जम्मू-कश्मीर चुनाव 2024 : सोपोर में 37 साल बाद दिखे पार्टियों के झंडे

वेलकम टू एपल टाउन…इस बोर्ड के साथ ही सोपोर में शुरू हो जाते हैं सेब के बगीचे। हंदबाड़ा, लंगेट, बारामुला व गुलमर्ग के आस-पास के इलाकों में भी सेब के बाग भरपूर हैं। लेकिन, इस पहचान के साथ ही यह इलाका कश्मीर में चुनाव बहिष्कार की शुरुआत करने वाले इलाके के रूप में भी जाना जाता है। यहां ऐसा भी हुआ है कि कई पोलिंग स्टेशन पर एक वोट तक नहीं पड़ा। इसी इलाके से निकले हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के बड़े नेता सैयद अली शाह गिलानी। वर्ष 2001 में संसद पर हमले का मास्टरमाइंड अफजल गुरु भी यहीं से निकला। 

फिलहाल अब यह इलाका इसलिए चर्चा में है कि यहां 1987 यानी 37 साल बाद पहली बार राजनीतिक दलों के झंडे दिख रहे हैं। जम्हूरियत की आवाज गूंज रही है। एक पीढ़ी तो ऐसी है, जिसने यहां कभी चुनाव नहीं देखा। सेकंडरी स्कूल के पास तिराहे पर छह साल पहले एक क्लॉक टावर बना था। अब यही क्लॉक टावर तिराहे की पहचान हो गई है। यहीं फल का ठेला लगाए गुलाम अहमद कहते हैं, 52 साल का हो गया हूं, लेकिन पहली बार मतदान करूंगा। 

तब पत्थरबाजी और फायिरंग…अब अमन 
सुबह करीब आठ बजे का समय है। दुकानें खुल रही हैं। बच्चे स्कूूल जा रहे हैं। उनमें कुछ इंटरमीडिएट के विद्यार्थी हैं। चुनाव के बारे में पूछा, तो एक-दूसरे की ओर देखते हुए कहते हैं, हमें तो कुछ नहीं मालूम है। हमने तो पार्टियों के झंडे भी पहली बार देखे हैं। स्कूल से थोड़ा आगे फलों का ठेला लगा रहे शब्बीर कहते हैं कि चुनाव का मतलब है जिसकी लाठी, उसी की भैंस। मतलब पूछो तो कहते हैं कि 1987 के चुनाव देख लो, मैं बच्चा नहीं हूं, 90 वर्ष उम्र हो गई है मेरी। 

बच्चे को स्कूल भेजकर लौट रहे अब्बास बताते हैं कि 2010 के आस-पास का समय तो ऐसा था कि 12 बजते ही यहां पत्थरबाजी और गोलियां चलनी शुरू हो जाती थीं। सामान्य माहौल में भी शाम पांच बजे के बाद कोई दिखाई नहीं देता था। इस इलाके ने सालों तक सिर्फ हड़ताल देखी है। कपड़ा दुकानदार मो. शफी बदरू कहते हैं कि कश्मीर को दबाया जा रहा है। कौन दबा रहा है, इस सवाल पर कहते हैं, यह सब मत पूछो। यहां के बच्चे नशे में बर्बाद हो रहे हैं, लेकिन कोई नहीं संभाल रहा है। हालांकि वह कहते हैं कि अब बाजार अच्छा चल रहा है। सब अमन-शांति है।

20 प्रत्याशी हैं मैदान में : सोपोर से अफजल अहमद गुरु का भाई एजाज अहमद गुरु निर्दलीय मैदान  में है। कांग्रेस से अब्दुल रशीद डार, पीडीपी से इरफान अली और अपनी पार्टी से गुलाम मोहम्मद, नेशनल कॉन्फ्रेंस से इरशाद रसूल के अलावा 20 और प्रत्याशी मैदान में हैं।

लंगेट : इंजीनियर रशीद की रिहाई ने बदले समीकरण

पहाड़ियों के बीच यहीं अवामी इत्तेहाद पार्टी के अध्यक्ष अब्दुल रशीद शेख उर्फ इंजीनियर रशीद का जन्म हुआ। कभी नेशनल कॉन्फ्रेंस का गढ़ रही इस सीट पर दो दशक से इंजीनियर रशीद का ही प्रभाव है। सरकारी नौकरी छोड़कर इंजीनियर रशीद ने 2008 में पहली बार निर्दलीय विधायक चुने गए। अब उनके भाई खुर्शीद अहमद शेख सरकारी नौकरी छोड़कर यहां से ताल ठोक रहे हैं। जमानत मिलने के बाद घाटी में प्रचार कर रहे रशीद के चलते कई सीटों के समीकरण बदल चुके हैं। उनमें उनमे एक लंगेट भी है।

लंगेट तिराहे पर मस्जिद की ओर से आ रहे गुलफाम से मुद्दों पर चर्चा की, तो बोले-वही जो पूरे कश्मीर में है…रोजगार। युवाओं को काम मिले, बस यही इच्छा है।  दुकानदार दिलशाद से चुनाव का हाल पूछा, तो मस्जिद के सामने चढ़ाई की ओर इशारा कर दिया। कहते हैं कि सब वहीं से होता है। दरअसल, चढ़ाई के उस पार पहाड़ी पर ही इंजीनियर रशीद का परिवार रहता है। 

लंगेट चौराहे पर बैठे 85 वर्षीय बुजुर्ग की टीस सामने आ गई, जब वे कहते हैं, आज तक कभी विकास होते नहीं देखा, शिक्षा नहीं देखी। इस पूरे क्षेत्र में आतंकवाद ही देखा है। मैं खुद बहकावे में आकर हड़ताल में शामिल होता रहा। 

पिछले महीने बेटा मुंबई ले गया, तो देखा कि जिंदगी क्या है, लोग कितना आगे बढ़ गए हैं। लंगेट तो बहुत पीछे है। लंगेट को शिक्षा व रोजगार की बहुत जरूरत है। 

लंगेट से खुर्शीद के अलावा, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के इरफान पंडितपुरी, नेकां-कांग्रेस से इरशाद हुसैन गैनी व जमात ए इस्लामी समर्थित नेता गुलाम कादिर लोन के बेटे कलीमुल्लाह लोन निर्दलीय प्रत्याशी हैं।

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