कानपुर के 5000 ट्रेडमार्क और पेटेंट फंसे, दो साल में संविदा अफसरों ने दी थी मंजूरी
केस: 1
दीपक सेठी जूते बनाने और बेचने के उद्योग में हैं। उन्होंने अपनी कंपनी के लिए ब्रांड की सुरक्षा के महत्व को समझते हुए अप्रैल 2022 में ट्रेडमार्क पंजीकरण के लिए आवेदन किया। उनका ट्रेडमार्क जनवरी 2023 में पंजीकृत हो गया। उनका आवेदन ट्रेडमार्क जर्नल में प्रकाशित हो चुका है। कोर्ट का आदेश आने के बाद वह परेशान हैं।
केस: 2
चरणदीप सिंह एक डिटर्जेंट पाउडर के उत्पादन और बिक्री में कंपनी के मालिक हैं। फरवरी 2023 में उन्होंने ट्रेडमार्क पंजीकरण के लिए आवेदन किया। 2023 के अंत तक उन्हें ट्रेडमार्क के लिए पंजीकरण प्रमाणपत्र मिल गया। इसके बाद उन्होंने पैकेजिंग, विज्ञापन और ब्रांडिंग में निवेश किया। उनका कहना है कि कोर्ट के आदेश से काफी नुकसान हो सकता है।
कानपुर के पांच हजार ट्रेडमार्क और पेटेंट फंस गए हैं। दो साल में पंजीकृत हुए इन ट्रेडमार्क और पेटेंट को संविदा अफसरों ने मंजूरी दी थी जिन्हें ऐसा करने का अधिकार ही नहीं था। क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया ने इन अफसरों को सिर्फ सुनवाई और परीक्षण का ही अधिकार दिया था। अब सरकार ने 65 अफसरों की टीम बनाई है, जो इन आदेशों की समीक्षा करेगी। देश में दो साल में एक लाख पेटेंट और 5.67 लाख ट्रेडमार्क पंजीकृत हुए। करीब सौ करोड़ से ज्यादा के निवेश पर असर पड़ने की आशंका है।
अपने उत्पादों की ब्रांडिंग और उनकी अलग पहचान बनाए रखने के लिए कारोबारी उत्पाद के लिए ट्रेडमार्क और उनका पेटेंट कराते हैं। अब बीते दो साल में हुए इनके पंजीकरण पर ही संशय की स्थिति बन गई है। कोलकाता उच्च न्यायालय ने हाल ही में अपने एक फैसले में इन सभी संविदा अधिकारियों की ओर से पारित किए गए आदेशों को अशक्त और शून्य करार दिया है। ट्रेडमार्क एवं पेटेंट ऑफिस में क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) से निविदा पर ऑफिसर चयन करने का अनुबंध किया गया था जो अब खत्म कर दिया गया है।
इसके बाद क्यूसीआई के संविदा पर चयनित किए गए एसोसिएट मैनेजर ट्रेडमार्क्स एक्ट 1999 के सेक्शन 3 के सब सेक्शन 2 के अंतर्गत नियुक्त अधिकारी नहीं माने जाएंगे। इस कारण से उनके पास ट्रेडमार्क आवेदन पर कोई निर्णय लेने का या कोई भी विधिक आदेश पारित करने का अधिकार ही नहीं था। उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग ने कोर्ट का आदेश आने के बाद 13 अगस्त को अफसरों की नियुक्ति की है, जो बीते दो सालों में पंजीकृत, स्वीकृत, अस्वीकृत, विरोध या किसी अन्य स्तर पर दिए गए आदेशों की समीक्षा करेंगे।
कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट्स एंड ट्रेडमार्क ने बीते दो सालों में क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के जरिये 790 संविदा संविदा अफसरों की नियुक्ति की। इस मद में विभाग ने लगभग 50 करोड़ रुपये उनकी सैलरी में खर्च किए। मार्च 2023 से मार्च 2024 के बीच लगभग एक लाख पेटेंट और 5.67 लाख ट्रेडमार्क पंजीकृत हुए। कानपुर में लगभग पांच हजार ट्रेडमार्क पंजीकृत हुए। इससे इनके पंजीकरण पर संशय की स्थिति बन गई है। कोलकाता हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब इन सभी की फिर से समीक्षा होगी। -नवदीप श्रीधर, ट्रेडमार्क एंड पेटेंट विशेषज्ञ
ये समस्याएं आएंगी
लोगों ने पंजीकरण प्रमाणपत्र मिलने के बाद ब्रांडिंग और मार्केटिंग में लाखों रुपये का निवेश किया।
कई लोग पंजीकरण के बाद कुछ तरह की साझेदारी में शामिल हो गए।
कई विवाद और मुकदमे पंजीकृत उपयोगकर्ता के नाम पर अदालतों में चल रहे हैं।
सरकारी शुल्क और व्यावसायिक शुल्क, जो विरोध और प्रतिवाद के लिए दिया गया था, उसका निपटान कैसे होगा।
ये सवाल उठ रहे
जानकारों का कहना है कि वर्तमान में जब सभी आदेश ही शून्य हो गए हैं। तब उनकी समीक्षा का प्रश्न ही नहीं उठता और न ही अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान है। अब ट्रेडमार्क रजिस्ट्रार अपने किसी भी अधिकारी को जवाबदेह न ठहराकर गलतियों का सारा दोष पंजीयनकर्ता और हितधारकों पर मढ़ रही है।