जम्मू-कश्मीर: घाटी में अनुच्छेद 370, राज्य का दर्जा बहाली बनाम विकास बना चुनावी मुद्दा!

वर्ष 2014 के बाद दस साल के अंतराल पर जम्मू-कश्मीर में हो रहे विधानसभा चुनाव में सब कुछ बदल गया है। परिस्थितियां बदली हैं। समीकरण बदले हैं। नारे बदले हैं। माहौल में बदलाव आया है। नए-नए दल अस्तित्व में आए हैं। इस बीच मुद्दे भी बदले हैं। मौजूदा चुनाव अनुच्छेद 370 व राज्य का दर्जा बहाली बनाम विकास के बीच सिमटता दिख रहा है। कश्मीर केंद्रित दलों का एक सूत्रीय एजेंडा भाजपा को सत्ता में आने से रोकना है तो भाजपा विकास के साथ ही परिवारवादी राजनीति को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए दमखम ठोंकने की तैयारी में जुट गई है।

जम्मू-कश्मीर में आखिरी चुनाव 2014 में हुए। 2015 में सरकार बनी जो जून 2018 तक चली। इसके बाद से चुनाव नहीं हुए। बीच में अनुच्छेद 370 व 35 ए हटा। परिसीमन हुआ। सीटों की संख्या बढ़कर 90 तक पहुंची। जम्मू व कश्मीर के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की गई। कई सीटों का अस्तित्व खत्म हुआ तो कई नई सीटें उभरकर सामने आईं। पीडीपी-नेकां में टूटफूट हुई। जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी, डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) जैसी कुछ पार्टियां अस्तित्व में आईं। अलगाववादियों का चेहरा बदला। लोकतंत्र के प्रति उनकी आस्था बढ़ी और मतदान प्रक्रिया का हिस्सा बने। पहली बार लोकसभा चुनाव के दौरान न तो कोई बहिष्कार की कॉल आई, न कोई हिंसा की घटनाएं हुईं। अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले बाद केंद्र के निर्णय के विरोध में कश्मीर केंद्रित दलों ने गुपकार गठबंधन बनाया। यह गठबंधन भी लोकसभा चुनाव के दौरान अलग-थलग पड़ गया। पीपुल्स कांफ्रेंस व अपनी पार्टी भाजपा के करीब आए, लेकिन अब इसमें भी दरार दिख रहा है।

पिछले दस साल के अंतराल में आए इन सारे बदलावों का मौजूदा चुनाव पर भी असर देखने को मिल रहा है। लोकसभा चुनाव की तरह ही कश्मीर केंद्रित दलों का विधानसभा चुनाव में भी नारा भाजपा के खिलाफ ही है। कश्मीर की अवाम का दिल जीतने के लिए नेकां, अपनी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में 370 के लिए संघर्ष करने और राज्य का दर्जा बहाली को शामिल किया है। पीडीपी पहले से ही 370 के खिलाफ रही है। भाजपा को रोकने के लिए नेकां-कांग्रेस ने हाथ भी मिला लिया है। हालांकि, कांग्रेस का अभी घोषणा पत्र जारी नहीं हुआ है, लेकिन वह अनुच्छेद 370 के सवाल पर खामोश है। जानकारों का कहना है कि यदि वह इस बारे में कुछ भी कहेगी तो उसका देशभर में असर पड़ सकता है। इस वजह से उसने खामोशी की चादर ओढ़ रखी है। 

वहीं, भाजपा अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर के माहौल में आए बदलाव, विकास की गाथा तथा परिवार वादी राजनीति के खात्मे को आधार बना रही है। भाजपा की ओर से पिछले पांच साल में आए बदलाव की तस्वीर जनता के सामने रखकर उनसे विकास या विनाश का विकल्प चुनने के लिए कह रही है। पार्टी के प्रदेश प्रभारी तरुण चुग का कहना है कि भाजपा के पास जनता के सामने जाने के कारण हैं। उसने पिछले पांच साल में जम्मू कश्मीर में जो विकास कार्य किए हैं, युवाओं को रोजगार के साधन सुलभ कराए हैं, हिंसा में एक भी लोगों की जान नहीं जाने को आधार बना रही है। लोगों के सामने इन तस्वीरों के साथ ही यह सच भी रखा जाएगा कि परिवारवादी राजनीति के दौरान क्या कुछ हुआ था प्रदेश में और अब कितना बदल गया है। वह इन मुद्दों के साथ चुनाव मैदान में है। उम्मीद है कि जनता सकारात्मक रुख दिखाएगी।

अवाम की आवाज के अनुरूप है घोषणा पत्र
अपनी पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी का कहना है कि अनुच्छेद 370 हटने तथा राज्य का दर्जा छिन जाने से जम्मू-कश्मीर की अवाम खुश नहीं है। चुनाव घोषणा पत्र अवाम की आवाज के अनुरूप है। पार्टी इसके लिए संघर्ष करेगी और जम्मू-कश्मीर के लोगों को उनके जमीन व रोजगार का हक दिलाएगी।

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