20 साल तक नहीं दिखी ये मछली, साइंटिस्ट मान चुके थे खत्म, फिर पहले दिखी तस्वीर

आम मछुआरों को हमेशा पता नहीं होता है कि वे जिस मछली को पकड़ रहे हैं वह कितनी अलग है और साइंस्टिस्ट्स के लिए कितनी खास है.  एक अजीब मामला 2020 में, कंबोडिया में तब सामने आया जब कुछ मछुआरों ने एक तरह की मछली की पकड़ी और उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालीं. इस तरह की मछली के बारे में वैज्ञानिक मान चुके थे कि वे दुनिया से विलुप्त हो चुकी हैं. तस्वीर देखने के बाद साइंटिस्ट्स को भी लगा कि इन मछलियों के बारे में जो कहा जा रहा है कि वे वहीं मीकॉन्ग घोस्ट मछली हैं जो 2005 में विलुप्त घोषित कर दी गई थीं.

कहानी इतनी सरल भी नहीं
इस रहस्यमयी मछली की यह कहानी कुछ ज्यादा ही अजीब सी है. जब तक साइंटिस्ट्स तस्वीरें देख कर उसने हासिल कर उसका परीक्षण कर पाते मछली पहले ही बिक कर खाई जा चुकी थी और साइंटिस्ट के पास केवल तस्वीरें रह गईं. इन तस्वीरों में दिखाई दे रहे मछली के मुंह से साफ लग रहा था कि ये वही मछली है.

तीन साल बाद जगी उम्मीद
अमेरिकी सरकार से वित्त पोषित वंडर्स ऑफ दे मीकॉन्ग प्रोजेक्ट के प्रमुख और रेनो की यूनिवर्सिटी ऑफ नेवादा में रिसर्च बायोलॉजिस्ट जेब होगन इससे संतुष्ट नहीं थे. उस घटना के तीन साल बाद, कंबोडियाई मछुआरे ने दो मछिलियां मीकॉन्ग नदी से पकड़ीं. ये करीब 5 और 6 किलो की थीं और उनकी लंबाई 2 से 3 फुट लंबी थीं. और इस बार शोधकर्ता इन मछलियों को खरीद कर उनकी पड़ताल करने में कामयाब हो गए.

मछुआरों की सक्रियता काम आई
होगन का कहना है कि इन मछुआरों ने इस तरह की मछली पहले कभी नहीं देखी थी. लेकिन वे यह जरूर समझ गए थे कि यह असामान्य मछली है. उन्हें यह लगा था कि वैज्ञानिकों से संपर्क करना बेकार नहीं जाएगा. इस खोजबीन से जुड़े जिस शख्स ने इनकी तस्वीरें देखी वे समझ गए कि ये वही मछली थी.

मीकॉन्ग नदी की चुनौतियां
यह स्टडी हाल ही में बायोलॉजिकल कंजरनेशन जर्नल में प्रकाशित हुई है. मीकॉन्ग नदी कई दक्षिण एशियाई देशों से गुजरती है और बायोडाइवर्सिटी के लिहाज से बहुत ही संपन्न नदी है. लेकिन इसे हाइड्रोपॉवर विकास, अधिकाधिक मछली पकड़ने और आवास खराबी की समस्याओं से दो चार होना पड़ रहा है. यही वजह है कि वैज्ञानिक मीकॉन्ग घोस्ट के बारे में इतने चिंतित थे. कि इतने लंबे समय से ये मछली दिखाई भी नहीं दे रही थी.

33 साल पहले दिखना शुरू हुई थी ये मछली
मीकॉन्ग नदी में पाई जाने वाली यह मछली तभी से रहस्यमयी है जब 1991 में इसे यह नाम दिया गया था. तब से ऐसी 30 से भी कम मछलियों का ही रिकॉर्ड है. होगन की टीम ने  मछली बाजारों में नजर रखी. खुद होगन ने भी साल 2000 से इस मछली को एक ही बार देखा था. होगन कहते है कि उन्हें  इस मछली के विशाल आकार की वजह से इसके प्रति खास आकर्षण था. उन्हें लगा कि यह विलुप्त हो गई है लेकिन यह फिर दिख गई.

कई रहस्य कायम
इस स्टडी के प्रमुख लेखक और कंबोडिया की स्वे रिएंग यूनिवर्सिटी की बुनयेथ चान भी इसी तरह के विचार  रखते हैं. उन्होंने कहा कि यह विशाल सालमन कार्प उम्मीद की वजह है और साथ ही पूरी मीकॉन्ग इकोसिस्टम की उम्मीद की भी वजह है. शोधकर्ता अभी तक ये नहीं जानते हैं कि ये मछलियां कितनी हैं और कहां रहती है. 2020 से 2023 तक ऐसी तीन मछलियां दिखी हैं.

होगन यहां के संरक्षण कार्य को बहुत ही अधिक चुनौतीपूर्ण  कार्य पाते हैं. कंबोडिया पर्यावरण एक्टिविस्ट्स के लिए आसान नहीं है. जलवायु परिवर्तन की वजह से बाढ़ और सूखे जैसी समस्याएं अलग तरह की चुनौतियां पैदा कर रही हैं. इतना ही नहीं इस साल  की शुरुआत में मदर नेचर कंबोडिया के 10कार्यकर्ताओं को 6 साल तक के लिए कैद की सजा सुनाई गई थी. हर के खिलाफ राज्य के खिलाफ साजिश रखने का आरोप था. नई रिसर्च के पीछे के शोधकर्ता उम्मीद कर रहे हैं कि मीकॉन्ग घोस्ट की यह खोज उसके सरंक्षण की कोशिशों को गति प्रदान करेगी.

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