन्हें थोड़ा समय दें और जब वह बात करने की स्थिति में आ जाएं तो समस्या पर खुलकर चर्चा करें। कोशिश करें कि आप उस दौरान उनसे बहस न करें, बल्कि आपसी सहमति से समाधान निकालें।

कुछ सावधानियां भी

अगर आप या आपका साथी साइलेंट ट्रीटमेंट को नियमित रूप से अपना रहा है तो यह दूसरे पक्ष को उपेक्षित महसूस करा सकता है। लंबे समय तक मौन रखने से सामने वाला व्यक्ति असुरक्षित और अनावश्यक रूप से दोषी महसूस कर सकता है, जिसके बाद पुनः जुड़ाव में मुश्किलें आ सकती हैं। मौन और संवाद का संतुलन तब तक फायदेमंद है, जब तक यह संवाद का रास्ता खोलने का काम करे। रिश्तों में किसी भी समस्या का समाधान अंततः बातचीत के जरिये ही संभव है। साइलेंट ट्रीटमेंट को एक रणनीति के रूप में अपनाएं, लेकिन इसे आदत न बनने दें।

मौन एक शांतिपूर्ण समाधान

रिलेशनशिप काउंसलर शिवानी मिसरी साधू बताती हैं, संचार किसी भी स्वस्थ रिश्ते का आधार है, लेकिन जब एक साथी चुप हो जाता है तो यह दूसरे को उपेक्षित, आहत या महत्वहीन महसूस करा सकता है। सचेत संचार हमेशा रिश्ते में बढ़ रही गलतफहमियों को खत्म करने का काम करता है, जहां दोनों साथी किसी रुकावट के बिना शांति से अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं। मगर कभी-कभी थोड़ा विराम लेना और साइलेंट हो जाना भी ठीक रहता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि इसकी समयावधि अधिक न हो। यह दृष्टिकोण समस्या को टालने के बजाय उसे हल करने की इच्छा को दिखाता है। याद रखें, मौन एक शांतिपूर्ण समाधान है, लेकिन खुला संवाद आपके संबंधों को मजबूती देता है।

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