कालाष्टमी पर दुर्लभ ‘इंद्र’ योग का हो रहा है निर्माण
वैदिक पंचांग के अनुसार, 22 नवंबर को मासिक कालाष्टमी है। यह पर्व हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव की कठिन साधना एवं उपासना की जाती है। काल भैरव देव की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही जीवन में खुशियों का आगमन होता है। तंत्र सीखने वाले साधक सिद्धि प्राप्ति के लिए कालाष्टमी पर्व पर काल भैरव देव की कठिन साधना करते हैं। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर काल भैरव देव मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। ज्योतिषियों की मानें तो मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर दुर्लभ इंद्र योग का निर्माण हो रहा है। इसके साथ ही कई अन्य मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में काल भैरव देव की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी।
कालाष्टमी शुभ मुहूर्त (Kalashtami Shubh Muhurat)
वैदिक पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 22 नवंबर को संध्याकाल 06 बजकर 07 मिनट पर शुरू होगी और 23 नवंबर को संध्याकाल 07 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी। कालाष्टमी पर निशा काल में काल भैरव देव की पूजा की जाती है। अत: 22 नवंबर को मासिक कालाष्टमी मनाई जाएगी। इस शुभ अवसर पर काल भैरव देव की पूजा की जाएगी।
इंद्र योग (indra Yog)
ज्योतिषियों की मानें तो कार्तिक माह की कालाष्टमी पर दुर्लभ ब्रह्म योग का निर्माण हो रहा है। इस शुभ योग का संयोग सुबह 11 बजकर 34 मिनट तक है। इसके बाद इंद्र योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का संयोग 23 नवंबर को सुबह 11 बजकर 42 मिनट तक है। इन योग में काल भैरव देव की पूजा करने से साधक को अमोघ फल की प्राप्ति होगी। इसके साथ ही रवि योग का संयोग सुबह 06 बजकर 50 मिनट से शाम 05 बजकर 10 मिनट तक है।
पंचांग
सूर्योदय – सुबह 06 बजकर 50 मिनट पर
सूर्यास्त – शाम 05 बजकर 25 मिनट पर
चंद्रोदय- रात 11 बजकर 41 मिनट पर
चंद्रास्त- देर रात 12 बजकर 35 मिनट पर
ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 05 बजकर 02 मिनट से 05 बजकर 56 मिनट तक
विजय मुहूर्त – दोपहर 01 बजकर 53 मिनट से 02 बजकर 35 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त – शाम 05 बजकर 22 मिनट से 05 बजकर 49 मिनट तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 11 बजकर 41 मिनट से 12 बजकर 34 मिनट तक