राम मंदिर आंदोलन में निर्मोही अखाड़े की रही अहम भूमिका, अवध के नवाब ने दान में दी थी सात बीघे भूमि

वैरागी परंपरा के वैष्णव संतों में निर्मोही अनि अखाड़े का लंबे समय से दबदबा रहा है। यह वही अखाड़ा है जिसने राम मंदिर आंदोलन में बढ़ चढ़कर हमेशा हिस्सा ही नहीं लिया, इस केस में मुख्य पक्षकार भी रहा है। अवध के नवाब ने इस अखाड़े को हनुमान टीले पर सात बीघा भूमि दान दी थी।

अयोध्या में राम जन्मभूमि को लेकर हुए हर हमले का सामना रामानंदी वैरागी संप्रदाय के निर्मोही अनि अखाड़े के संतों ने किया है। इस अखाड़े के दो अंग निर्मोही और दिगंबर हमेशा राष्ट्र और संस्कृति की रक्षा के लिए तत्पर रहे हैं। दोनों ही अखाड़ों का प्रमुख केंद्र अयोध्या है।

इस अखाड़े के सचिव श्रीमहंत राजेंद्र दास बताते हैं कि अवध के नवाब सफदरजंग ने बाबा अभयराम दास को हनुमान टीले पर सात बीघे जमीन उपहार में दी थी। सफदरजंग के परपोते आसिफउद्दौला की आर्थिक मदद से उस जमीन पर विशाल मंदिर बनवाया जा सका। बाद में अवध के नवाबों ने अखाड़े को और भी जमीनें दान में दीं, जिससे गढ़ी का विस्तार करवाया जा सका।

बाबा अभयराम दास इस गढ़ी के पहले श्रीमहंत थे। कुंभ, अर्धकुंभ और महाकुंभ के आयोजन में निर्मोही अनि अखाड़े की अहम भूमिका रही है। कुंभ और अर्धकुंभ में शाही स्नान में इन अखाड़ों को प्राथमिकता दी जाती रही है और इसी वजह से इन अखाड़ों में जमकर संघर्ष भी हुए हैं।

अयोध्या में हैं सबसे ज्यादा धुने
फिलहाल अयोध्या में सबसे ज्यादा रामानंदी वैरागी साधुओं के धूने हैं। यह वही रामानंदी वैरागी हैं जिन्होंने मुगल आक्रांताओं से लोहा लिया था। रामानंदी संतों ने राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। यही कारण है कि राम जन्मभूमि का पुजारी रामानंद संप्रदाय के निर्मोही अखाड़े का ही होता है। इस अखाड़े में मौजूदा समय 50 हजार से अधिक वैष्णव परंपरा के संत हैं। निर्मोही अनि अखाड़े के संत स्वतंत्रता आंदोलन का भी हिस्सा रहे हैं। सचिव राजेंद्र दास बताते हैं कि कई संतों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

तीन साल में छोटा वैरागी, तीन साल बानगीदार
वैरागी साधु को महंत ही संन्यास की दीक्षा देता है। अखाड़े में शामिल होने वाला नया वैरागी तीन साल तक ‘छोटा’ के रूप में सेवा करता है। फिर अगले तीन साल के लिए उसे ‘बानगीदार’ का दर्जा मिलता है। इस दौरान उसका काम अखाड़े में होने वाली पूजा में सहयोग करना होता है। फिर अगले तीन साल वह खाना बनाने और खिलाने का काम करता है। इस दौरान उसे ‘हुड़ाडंगा कहा जाता है। उसका काम अगले तीन साल के लिए फिर बांट दिया जाता है और इस दौरान वह ‘मूरतिया’ बनकर सेवा करता है। इस तरह 12 साल के तप के बाद वह नागा या वैरागी बन पाता है।

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