महाराष्ट्र में बीजेपी की बंपर जीत में ‘माइक्रो मैनेजमेंट’ का कितना बड़ा रोल

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा की अभूतपूर्व सफलता में जहां संघ और उसके सहयोगी संगठनों की चर्चा हो रही है, वहीं इस जीत का श्रेय कुछ ऐसी इकाइयों को भी जाता है, जो पिछले कई महीनों या कुछ वर्षों से चुपचाप काम में लगी हुई हैं। ये हैं भाजपा की सफलता की वाहक ‘वाराही’, ‘अनुलोम’, ‘विस्तारक’ और ‘साथी’।

भाजपा ने अपनी पूर्व चयनित 130 में से 126 सीटें इन इकाइयों के सूक्ष्म प्रबंधन के कारण जीती हैं। इन इकाइयों को तो अपने क्षेत्र की पूरी जानकारी होती है, लेकिन इनके बारे में विरोधी दल तो क्या भाजपा के भी बहुत कम लोग जानते हैं।

इकाइयां अंदर ही अंदर कर रही हैं काम

मई के महीने में हुए लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद भाजपा के महाराष्ट्र प्रभारी भूपेंद्र यादव ने त्वरित डाटा विश्लेषण किया और 130 विधानसभा क्षेत्रों में फैले 13,000 ऐसे बूथों की सूची तैयार की, जहां कम प्रयासों से कुछ समय में ही अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। इसके तहत जून के अंत तक गहरी वैचारिक जड़ें रखने वाले 130 उत्साही, तकनीक-प्रेमी, सुशिक्षित युवक-युवतियों की पहचान की गई और उन्हें राज्यभर के 130 निर्वाचन क्षेत्रों में तैनात किया गया। इसे ‘विस्तारक योजना’ नाम दिया गया और इसकी पूरी जिम्मेदारी भाजपा कोंकण क्षेत्र के संगठन सचिव शैलेंद्र दलवी को दी गई।

इस टीम का काम था संबंधित व्यक्ति को सौंपे गए क्षेत्र की निगरानी और फीडबैक लेकर ऊपर तक पहुंचाना। फिर एक-एक विस्तारक के साथ कम से चार अन्य व्यक्तियों को भी टीम में शामिल किया गया। इनमें एक विधायक या मंत्री या दूसरे राज्य का कोई वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारी था, जिसे ‘विधानसभा साथी’ नाम दिया गया। उसके साथ देवेंद्र फडणवीस की पिछली सरकार के समय से ही काम कर रहे ‘अनुलोम’ और ‘वाराही’ नाम के संगठनों से एक-एक व्यक्ति लिया गया।

जन-जन तक पहुंच कर इकाइयों ने किया काम

अनुलोम एवं वाराही का गठन क्रमश: राज्य एवं केंद्र सरकार की योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने एवं उनके कार्यान्वयन पर निगरानी के लिए किया गया था। इन सबके समन्वय के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पदाधिकारी का चयन भी किया गया। पांच व्यक्तियों की इस टीम को सिर्फ बूथ स्तर के पार्टी तंत्र को सक्रिय करने का काम दिया गया था।

मुंबई के चारकोप क्षेत्र में करीब तीन माह तक ‘विधानसभा साथी’ के रूप में काम करते रहे उत्तर प्रदेश से आए जौनपुर के विधायक रमेशचंद्र मिश्र बताते हैं कि उन्हें और उनके जैसे कई अन्य राज्यों से आए साथियों को कभी भी किसी चुनावी रैली में भाग लेने या प्रचार करने को नहीं कहा गया था। इनमें से अधिकांश का उम्मीदवारों और उनकी टीमों के साथ भी संपर्क न्यूनतम ही था।

टीम को दिया गया पूरा डाटा

इन टीमों को उनकी जरूरत के सभी डाटा मुहैया कराए गए। जैसे कि हर बूथ क्षेत्र में सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों की संख्या, भाजपा एवं उसके समविचार के स्थानीय सदस्यों के नाम आदि। टीम के सदस्यों को हर दिन के लिए विशेष कार्य दिए गए और दिनभर में उनके द्वारा एकत्र किए गए डेटा को राज्य व केंद्र में एकत्र किया गया। उन बूथों पर विकास का आकलन करने के लिए आगे की प्रक्रिया अपनाई गई। आवश्यकता पड़ने पर टीमों को तुरंत निर्देश भी दिए गए।कुछ अप्रत्याशित घटनाओं के मामले में उन्हें रणनीति बदलने के निर्देश भी जारी किए गए। सभी टीमों के बीच इस तरह के लाइव संपर्क ने उन्हें संबंधित विधानसभाओं में रहने के दौरान पांच महीनों में अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद की। जिसके कारण भाजपा 130 में से 126 सीटें अपने इस सूक्ष्म प्रबंधन के कारण जीतने में सफल रही।

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