प्रदोष व्रत की पूजा में जरूर करें आरती व मंत्रों का जप
हर माह की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत किया जाता है। इस बार मार्गशीर्ष माह का दूसरा प्रदोष व्रत शुक्रवार 13 दिसंबर को किया जा रहा है जिसे शुक्र प्रदोष व्रत भी कह सकते हैं। इस व्रत को करने से साधक को भगवान शिव की असीम कृपा की प्राप्ति होती है। ऐसे में चलिए पढ़ते हैं शिव जी आरती व उनके मंत्र।
प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat December) पूर्ण रूप से भगवान शिव की आराधना के लिए समर्पित माना जाता है। इस तिथइ पर प्रदोष काल में पूजा करने का विशेष महत्व माना जाता है। प्रदोष व्रत की पूजा के दौरान आप शिव जी की आरती व मंत्रों का जप करके उनकी विशेष कृपा के पात्र बन सकते हैं।
शिव जी की आरती (Shiv Ji Ki Aarti)
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कोई भी व्रत या पूजा-पाठ बिना आरती के अधूरा माना जाता है। ऐसे में प्रदोष काल में प्रदोष व्रत की पूजा के दौरान शिव जी की आरती व मंत्रों का जप जरूर करना चाहिए, ताकि आपको व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो सके।
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥
शिव जी के मंत्र –
ॐ नमः शिवाय॥
महामृत्युञ्जय मन्त्र – ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
शिव गायत्री मन्त्र – ॐ महादेवाय विद्महे रुद्रमूर्तये धीमहि
तन्नः शिवः प्रचोदयात्॥