हरियाणा: कुरुक्षेत्र पहुंचा महाराष्ट्र का धनगरी गाजा लोक नृत्य
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के चलते धर्मनगरी स्थित पवित्र ब्रह्मसरोवर के तट विभिन्न राज्यों की लोक संस्कृति से सराबोर हैं, जिन्हें देखने के लिए पर्यटक भी दूर-दराज से हजारों की संख्या में हर रोज पहुंच रहे हैं। इसी बीच महाराष्ट्र का पारंपरिक लोक नृत्य धनगरी गाजा अपनी खास पहचान बनाए हुए हैं, जिसे देख पर्यटक दंग रह जाते हैं। महाराष्ट्र के सांगली से पहुंचे कलाकार अपने हुनर के चलते इस नृत्य से समां बांध रहे हैं तो वहीं पीढि़यों से चले आ रहे इस लोक नृत्य को गीता महोत्सव के जरिए देश-दुनियां तक पहुंचा कर जीवंत कर रहे हैं।
भगवान शंकर के तांडव की तर्ज पर किया जाने वाला धनगरी गाजा, महाराष्ट्र का एक पारंपरिक लोक नृत्य माना जाता है। यह नृत्य, महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले के साथ-साथ कृष्णा नदी के किनारे पर बसे सांगली के चरवाहों, भैंस व भेड़-बकरी पालने वालों, और कंबल बुनकरों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य को धनगर समुदाय के लोग करते हैं, जिन्हें स्थानीय बोली में धनगर कहा जाता है।
भगवान शंकर की तर्ज पर कलाकार करते हैं धनगरी गाजा नृत्य
इस नृत्य में भगवान शंकर के तांडव की झलक दिखाई देती है। भले ही महाराष्ट्र के धनगर जमात के लोग इसे पीढि़यों से करते आ रहे हैं लेकिन यह बेहद मुश्किल व रोमांचित भी है। हालांकि यह नृत्य दो से चार घंटे में पूरा होता है लेकिन ब्रह्मसरोवर तट पर इसे तय समय आधे घंटे तक पूरा करना होता है, जो कलाकारों के लिए बड़ी चुनौती भी है। कलाकारों की टीम की अगुवाई कर रहे महाराष्ट्र के सांगली से आए प्रख्यात कलाकार अनिल भीमराव कोलेकर बताते हैं कि जब बहस के चलते माता पार्वती रूठ जाती है तो भगवान शंकर उन्हें मनाने के लिए तांडव नृत्य करते हैं। धनगर नृत्य भी उसी का एक भाग है, जिसे कईपत नृत्य भी कहा जाता है। सभी कलाकार भगवान शंकर की तर्ज पर ही नृत्य करते हैं और नृत्य की तैयारी से लेकर इसके पूरा होने तक हर कलाकार अपनी पूरी शुद्वि तक रखते हैं।
हर किसी की रगों में बसा है नृत्य, विदेशों तक मचा चुके धूम
अनिल भीमराव बताते हैं कि उनके जमात के लोगों की रगों में यह नृत्य बसा है। बचपन से ही यह नृत्य करने लगते हैं। यहां तक कि इंजीनियर व डॉक्टर तक बनने के बावजूद भी इस नृत्य को नहीं छोड़ा जाता। वे खुद भी आईटी इंजीनियर है तो उनकी टीम में भी कईं और लोग नौकरी भी करते हैं। इसके बावजूद इस नृत्य से रिश्ता बरकरार है। यहां तक कि कलाकारों में पूरा-पूरा परिवार तक शामिल है। वे वर्ष 2003 में इंग्लैंड व 2008 में रशिया में यह नृत्य दिखा चुके हैँ जबकि दिल्ली के लाल किला, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, गुजरात सहित विभिन्न प्रदेशों में भी यह नृत्य कर चुके हैं।