इस खास वजह से भगवान विष्णु ने लिया था वामन अवतार
वैदिक पंचांग के अनुसार, 15 सितंबर यानी आज वामन जयंती मनाई जा रही है। यह पर्व हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु के वामन अवतार (Vaman Jayanti 2024) की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त वामन द्वादशी का व्रत रखा जाता है। सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु के वामन स्वरूप का अवतरण हुआ था। अतः इस शुभ तिथि पर विधि-विधान से भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। आइए, भगवान विष्णु के वामन अवतरण की कथा जानते हैं-
वामन जयंती शुभ मुहूर्त (Vaman Jayanti Shubh Muhurat)
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि आज संध्याकाल 06 बजकर 12 मिनट तक है। इसके पश्चात त्रयोदशी तिथि शुरू होगी। वामन द्वादशी तिथि पर सुकर्मा योग का निर्माण हो रहा है। इसके साथ ही शिववास योग का भी संयोग बन रहा है।
वामन जयंती अवतार कथा
सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिर काल में राजा बलि ने स्वर्ग नरेश इंद्र को हराकर स्वर्ग पर अधिपत्य जमा लिया। कहते हैं कि तत्कालीन समय में राजा बलि न केवल श्रेष्ठ योद्धा थे, बल्कि बड़े दानवीर थे। उनकी महानता और वीरता की चर्चा तीनों लोक में थी। स्वर्ग नरेश इंद्र की स्थिति दयनीय हो गई थी। स्वर्ग से पदच्युत होने के बाद इंद्र देव लोक-प्रलोक में भटक रहे थे।
उस समय मां अदीति ने जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा-उपासना की और मन की व्यथा बताई। मां अदीति को चिंतित देख भगवान विष्णु बोले- हे देवी! आप किंचित मात्र भी चिंतित न रहें। भविष्य में मैं आपके गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लूंगा और इंद्र देव को वापस स्वर्ग दिलाऊंगा। कालांतर में भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मां अदीति के गर्भ से वामन देव का अवतरण हुआ। ऋषि-मुनि सभी प्रसन्न हो उठे।
इसी दौरान स्वर्ग का स्थायी नरेश बनने के लिए राजा बलि ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। इसमें तीनों लोकों को आमंत्रित किया गया। इस यज्ञ में भगवान विष्णु वामन रूप में पहुंचे। उनके पहुंचने की सूचना पाकर राजा बलि हर्षित हुए। उन्होंने वामन देव का आदर-सत्कार किया। इसके बाद आसन पर बिठाकर अतिथि सत्कार किया। इसके बाद उनसे दान यानी भेंट मांगने की याचना की। यह सुन वामन देव चुप रहे और प्रस्थान करने लगे। तब राजा बलि ने पुनः याचना की।
उस समय वामन देव ने तीन पग भूमि की मांग की। राजा बलि ने स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया। तब वामन देव भगवान विष्णु ने एक पग से पृथ्वी नाप लिया और दूसरे पग में स्वर्ग नाप लिया। तीसरे पग के लिए भूमि नहीं बची, तो दानवीर राजा बलि ने अपना सिर रख दिया। उस समय वामन देव ने अपना पग राजा बलि के सिर पर रख दिया। पग रखते ही राजा बलि पाताल पहुंच गये। उस समय इंद्र देव को पुनः स्वर्ग का सिंहासन प्राप्त हुआ।