कच्चे चमड़े का संकट…1000 करोड़ के निर्यात ऑर्डर रुके

कानपुर में सालाना 10 हजार करोड़ से ज्यादा का कारोबार करने वाला चमड़ा उद्योग इस समय कच्चे चमड़े (भैंस की खाल) की कमी से जूझ रहा है। कच्चा चमड़ा न मिल पाने की वजह से टेनरियों में उत्पादन प्रभावित है। कारोबारियों के मुताबिक शहर और प्रदेश के अन्य स्लाटर हाउस स्थानीय कारोबारियों को कच्चा चमड़ा न देकर निर्यात कर रहे हैं। इसके चलते करीब एक हजार करोड़ रुपये के निर्यात ऑर्डर रुके हुए हैं।

कारोबारियों ने सरकार से कच्चे चमड़े के निर्यात पर 100 प्रतिशत शुल्क लगाकर और भाव तय कर लगाम कसने की मांग की है। श्रम आधारित उद्योगों को प्रधानमंत्री की सौ दिवसीय कार्ययोजना में शामिल किया गया है। शहर में चमड़ा उद्योग सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार और सरकार को विदेशी मुद्रा उपलब्ध कराता है। शहर और उन्नाव को मिलाकर करीब 400 टेनरियां हैं। 240 टेनरियां अकेले कानपुर में हैं।

कारोबारियों के मुताबिक 2014 से पहले तक कच्चे चमड़ा के निर्यात पर सौ प्रतिशत शुल्क लगता था। बाद में इसे 80, फिर 60 और अब 40 प्रतिशत कर दिया गया है। इसकी वजह से पूरे प्रदेश में तैयार होने वाले कच्चे चमड़े का 80 प्रतिशत निर्यात कर दिया जाता है। इस वजह से स्थानीय कारोबारियों के सामने कच्चे चमड़े का संकट खड़ा हो गया है। कारोबारियों ने बताया कि भैंस की खाल का निर्यात 100-150 रुपये में किया जा रहा है। स्थानीय लोग खरीदने जाते हैं, तो उनसे एक हजार रुपये से ज्यादा में दिया जा रहा है।

कहां हैं स्लाटर हाउस, कच्चे चमड़े से क्या बनता है
उन्नाव में चार से पांच स्लाटर हाउस हैं। इसके अलावा झांसी, अलीगढ़, रामपुर में हैं। कच्चे चमड़े से सेना के जवानों के लिए जूते, सैडलरी, हारनेस, बेल्ट पर्स आदि बनते हैं। इनका निर्यात भी किया जाता है।

निर्यात को लग सकता है झटका
चमड़ा कारोबार कोरोना काल के बाद से तेजी बढ़ा है। चर्म निर्यात परिषद के आंकड़ों के मुताबिक 2017-18 में 5805 करोड़ का निर्यात किया गया था। 2018-19 में 5662 करोड़, 2019-20 में कोरोना के चलते निर्यात घटकर 4921 करोड़ हो गया। इसके बाद तेजी से सुधार हुआ। 2020-21 में 5301 करोड़ का निर्यात किया गया। 2022-23 में सात हजार करोड़ का निर्यात हुआ। निर्यातकों का अनुमान है कि इस बार भी सात हजार करोड़ से ज्यादा का निर्यात होगा, लेकिन आने वाले समय में यदि कच्चे माल का संकट खत्म न हुआ तो मुश्किल होगी। पहले रूस-यूक्रेन फिर इस्राइल-हमास युद्ध से निर्यात पर असर पड़ा है। सैडलरी और हारनेस की मांग कम हुई है।

कच्चे चमड़े की उपलब्धता न होने से एक हजार करोड़ के निर्यात ऑर्डर रुक गए हैं। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल से इस पर चर्चा की गई है। कच्चा चमड़ा न होने से टेनरियों में उत्पादन कम हो गया है। स्लाटर हाउस सौ से दो सौ रुपये में कच्चा चमड़ा निर्यात कर रहे हैं। स्थानीय स्तर पर एक हजार से 1200 रुपये वसूले जा रहे हैं। इसके बाद भी माल नहीं मिलता।  -असद इराकी, क्षेत्रीय अध्यक्ष, चर्म निर्यात परिषद

चमड़ा उद्योग के सामने कई चुनौतियां हैं। कच्चे चमड़े पर निर्यात शुल्क सौ प्रतिशत करने की मांग थी, जो अभी 40 प्रतिशत है। सौ प्रतिशत शुल्क होने से कच्चे चमड़े का निर्यात घटेगा। भैंस की खाल से ही सेना के जवानों के जूते, बेल्ट, सैडलरी, हारनेस बनाया जाता है। आने वाले समय में इनके निर्यात पर असर पड़ सकता है।  -जावेद इकबाल, पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष, चर्म निर्यात परिषद

चमड़ा श्रम आधारित उद्योग है, जो नई समस्या का सामना कर रहा है। सरकार से मांग है कि प्रतिकिलो भार के अनुसार इसके दाम फिक्स कर दिए जाएं, ताकि कच्चे चमड़ा की उपलब्धता बढ़े। निर्यात बढ़ाने और चीन, बांग्लादेश के उत्पादों से टक्कर लेने के लिए सरकार मदद करे।  -यादवेंद्र सचान, सदस्य चर्म निर्यात परिषद और निर्यातक

इन देशों को भेजा जा रहा कच्चा चमड़ा
इंडोनेशिया, वियतनाम, नाइजीरिया, टोगो, मलयेशिया, फिलीपींस, कंबोडिया, जर्मनी, यूके, ओमान।

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